बीसवीं सदी के जो जन आंदोलन हुये हैं उनमें कुछ ने निराश भी बहुत किये है। यह निराशा स्वयंस्फूर्त आंदोलनों के पीछे छिपी उद्दाम अपेक्षाओं का भी परिणाम रही है। यह विडम्बना 1974 का जेपी आंदोलन जिसे हम सब संपूर्ण क्रांति के रूप में जानते और पढ़ते है भी रही है । थोड़ा पीछे चलें । 1921 के जन आंदोलन का इतिहास खंगाले। वह असहयोग आंदोलन, गांधी जी ने शुरू किया था । जिस नुस्खे से उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी और भारत की तुलना में कहीं अधिक बर्बर औपनिवेशिक सत्ता से लोहा लिया था, उसी नुस्खे का उन्होंने यहां प्रयोग किया । जुमा जुमा कुछ साल पहले जिस गांधी की चर्चा ड्राइंग रूमों में कुछ खास वर्ग ने होता था, उसी गांधी का यह अभिनव सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन पूरे देश मे व्याप गया और वह भारतीय राजनीति और आज़ादी की चेतना के प्रथम पुरुष हो कर स्थापित हो गए । वे तब तक अपार ही रहे जब तक ज़ीवित रहे ।
लेकिन 1921 का असहयोग आन्दोलन अपने निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति में असफल रहा । " एक साल बस एक साल अपना सब कुछ छोड़ कर देश की स्वाधीनता के लिये दे दीजिये, फिर अपना देश आजाद होगा । " अनंत कालखण्ड में एक साल होता क्या है ! छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़े, कुछ ने सरकारी नौकरियां छोड़ दीं, कुछ ने वकालत और एक ज्वार आज़ादी का फैलने लगा । लोगों को लगा कि आज़ादी अब मिली तब मिली। दूर कहीं गोरखपुर के पास चौरीचौरा में 22 पुलिस जन की हत्या कर दी गयी । अहिंसा इस आंदोलन की अनिवार्य शर्त थी। गांधी जी ने जब आंदोलन जोर पकड़ रहा था, तभी इसे स्थगित कर दिया । कुछ की समझ में ही नहीं आया क्योँ ? कुछ को लगा कि यह चौरीचौरा हत्याकांड के प्रति समर्पण था । गांधी अप्रासंगिकता की ओर बढ़ चले । उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चला। उन्होंने जुर्म स्वीकार किया और उन्हें 6 साल की जेल मिली। आज़ादी नहीँ आयी। आयी तो 26 साल बाद । अपेक्षाएं टूटी और निराशा को एक ठिकाना मिला ।
इसी तरह 1974 का जेपी आंदोलन था। मूलतः यह आंदोलन गुजरात के चिमनभाई पटेल की सरकार के विरुद्ध एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन था। एक छात्र आंदोलन मनीषी जानी नामक एक छात्र नेता के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ और धीरे धीरे पूरे उत्तर भारत मे फैल गया । जेपी उस समय उस आंदोलन के नेता थे । उनका व्यक्तित्व उस समय के सभी राजनेताओं पर भारी था । यह आंदोलन प्रारम्भ तो हुआ था, भ्रष्टाचार के खिलाफ पर धीरे धीरे यह एक विस्तृत बदलाव की आकांक्षा से भर गया और और इसे सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन नाम दिया । छात्रों ने अगुआई की। उत्तर भारत के सारे विश्वविद्यालय इसके केंद्र बन गए, और इस आंदोलन ने सन बयालीस के नायक जयप्रकाश नारायण को एक नये रूप में देखा । इंदिरा गांधी पीएम थीं । उन्होंने आपातकाल लगा दिया । जेपी सहित सभी बड़े नेता जेल गए। बहुत बड़ी संख्या में लोग निरुद्ध किये गये । अखबारों पर सेंसर लगा । यह फासीवाद की दस्तक थी। जेपी की एक बड़ी सभा पटना के गांधी मैदान में हुयी । सरकार के लाख रोक टोक पर भी गांधी मैदान की सभा सफल हुयी। दिल्ली में जिस दिन सभा हुयी थी उस दिन वह सभा सफल न हो, इस लिये, दिल्ली दूरदर्शन ने शाम को उस समय की बेहद लोकप्रिय फ़िल्म बॉबी का प्रदर्शन किया । तब टीवी का यह रूप नहीं था । टीवी पर फ़िल्म देखना और दिखाना उत्सव जैसा हुआ करता था ।
यह आंदोलन सफल रहा। 1977 के चुनाव में कांग्रेस को यूपी और बिहार में एक भी सीट नहीं मिली। इन्दिरा गांधी हार गयी। अपराजेयता एक भ्रम है । संसार मे कोई भी अपराजेय नहीं रहा है । जेपी और आचार्य जेबी कृपलानी के सम्मुख गांधी समाधि राजघाट पर नयी सरकार और सांसदों ने व्यवस्था बदलने की और संपूर्ण क्रांति के वादों को पूरा करने का संकल्प लिया । लेकिन केवल ढाई साल में ही यह संकल्प छिन्न भिन्न हो गया । यह आंदोलन भी अपने लक्ष्य को पाए बिना नष्ट हो गया । ऐसे आंदोलन इतने महान और दृढ़ संकल्प नेतृत्व के बावजूद भी टूट क्यों जाते हैं ? यह एक शोध का विषय हो सकता है । पर जेपी की प्रतिभा, उनकी संकल्प शक्ति और उनके नैतृत्व की क्षमता पर कोई संदेह नहीं उठा और न उठ सकता है। सफलता ही सदैव महानता का मापदंड नहीं होती है ।
आज जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन है । वे यूपी बिहार की सीमा पर स्थित घाघरा की गोद मे बसे गांव सिताबदियारा के थे । उस गांव में उनका स्मारक बना है । यह गांव यूपी बिहार दोनों में हैं । यूपी का जिला बलिया तो बिहार का जिला छपरा लगता है । कांग्रेस के अंदर समाजवाद की जो धारा थी, वह 1937 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के रूप में अस्तित्व में आयी । उसके संस्थापकों में थे, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया । आजादी के बाद, आचार्य नरेन्द्रदेव समाजवाद के सिद्धांतकार बने रहे पर डॉ लोहिया ने सक्रिय राजनीति को गरमाये रहा । जेपी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक थे । लेकिन आज़ादी के बाद वह सक्रिय राजनीति से उदासीन हो गए और अपनी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाने के बाद भी वह भारतीय समाजवादी आंदोलन को बहुत प्रभावित नहीं कर पाये । लेकिन जब वे सम्पूर्ण क्रांति के नायक हो कर 1974 में उभरे तो देश के सर्वमान्य नेता थे । 1974 में देश का दौरा किया, सभायें की, और पुलिस की स्वयं लाठिया भी खायीं । आज उन्ही महान जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन है ।
उनका विनम्र स्मरण !!
© विजय शंकर सिंह
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