Sunday, 22 October 2017

22 अक्टूबर , अदम गोंडवी के जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण और उनकी एक ग़ज़ल / विजय शंकर सिंह

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये ।
( अदम गोंडवी )

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये ।

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये ।

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये ।

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये ।

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये ।

अदम गोंडवी ( 1947 से 2011 ) का वास्तविक नाम रामनाथ सिंह था। आपका जन्म 22 अक्तूबर 1947 को आटा ग्राम, परसपुर, गोंडा, उत्तर प्रदेश में हुआ था।  उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ है,  धरती की सतह पर, समय से मठभेड ।

अदम गोंडवी को हिंदी ग़ज़ल में दुष्यन्त कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला शायर माना जाता है। राजनीति, लोकतंत्र और व्‍यवस्‍था पर करारा प्रहार करती अदम गोंडवी की ग़ज़लें जनमानस की आवाज हैं। 18 दिसंबर 2011 को अदम गोंडवी का संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ में निधन हो गया था। आज उनके जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण ।

© विजय शंकर सिंह

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