ताज फिर खबरों में है । यह दुनिया के सात अजूबों में से एक है । मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में इसे बनवाया था । इस बेजोड़ इमारत को बनने में 22 साल लगे थे और इसका आर्चीटेक्ट था ईसा खां । यह इमारत 1652 ई में बन कर तैयार हुयी थी। यह इमारत राजा जयपुर से खरीदे गए यमुना के किनारे स्थित उनके एक भूखण्ड पर बनी है । मुमताज महल जिसकी याद में यह मक़बरा बना है इसके निर्माण के बीच में ही अपने 14 वें शिशु को जन्म देते समय काल कवलित हो गयी थी। मुमताज की मृत्यु बुरहानपुर में हुयी थी। जो आगरा से हज़ार किलोमीटर दूर हैं। मुमताज की एक कब्र वहां भी है जहां उसे मृत्यु के बाद दफनाया गया था । यह इमारत बन जाने के बाद उस कब्र से मुमताज के अवशेष निकाल कर ताज में दुबारा दफन किये गये थे ।
मध्यकालीन इतिहास के विद्वान डॉ आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने ताज महल पर पूरी एक पुस्तक लिखी है । इस भव्य इमारत ने इतिहासकारों, वास्तुविदों, अभियांत्रिकी के विद्वानों, कवियों, कलाकारों , चित्रकारों और छायाकारों सहित साहित्य, ललित कला , और विज्ञान के अध्येताओं को समान रूप से प्रभावित किया है । वास्तुकला में यह इमारत इंडो ईरानियन शैली का अनुपम उदाहरण है । बल्ब की तरह इसका गुम्बद, दीवारों के संगमर्मरों के बीच विभिन्न रत्नों और रंगीन पत्थरों की पच्चीकारी, जिसे मीनाकारी भी कहा जाता है, सममित ढांचा, इस इमारत को अनूठा बनाता है । कहते हैं इसकी नींव लकड़ी के कुंदों पर रखी गयी है और वे कुंदे यमुना के घटते बढ़ते जलस्तर से अप्रभावित रहते हैं । इसके चारों कोनों पर खड़ी चार मीनारें बाहर की ओर झुकी हुयी है। वह इटली के पीसा की झुकी मीनार की तरह तो नहीं पर बहुत ध्यान से देखने से चारों मीनारें बाहर की ओर थोड़ा झुकी हुयी है । ऐसा इस लिये है कि अगर कभी भूकम्प आये तो चारों मीनारें मुख्य इमारत की बजाय बाहर की तरफ ही गिरें । इस इमारत में वास्तुविदों द्वारा बहुत गहन अध्ययन के बाद भी इस अनोखी इमारत में कोई भी दोष नहीं ढूंढा जा सका है।
यह एक अभिशप्त इमारत भी है । शाहजहां जिसने इस इमारत को बनवाया उसके अंतिम दिन उसके पुत्र औरंगजेब के कारागार लाल किले के उस कक्ष के गवाक्ष से ताज का दीदार करते हुये व्यतीत हुये जहां वह नज़रबन्द था । औरंगजेब को कला से नफरत थी। वह ललित कलाओं को गैर इस्लामी मानता था । ताज उसके काल मे उपेक्षित रहा । वह तब न कोई टूरिस्ट डेस्टिनेशन था और न ही इतिहास के गंभीर अध्येताओं के लिये कोई विषय । जब मुगल राज सिमटना शुरू हुआ तो भरतपुर के जाट राजा सूरजमल का उदय हुआ । सूरजमल , ने आगरा के इर्द गिर्द मुग़ल फौजों का जीना दूभर कर रखा था । औरंगजेब के समय मे ही जोधपुर के दुर्गादास राठौर, दिल्ली के आसपास के जाटों का विद्रोह और दक्षिण में मराठा शक्ति का उदय हो गया था । औरंगजेब के आखिरी 25 साल दक्षिण में ही भागते लड़ते बीते थे। उसके निधन के बाद मुगल साम्राज्य का पराभव प्रारम्भ हो गया था । सूरज मल के नेतृत में जाटों ने आगरा तक हमले शुरू कर दिये थे । सिकंदरा स्थित अकबर की कब्र को तोड़ कर उसके अवशेष को नष्ट कर दिया गया था । उसके मक़बरे में भूंसा भरवा दिया गया था । वह ताज को भी तोड़ना चाहता था पर उसे उसके दरबारियों ने रोका और ताज टूटने से बच गया ।
ब्रिटिशकाल में एक ऐसा अवसर आया जब ताज की खूबसूरती पर रीझ कर उसे यहां से उखाड़ कर इंग्लैंड ले जाने की योजना बनी। पर तब के इंजीनियरों ने इस योजना के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े कर दिये और कहा इस से न तो ताज यहां बचेगा और न ही वहां ले जाया जा सकेगा । पहली बार लार्ड कर्जन के समय ताज के सौंदर्यीकरण की योजना बनी। कर्जन ताज के वास्तुकला से बहुत प्रभावित था । वह इसी तरह की सफेद संगमरमर की एक भव्य इमारत कलकत्ता में बनवाना चाहता था । उसने इसी आधार पर कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल बनवाया भी । हालाँकि विक्टोरिया मेमोरियल ताज से बड़ी इमारत है पर वह सौंदर्य तथा वास्तुकला में ताज को मात नहीं दे सकी । लार्ड कर्ज़न की बनायी योजना के अनुसार, 1908 में ताज का पुनुरुद्धार प्रारम्भ हुआ। उसके आसपास के उद्यानों , फव्वारों, और कंदीलों को नए तरह से बनाया और सजाया गया । 1942 में द्वीतीय विश्वयुद्ध और 1965 तथा 1971 के भारत पाक युद्धों के समय ताज को हवाई हमलों से बचाने के लिये आड़ बनायी गयी थी और उसे कैमोफलाज़ किया गया था। अब इस जगत प्रसिद्ध इमारत की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जिम्मे है । सुप्रीम कोर्ट इसकी मॉनिटरिंग भी समय समय पर करता रहता है ।
ताज ने साहित्यकारों , विशेषकर कवियों को बहुत प्रेरित किया है । शकील बदायुनी की प्रसिद्ध ग़ज़ल एक शहंशाह ने बनवा कर हंसी ताजमहल, और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता, काल के कपोल पर ढुलकी हुयी आंसू की बून्द ताजमहल से प्रेरित होकर लिखी गयी प्रसिद्ध रचनाएँ है । ताज प्रेमी युगलों, और नवविवाहित जोड़ों का पसंदीदा स्थल रहा है और आज भी है । ताज के सामने रखी हुयी संगमरमर की चौकी पर बैठ कर आलिंगन या अर्धालिंगन मुद्रा में फ़ोटो खिंचाए बिना किसी भी प्रेमी युगल की ताज यात्रा नहीं पूरी होती है । दुनिया भर से आने वाले शायद बिरले ही राष्ट्राध्यक्ष हों जिन्होंने उस चौकी पर बैठ कर चित्र न खिंचवाए हो । 2012 में ताज को जब विश्व के सात अजूबों में लाने की मुहिम चली थी तो पूरा देश एकजुट हो गया था और तब यह ताजमहल एक बेजान इमारत और राजा रानी की कब्रगाह नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न बन गया था । ताज विश्व के सात अजूबों में प्रथम स्थान पर था ।
आह वही ताज, काल के कपोल पर ढुलका हुआ अश्रुविन्दु, प्रदेश के पर्यटन की किताब से बेदखल हो गया है । यह सरकार का निकटदृष्टिदोष कहें या, संकीर्ण सोच पर यह निर्णय न तो उचित है और न ही इसे सराहा जा रहा है । भारत आने वाले पर्यटकों की यह पहली पसंद है । दुनिया की कोई ऐसी पत्रिका नहीं जहां ताज के बारे में कभी लिखा न गया हो । एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में घोषित विश्व दाय की धरोहरों में सबसे अधिक फोटोग्राफ उतारे जाने वाले स्मारकों में ताज प्रथम पांच में हैं ।
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment