कभी कभी छोटे बच्चे जब मेले में जाते हैं तो वह कुछ न
कुछ लेने के लिए मचल जाते हैं. उनके माता पिता उसे उस से बेहतर चीज़ दिलवाने का
भुलावा देते हैं. बच्चा मान भी जाता है, और भूल भी जाता है. पर
उसे वह भी नहीं मिलता जिसके लिए वह जिद कर रहा था, और वह भी नहीं जिसके
लिए उस से वादा किया गया था. बच्चा बड़ा भी हो जाता है. सब कुछ बिसरा कर नयी बातों
में लग जाता है. कुछ लोग जनता को इसी अपरिपक्व मन का समझ बैठते है. खूबसूरत
क्षितिज को और इशारा करते हैं. जब कि क्षितिज स्वयं एक भ्रम है छलावा है. जो
प्राप्य नहीं है, वह
सदैव सुन्दर लगता है, आकर्षित
करता है. दूर से कूड़े का पहाड़ भी हरी भरी पहाडी लगता है.
आज दिन भर काले धन पर जो घमासान बड़की अदालत में चलेगा
उसे सुनिए. काला धन आये न आये, मनसायन तो रहेगा ही.
काला धन सदैव से भारतीय ही नहीं विश्व अर्थ व्यवस्था के लिए कैंसर की गाँठ की तरह
रहा है. जिस धन पर कर नहीं चुकाया गया है, वह काला धन है. बहुत
पहले से तनखाह के ऊपर की इनकम पूछने और जानने का जिज्ञासु भाव सब के मन में उठता
रहा है. धन कमाना, संचित
करना यह एक मानवीय प्रवित्ति है. चाणक्य ने भी इसे इंगित किया है और तभी से राजस्व
समय से और निर्धारित राशि न जमा करने के लिए दंड का प्राविधान किया गया था. आज भी
कर प्रशासन ऐसे कई कदम उठाता है जिस से करापवंचन न हो. पर अपराध करना भी एक मानवीय
प्रवित्ति है. जब तक समाज और मनुष्य रहेगा अपराध भी रहेगा. विकास के सापेक्ष यह
जटिल भी होता जाएगा और बढेगा भी.
हम विदेशों में ज़मा काले धन को ले कर चिंतित हैं. उसकी
सूची मय खाताधारकों के सोशल साईट पर वायरल बुखार की तरह फ़ैल रही है. वित्त मंत्री
जी नाम न बताये कोई बात नहीं, वह फाइल दबाये रहें, वैसे भी सचिवालय में
फाइलें दबने की परम्परा पुरानी है. सुप्रीम कोर्ट को सूची के लिए सरकार को फटकार
लगानी पड़े, पर
वह सूची पूरे आधिकार के साथ विदेशी बैंक के लेटर हेड पर छपी हुयी रमेश की मोबाइल
में मौजूद है. आप सोच रहे होंगे, जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी, अरुण जेटली जैसे
प्रसिद्ध किरदारों के बीच यह कौन है और कहाँ से नमूदार हो गया. जी, रमेश मेरा कुक है, और वह भी जन धन योजना
में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की एक शाखा में खाता खुलवा कर अपने हिस्से का पंद्रह लाख
पाने का स्वप्न लाखों देशवासियों की तरह देख रहा है. उसके लिए धन उसकी आवश्यकता की
पूर्ति का साधन ही है. जो न काला है , न लाल न सफ़ेद.
शुरू में बच्चे और मेले की कथा, आप की उत्कंठा बढ़ा रही
होगी कि, इसका
क्या सम्बन्ध है काले धन से. इसका सम्बन्ध काले धन से नहीं बल्कि इसका सम्बन्ध
थोथे आश्वासनों पर टिकी राज नैतिक दलों की मानसिकता से है. जहां हर प्रकार का
आश्वासन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. रोटी देने की बात कोई नहीं करेगा. पर चाँद
और ईश्वर देने की बात सभी करेंगे. और जनता उस अपरिपक्व मस्तिष्क के बच्चे के समान
भुलावे में आ ही जाती है. लेकिन अब के बच्चे मेले युग के बच्चे नहीं रहे. स्मार्ट
फोन के माया जाल ने उन्हें समय से पहले ही स्मार्ट बना दिया है. इस लिए अब भुलावा
देना भी कब खतरनाक हो जाए, कुछ
कहा नहीं जा सकता है.
विदेश से सूची का क्या उप्स्योग एस आई टी करती है. जुर्म
साबित होता है या नहीं, धन
वापस लाने की क्या प्रक्रिया है, आदि आदि बहुत समय लेने
वाली प्रक्रिया है. हो सकता है धन आ जाए हो सकता है, अदालतों में ही उलझ
जाए. लेकिन यह धन उद्गमित जहां से होता है उसे भी तो रोकने का प्रयास किया जाय.
हालांकि सरकार ने इ टेंडर आदि पारदर्शी व्यवस्था की शुरुआत की है. लेकिन, अभी उसका असर आने में
देर लगेगी. ऐसे धन का एक सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार है. यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं
कर रहा हूँ, सभी
को मालूम है. भ्रष्टाचार के जो मामले सामने नहीं आये हैं उनकी बात छोड़ दें, पर जो मामले जांच में
हैं, या
अदालतों में हैं उनकी ही सुध ले लें तो कुछ न कुछ असर पड़ेगा. जयललिता को सज़ा देने
में अठारह साल लगे. अभी अपील के दो अवसर उनके पास शेष भी हैं. इसी तरह के आंकड़े
अगर देश के सभी राज्यों के ए सी बी, और सतर्कता अधिष्ठानों, और सी वी सी के यहाँ से
जुटाए जाएँ तो वह हैरान करने वाला भी होगा. जब तक त्वरित और पर्याप्त दंड किसी
अपराध का नहीं मिलता है, तब
तक उस अपराध में कमी नहीं आती है. मानव मन स्वभावतः अप्राधोन्मुख होता है.
विदेश से धन लाने की जो प्रक्रिया है वह जटिल होगी.
क्यों कि उसमे दूसरे देशों का कानून, और अन्तराष्ट्रीय क़ानून
भी आड़े आ सकते हैं. वह धन योग बल से नहीं लाया जा सकता है. अतः किसी मुगालते में न
रहें. पर जो काला धन देश में पनप रहा है संचित है, और नए नए रूपों में
रूपांतरित हो रहा है, उसे
सामने लाने में, उनके
दोषियों को दंड देने में क्या बाधा है ? मेरी समझ में सिवाय
इच्छा शक्ति के कोई बाधा नहीं है. जब जांच और ज़ब्ती आदि की कार्यवाही बढ़ेगी तो
स्वतः कालेधन पर अंकुश भी लगेगा और ऐसे सफ़ेद पोश अपराधियों के विरुद्ध न केवल
वातावरण बनेगा बल्कि बहुत सी उपयिगी सूचनाएं भी मिलेंगी. अभी यह धारणा बैठ गयी है, कि शिकायत से कुछ नहीं
होता, सब
सेटिंग कर के अधिकारी निपटा देते हैं. यह बातें बरामदे में घूमने रहने वाले दलाल
फैलाते रहते हैं, हालांकि
इसमें कुछ न कुछ तथ्य भी रहता है. इस दिशा में ठोस परिणाम की गुंजाइश भी रहती है.
मेले के बच्चे के सामान अपरिपक्व मानसिकता छोडिये, और भ्रम से मुक्त रहना
सीखिए. राजनीति अब मार्केटिंग और प्रचार से युक्त हो रही है. मंच, रंग मंच में बदल रहे
हैं, नेता
मन की बात कम, नाटकों
की तरह संवाद अदायगी अधिक करने लगें है. न्यूज़ चैनेल, खबरे कम, और मनोरंजन अधिक परोसने
लगें है.
(विजय
शंकर सिंह)
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