विश्व नाथ प्रताप सिंह, भारत
के प्रधान मंत्री थे. धीरू भाई अम्बानी , जो
रिलायंस के मालिक थे, उस
समय जीवित थे. वह सत्ता के बेहद करीबी शुरू से ही रहे हैं. बताते हैं कि उनकी
त्वरित विकास गाथा के पीछे, कांग्रेस
और इंदिरा गाँधी का वरद हस्त था. बाद में वह राजीव गाँधी के भी काफी निकट रहे.
धीरू भाई प्रधान मंत्री वी पी सिंह से मिलना चाहते थे, लेकिन वह यह मुलाक़ात अकेले में और
निजी तौर पर चाहते थे. उन्होंने इस के लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश करना शुरू कर
दिया पर वी पी सिंह ने कोई भी मुलाक़ात धीरू भाई से
अकेले में करने से मना दिया. यह मुलाक़ात दो व्यक्ति के बीच नहीं एक प्रधान मंत्री
और एक प्रख्यात उद्योगपति के बीच होनी थी. अंततः उद्योग्पत्यों के शिष्टमंडल से
उनकी मुलाक़ात हुयी. जो बिलकुल औपचारिक और सरकारी थी.
श्री नरेन्द्र मोदी, निजी
तौर पर किसी के भी मित्र हो सकते हैं. पर प्रधान मंत्री निजी तौर पर किसी का भी
मित्र नहीं हो सकता है. . राजा का कोई रिश्तेदार नहीं होता है. यह बहुत पुरानी
कहावत है. यह इस लिए कि उसका निष्पक्ष होना तो ज़रूरी है ही, निष्पक्ष दिखना और भी ज़रूरी है.
प्रधान मंत्री के एक एक बयान, चित्र, और देह भाषा की मीमांसा होती है.
जो विरोधी हैं वह तो करते ही है, जो
साथ हैं वह भी करते हैं. सत्ता के कॉरिडोर में अक्सर खुसुर पुसुर भरी आवाजें सब
कुछ बयान कर देती है. सचिवालय की अक्सर तीर्थ यात्रा करने वालों से आप इस की
पुष्टि कर सकते हैं.
जो चित्र मुकेश अम्बानी का, प्रधान
मंत्री की पीठ पर हाँथ रखे चर्चित हो रहा है, उसमें
मुकेश अम्बानी की आत्मीयता तो है, पर
यह निकटता,
सत्ता के उन दलालों के
कान खड़े करने के लिए काफी है, जो
परजीवी की तरह कोई न कोई टार्गेट अपने हित के लिए ढूंढते रहते हैं. उद्योगपतियों
की भी अपनी लॉबी होती है और उनके विभिन्न दबाव ग्रुप भी. सब एक दूसरे से जाहिरा
तौर पर बड़े निकट दिखते हैं, पर
वास्तव में सब एक दूसरे के प्रति सशंकित और जासूसी भी करते रहते है. इस चित्र के
कई निहितार्थ वे भी खोजेंगे. और खोज भी रहे होंगे. नौकरशाही तो घोड़े की तरह होती
ही है. वह सवार पहचानती है, और
वह यह भी परख रखती है, कि
सवार अनाडी है या मंजा हुआ. इस चित्र से मुकेश अम्बानी नौकरशाही को कोई सन्देश दें
या न दें,
पर नौकरशाही इस सन्देश
को बखूबी पढ़ लेगी.
शिखर पर पहुँचने का अलग ही सुख है, पर शिखर जो अकेलापन देता है, वह कभी कभी पीड़ित भी करता है. आज
प्रधान मंत्री श्री मोदी शिखर पर हैं. उन्हें ऐसे किसी भी क्रिया कलाप से बचना
चाहिए जो उन्हें प्रतिकूलता में प्रचारित करे. मनमोहन सिंह एक सरल और प्रतिभावान
प्रधान मंत्री थे, पर
दस जनपथ के प्रति स्वामिभक्ति, और
साष्टांग ने उनमें जो दास भाव का बीजारोपण कर दिया, उस से उनकी जो क्श्वि बनी और विक्सित हुयी, उस से वह आज भी उबर नहीं पा रहे
हैं.
(विजय शंकर सिंह)
No comments:
Post a Comment