Sunday, 29 October 2017

अल्लामा इक़बाल की एक नज़्म - दुआ / विजय शंकर सिंह

कोई उरूज़ दे न ज़वाल दे, मुझे सिर्फ इतना कमाल दे,
मुझे अपनी राह में डाल दे, कि ज़माना मेरी मिसाल दे ।

तेरी रहमतों का नुज़ूल हो, मुझे मेहनतों का सिला मिले,
मुझे माल ओ ज़र की हवस नहीं, मुझे बस तू रिज़्क़ ए हलाल दे ।

मेरे जेहन में तेरी फिक्र हो, मेरी सांस में तेरा ज़िक्र हो,
तेरी खौफ मेरी निजात हो, सभी खौफ दिल से निकाल दे ।

तेरी बारगाह में ऐ खुदा, मेरी रोज़ ओ शब है यही दुआ,
तू रहीम है तू करीम है, मुझे मुश्किलों से निकाल दे ।
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अल्लामा इक़बाल, सर मुहम्मद इक़बाल ( 9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938 ) अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे।उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।

इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं: असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है। फ़ारसी में लिखी इनकी शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तानमें बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है। दुआ उनकी एक प्रसिद्ध नज़्म है ।

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