Wednesday, 25 October 2017

25 अक्टूबर - साहिर लुधियानवी की पुण्यतिथि पर उनकी एक ग़ज़ल - लब पर पाबंदी तो है / विजय शंकर सिंह

लब पर पाबन्दी तो है ,एहसास पर पहरा तो है
फ़िर भी अहल-ए-दिल को अहवाल बशर करना तो है !!

ख़ून-ए-आदाँ से न हो , ख़ून-ए-शहीदां से ही हो
कुछ-न-कुछ इस दौर में रन्ग-ए-चमन निखरा तो है !!

अपनी ग़ैरत बेच डालें ,अपना मसलक़ छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों को ये मन्शा तो है !!

है जिन्हें सबसे ज़ियादा दावा-ए-हुब्बुल-वतन
आज उनकी वजह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है !!

बुझ रहें है एक-एक करके अक़ीदों के दीए
इस अन्धेरे का भी लेकिन सामना करना तो है !!

झूठ क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लेहत के नाम पर
ज़िन्दगी प्यारी सही , लेकिन हमें मरना तो है !!
( साहिर लुधियानवी )

1 comment:

  1. शुक्रिया आपने एक अज़ीम शख्सियत की याद दिला दी।

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