तुम ने तो कहा था ,
भेजोगे ,
वे लम्हे , घड़ियाँ , साल,
सभी
होगा नहीं , जिन का
,
अंत कभी
.
सावन की
,
काली घटायें भी
,
फूलों की
,
शोख अदाएं भी ,
अधरों से छू कर
,
पुष्प कोई
,
मीठी सी गुड की
डली कोई
!
सभी किस्से , गीत
और बातें भी ,
वे प्रेम भरी ,
सौगातें भी
.
तुम ने तो कहा था ,
भेजोगे !
पा कर इन को हम ,
झूमेंगे ,
दुनिया , इन में हम
,
ढूंढेंगे !
एक दीप आस का
,
कब से जला कर
,
चुप चाप प्रिये , हम
बैठें हैं
!
कुछ याद करो ,
वे बीते पल ,
तुम को है , क़सम
,
अब भेजो भी !
लुछ मोल
, प्यार का
रखो भी
!
इक बात सुनो ,
खुद आ जाओ !
बन के घटा , तुम
छा जाओ
!!
जीवन के इस मरू में ,
कुछ पुष्प बिखेरो आज प्रिये !!
(विजय शंकर सिंह )
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