Friday 10 October 2014

मलाला के लिए .... (पाकिस्तान की एक छोटी सी बच्ची के लिए जिसने एक आस जगाई है ) / विजय शंकर सिंह

(जब मलाला पर तालिबान धर्मांध आतंकियों ने हमला किया था तो मैंने उस घटना पर यह कविता लिखी थी। आज जब उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है तो मैं इसे पुनः आप से साझा कर रहा हूँ। )


वह   हथेली  पर  जुगुनू  लिए 
अँधेरे  से  लड़  रही   है  ,
और  तुम  दूर  खड़े ,
तमाशा  देख  रहे  हो .

तुम्हे  अँधेरे  पर  यकीन  है ,
पर  इस  जुगुनू  पर  नहीं ,
जो   चीरता   हुआ   अँधेरे  को ,
एक   आस   की   तरह   टिमटिमा   रहा  है .

साहस   को  आने   दो   दोस्त  ,
थोड़ी   हिम्मत   बटोरो  ,
अन्धकार   सदा   अस्तित्व  हीन  होता   है ,
केवल   अभाव   है  यह , प्रकाश   का  .

कोई   सूरज   मार्ग   दिखाने   नहीं  आता   यहाँ ,
पहचानो   इस  चिनगारी  को ,
शायद   यह   ले  जाए  हमें ,
इस  सीलन  और  संडाध  भरे  अंधे  गह्वर  के  पार .

चलो उस के साथ , थामो  हाँथ  उस का  ,
उस की   हथेली  में  रोशनी बिखेरते जुगनू  को  देखो ,
कितने  वीभत्स  तिमिर  के  साथ ,
युद्ध रत  है  वह  .....

(विजय शंकर सिंह )

wah hathelee par jugunu liye
andhere se lad rahee hai,
aur tum door khade,
tamaashaa dekh rahe ho.

tumhe andhere par yaqeen hai,
par is jugunu par nahin,
jo cheerataa huaa andhere ko,
ek aas kee tarah timtimaa rahaa hai.

saahas ko aane do dost,
thodee himmat batoro,
andhkaar sadaa astitwa'heen hotaa hai,
kewal abhaaw hai yeh, prakaash kaa.

koi sooraj maarg dikhaane nahin aataa yehaan,
pahachaano is chingaaree ko,
shaayad ye le jaaye hamein,
is seelan aur sandaadh bhare andhe gahwar ke paar.

chalo uske saath, thaamo haanth us kaa,
us kee hathelee mein roshanee bikherate jugnu ko dekho,
kitne veebhats timir ke saath,
yuddh rat hai wah.....

-vss

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