Sunday, 12 October 2014

Nobel Prize : Kailash Satyaarthee and Malala / नोबेल पुरस्कार : कैलाश सत्यार्थी और मलाला ... विजय शंकर सिंह

2014 के लिए नोबेल पुरस्कार एक भारतीय कैलाश सत्यार्थी को मिला. यह हम सब के लिए गौरव की बात है. साथ ही यह पुरस्कार पाकिस्तान की एक बालिका मलाला को भी मिला है. दोनों ही मुल्क शांति के लिए दिए गए इस पुरस्कार पर आह्लादित और गौरवान्वित हैं. हालाकि तालिबान जो एक धर्मांध और हिंसक संगठन है ने मलाला को पुरस्कार दिए जाने की निंदा की है. 
                                                                   

बात पुरानी है. लगभग पचीस साल पहले. मैं मिर्ज़ापुर में नियुक्त था. मिर्ज़ापुर और भदोही में कालीन का कारोबार चलता है. भदोही से कालीन का रिश्ता कब से बना और कैसे यह उद्योग वहाँ शुरू हुआ यह मैं नहीं बता पाउँगा.भदोही से इस कुटीर उद्योग का विस्तार मिर्ज़ापुर को पार करता हुआ घोरावल हालिया लालगंज आदि के ग्रामीण इलाकों में फ़ैल गया मिर्ज़ापुर के जिन इलाकों का मैं ज़िक्र कर रहा हूँ वह वहाँ के पिछड़े इलाके हैं. पठारी और ग्रामीण इलाके जहां छोटे छोटे बच्चे कालीन जिसे वहाँ गलईचा जो गलीचा का देसी और भोजपुरी उच्चारण है कहा जाता हैबुनने के काम में लगे थे. उसी सिलसिले में श्री सत्यार्थी अपने एन जी ओ के साथ सक्रिय थे. एक बार उनसे मुलाक़ात का अवसर चील्ह जहां कालीन का काम होता है में मिला. मैं उन्हें नहीं जानता था. उनकी क्शवि कालीन उद्योग के मालिकों ने एक अराजक और उद्योग विरोधी बना रखी थी. थोड़ी बहुत बात हुयी. उन्होंने कुछ पुलिस सहायता माँगी जो उन्हें दे दी गयी.

बात आयी गयी हो गयी. पर उनका अभियान उन इलाकों में चलता रहा. अखबारों से उनके बारे में पता चलता रहा. कालीन उद्योग में जैस तरह से कालीन की बुनाई होती हैउसमें छोटी छोटी और बच्चों की उंगलिया अपनी कोमलता के कारण अधिक उपय्क्त होती है. कालीन का कारोबार मुख्यतः कुटीर उद्योग की तरह चलता है. उनधागा तथा अन्य सामग्री लोग अपने घरों में ले जाते हैं. साथ में उन्हें डिजाइन भी दे दिया जाता है और वे एक नियत समय में निर्धारित डिजाइन के अनुसार उन्हें बुन कर जिस कारखाने से लाते हैं वहाँ वापस दे आते हैं. गाँव में छोटे छोटे बुनाई सिखलाई या प्रशिक्षण केंद्र खुले हैं जहां छोटे छोटे बच्चे इस काम में लगे रहते हैं.मज़दूरी का कोई नियम नहीं. जो दे दे वह ले लेते हैं. दर असल कुछ लोग ठेके पर ही बुनाई का काम करते हैं और इसी काम को पूरा कराने के लिए बच्चो का उपयोग करते हैं. सत्यार्थी ने इसी बाल श्रम के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई और इस शोषण को उजागर किया. बाल श्रम और शोषण असंगठित क्षेत्रों की मूल समस्या है. यहाँ कोई भी श्रम क़ानून लागू नहीं है. न तो काम के घंटे तय है न उम्र न कोई बीमा न अन्य सुरक्षा. सरकार संगठित क्षेत्र के लिए तो बहुत कुछ करती हैपर उस से कहीं अधिक व्यापक असंगठित क्षेत्र के लिए कोई ठोस योजना नहीं है.

आज जब उन्हें इसी काम के लिए नोबेल पुरस्कार मिला तो अत्यंत प्रसन्नता हुयी. बाल श्रम न हो उनका शोषण न हो यह बहुत अच्छी बात है. लेकिन बाल श्रम कोई हॉबी नहीं हैएक मज़बूरी है. ढाबोंरेलवे स्टेशन के वेंडर्स अखबार बेचतेहुए बच्चों को देखिये कोई भी शौकिया इसे नहीं करता बल्कि उनकी मज़बूरी है. फिल्म बूट पोलिश कभी देखने को मिल जाए तो देखिएगा. ऐसा नहीं कि सत्यार्थी जी ने इस समस्या को खुद ही ढूंढा और उसका समाधान कियाबल्कि उन्होंने इसे संगठित रूप से एक आन्दोलन की तरह चलाया. आज जितना सत्यार्थी छप रहे हैं और दिख रहे हैं उतना ही वह शान्ति और प्रचार से दूर रह कर काम करते रहे हैं. मिर्ज़ापुर की घटना जिसका जिक्र मैंने किया है के समय एक प्रसिद्ध कालीन व्यवसायी से जब मैंने सत्यार्थी के प्रयास के बारे में पूछा तो उन्होंने खिन्न हो कर कहा कि वह देश विरोधी ताक़तों के कहने पर भदोही के कालीन उद्योग को चौपट करने का काम कर रहे हैं. बच्चों द्वारा काम कराने पर उन्होंने तर्क दिया कि यह हुनर है जो पीढी दर पीढी मिलता है. वह तो कालीन प्रशिक्षण केंद्र चलाते हैं और बुनना सिखाते हैं. पर सच यह नहीं था. सच वही था जो सत्यार्थी कह रहे थे पर वह उस समय कम सुने जा रहे थे. आज भी जब उनको नोबेल पुरस्कार मिला है तो यह जान कार आश्चर्य नहीं हुआ कि उनका नामांकन भारत से नहीं यूरोपियन देशों से हुआ

आज विकास का मापदंड चमचमाती सड़केंफ्लाई ओवेरमंहगी कारेंआधुनिक सुख सुविधा से युक्त जीवन शैली ही है. आज फेसबुक के मालिक कहते हैं कि कनेक्टिविटी एक मौलिक अधिकार है. तो हैरानी नहीं होती. उनका देश भूखबेकारी और गरीबी के अन्धकार से निकल चुका हैं. उनकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं. उन्हें जीने की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने की जद्दो जहद नहीं करनी है. पर हमें जहां हम गरीबी की सीमा बेशर्मी से तय करते हैं वहाँ यह हमारा मौलिक अधिकार नहीं हैं. जब तक जीने की मौलिक आवश्यकताएं पूरी नहीं होंगी तब तक बाल श्रम चलता रहेगा. समय खुद ही कैलाश सत्यार्थी जैसा संवेदनशील पर जुझारू व्यक्तित्व पैदा करता रहेगा. उन्हें इस विश्व प्रसिद्ध सम्मान पर कोटिशः बधाई !!

कैलाश सत्यार्थी के साथ पाकिस्तान की एक बालिका मलाला को भी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मलाला को पढने की जिद के कारण तालिबान की गोली खानी पडीपर उच्च चिकित्सा सुविधा के कारण वह बच गयी. आज वह करोड़ों बालिकाओं के लिए प्रेणना श्रोत बन चुकी है. जब उसे गोली मारी गयी थी तो मैंने उस घटना के बाद जितना मलाला के बारे में पढ़ा तो एक कविता लिखी थी. वह कविता आज पुनः आप सब से साझा कर रहा हूँ...
                                         

वह हथेली पर जुगुनू लिए 
अँधेरे से लड़ रही है, और तुम दूर खड़े
तमाशा देख रहे हो.
तुम्हे अँधेरे पर यकीन है, पर उस जुगुनू पर नहीं.
जो चीरता हुआ अँधेरे को
एक आस की तरह टिमटिमा रहा है.
साहस को आने दो दोस्त
थोड़ी हिम्मत बटोरो
अन्धकार सदा अस्तित्वहीन होता है,केवल अभाव हैयह प्रकाश का.
कोई सूरज मार्ग दिखाने नहीं आता यहाँ, पहचानो इस चिंगारी को
शायद यह ले जाए हमें
इस सीलन और सडांध भरे अंधे गह्वर के पार.
चलो उस के साथथामों हाँथ उसका
उसकी हथेली में रोशनी बिखेरते जुगनू को देखो, कितने बीभत्स तिमिर के साथ, युद्धरत है वह !! 
-vss.

नोबेल पुरस्कारों के बारे में कुछ तथ्य और आंकड़े आप के ज्ञानवर्धन हेतु प्रस्तुत है. 
अल्फ्रेड नोबेल जिनके नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है ने डायनामाइट का आविष्कार किया था. 
अल्फ्रेड नोबेल एक अत्यंत संपन्न व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति एक ट्रस्ट को दे कर इन पुरस्कारों की स्थापना की. 
प्रारम्भ में यह पुरस्कारभौतिकीरसायन शास्त्रसाहित्यशान्तिचिकित्सा शास्त्र में दिया गयापर बाद में इसमें अर्थ शास्त्र को भी जोड़ दिया गया. 
पहला पुरस्कार 1901 में दिया गया. अर्थ शास्त्र का पुरस्कार 1969 में से देना शुरू किया गया. 
अब तक 2014 के वर्ष को छोड़ कर कुल 876 लोगों को सम्मानित किया गया हैजिसमे से 25 संस्थाएं हैं और शेष व्यक्तिगत हैं .
अब तक 2014 के वर्ष को छोड़ कर भौतिकी के लिए 107, 204 बार चिकित्सा शास्त्र और 19 बार शान्ति के लिए पुरस्कार दिए गए हैं .
जितने महानुभाओं को यह पुरस्कार मिला हैं उनकी औसत आयु 59 वर्ष है. 
सम्मानित होने वाले लोगों में से 45 महिलायें हैं. जिसमे से एक मदर टेरेसा भारत की थी. 
सम्मानित होने वालों में 256 अमेरिका और भारत के हैं जिनमे से भारतीय मूल के हैं पर भारत के नागरिक नहीं हैं. भारत के योगदान का प्रतिशत .82 है. 
2014 
के आंकड़ों को शामिल न करते हुए विलियम लारेंस ब्रेग सबसे कम उम्र 25 वर्ष के और सबसे अधिक उम्र 90 वर्ष के लियोनिद हुर्विक्ज नोबेल पुरस्कार विजेता हैं विलियम लारेंस को 1915 में भौतिकी के लिए और लियोनिद हुर्विक्ज को 2007 में अर्थ शास्त्र के लिए पुरस्कृत किया गया था. अब इस साल सबसे कल उम्र की विजेता पकिस्तान की मलाला हैं जिन्हें शान्ति के लिए पुरस्कृत किया गया है. उनकी आयु मात्र 17 वर्ष है. 
दो व्यक्ति ऐसे भी हैं जिन्होंने नोबेल पुरस्कार लेने से इनकार भी किया है. ये हैं फ्रांस के प्रसिद्ध साहित्यकार और अस्तित्ववाद के प्रणेता ज्याँ पॉल सात्र और ले डोक थो. सात्र को 1964 में साहित्य के लिए और ले डोक थो को शान्ति के लिए 1973 में चुना गया था. दोनों ने ही पुरस्कार लेने से मना कर दिया. 
सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जितने लोगों को सम्मानित किया गया है उनमे से अधिकतर लोगों की जन्म तिथि या तो 28 फरवरी है या मईयह दोनों तिथियाँ सबसे अधिक लोकप्रिय तिथि है. 

(विजय शंकर सिंह )

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