Friday 20 October 2017

त्रेता का हैंगओवर - अयोध्या में दीपावली के बाद / विजय शंकर सिंह

आज की सुबह कलि काल मे हुयी। दीवारों पर बुझे दिये, शांत पड़ी हुयी झालरें बीत गए त्योहार के किस्से बता रहे हैं । इस बार की दीपावली सरकार के लिये अलग तरह से रही। अयोध्या में 2 लाख दीयों का प्रकाश फैला । सारे मग जगमगा उठे । रामलीला हुयी । ट्रूप इंडोनेशिया का था । यह दीप दान, अखबार बता रहे हैं कि एक विश्व रिकॉर्ड था । अयोध्या को बहुत कुछ मिला । अयोध्या को पर्यटन मानचित्र पर लाने का सरकार की योजना है । यह एक अच्छी योजना है। यहां तुलसी शोध संस्थान पहले से है । पर अयोध्या के नगर और घाटों को और सुविधा सम्पन्न बनाया जा सकता है । राम के पैड़ी की योजना तो पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के समय बनी थी। सुंदर घाटों की शृंखला भी उन्ही के समय मे बनी है । पर हरिद्वार के समान न यहां प्रवाह है और न सरयू , गंगा हैं तो यह घाट पर्यटन की दृष्टि से इतने लोकप्रिय नहीं हुये जितने होने चाहिये । इन योजनाओं से अयोध्या की उदासी दूर होती है या नहीं यह तो बाद में ही पता चलेगा । फिलहाल तो यह दीये स्वच्छ भारत मिशन को ही चुनौती दे रहे हैं ।
अयोध्या नगर पालिका का यह दायित्व और कर्तव्य था कि वह इस कूड़े को साफ कर के घाटों को दर्शनीय और स्नान किये जाने योग्य बना देती ।

सारे वीआईपी कहे जाने वाले प्राणी जहां से आये थे वहीं चले गए । सरयू राम को समेटे शांत गति से अयोध्या को निस्पृह भाव से देखती हुयी बहती रहीं। यह भी एक तथ्य है कि केवल अयोध्या में ही घाघरा को सरयू कहा जाता है । घाघरा , नदी नहीं नद है । घरघर की ध्वनि के साथ प्रवाहित होने के कारण इसे घर्घर और इसके विशाल पाट और अनियंत्रित तथा अप्रत्याशित बहाव के कारण नद कहा गया । पुरुष को अनियंत्रित बने रहने की छूट जो मिली है ! इन्ही गुणों के कारण , ब्रह्मा के कमंडल से निकले ब्रह्मपुत्र को भी नद ही कहते हैं । सात पवित्र नदियों में ब्रह्मपुत्र अकेला नद है शेष छह नदियां हैं, लेकिन सरयू उसमे नहीं हैं क्यों कि सरयू में राम ने डूब कर अपना प्राण त्यागा था । सरयू , अहिल्या की तरह अनायास पाप की भागी बनी। सरयू में राम के स्वेच्छा से डूब कर मर जाने के कारण वहां दीप जलाने की परंपरा नहीं है । राम ने अपने सभी भाइयों सहित सरयू में डूब कर स्वतः समाधि ली थी। सभी भाइयों के पुत्रों ने अपने अपने परिवार के साथ अयोध्या का त्याग कर दिया था । अयोध्या तब से उजाड़ हो गयी । यह सब भी त्रेता में ही हुआ था ।

सुबह किनारे पड़े बुझे दियों में बचे खाद्य तेलों को बटोरते हुए ये बच्चे त्रेता और कलि का अर्थ स्पष्ट कर रहे हैं । यह फोटो दीपावली के गर्व, हर्ष और उल्लास को ठेंगा दिखाती है । यह हमें विश्व क्षुधा सूचकांक के 100 वें नम्बर पर फिर ले जा कर खड़ा कर देती है । यह चित्र हमे भात के अभाव में मरती हुयी झारखंड के आधार हीन उस बच्ची की याद दिला देती है । फिर अचानक राम राज्य याद आने लगता है । राम राज्य तो एक आदर्श राज्य व्यवस्था थी। तुलसी जब राम राज्य की बात उत्तरकाण्ड में कहते हैं तो वे कुछ इस प्रकार कहते हैं,

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।

त्रेता में ऐसा शासन या वातावरण था या नहीं यह तो नहीं मालूम । पर जब एक सुखकर राज्य के राजा की पत्नी जो राज महिषी थी को, गर्भावस्था में वन में रहने के लिये बाध्य कर दिया गया हो, और राजा को खुद ही प्राण त्यागने पड़े हों ,तो राम राज्य की आदर्श व्यवस्था पर अनायास ही प्रश्न चिह्न खड़ा हो जाता है ।

एक समाचार के अनुसार,
" वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए दीपोत्सव का आयोजन कर रही समिति के सदस्य आशीष मिश्र ने कार्यक्रम के पूर्व इस बात का दावा किया था कि जिन वॉलंटियर की ड्यूटी दीप जलाने के लिए लगाई गई है। वही वालंटियर कार्यक्रम समाप्त होने के बाद सभी दीपक हटाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका जिसके कारण कार्यक्रम के बाद राम की पैड़ी की बेहद गंदी तस्वीर सामने आ गई। जाहिर तौर पर इस तरह के प्रयासों से राम की पैड़ी और अयोध्या कभी भी विश्व पर्यटन के मानचित्र पर नहीं आ पाएगी। इसके लिए सतत प्रयास की जरूरत है और इस बात को प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पत्रिका टीम से बातचीत करते हुए अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में भी कहा था। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा की अयोध्या को साफ-सुथरा रखने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है लेकिन एक तरफ मुख्यमंत्री यह बयान दे रहे थे तो दूसरी तरफ राम की पौड़ी परिसर गंदगी से बज बजा रहा था। कार्यक्रम आयोजन से जुड़े अधिकारियों और समिति ने ना प्रदेश के मुख्यमंत्री का मान रखा और ना ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन की प्रवाह की और राम की पैड़ी को इस हाल में पहुंचा दिया जैसी वह कभी न थी। "

त्रेता से जब कलि में हम लौटने हैं और त्रेता के अतीतमोह से जब बाहर आते हैं, तो फ़िराक़ साहब का यह कलाम याद आता है ।

"इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात"

© विजय शंकर सिंह

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