Thursday 28 April 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास (8)

वर्ग-भेद। यह हज़ारों वर्ष से दुनिया में कायम है। रोम जैसे छोटे से राज्य की संरचना ही वर्ग-भेद पर बनी थी। दो-चार नहीं, बल्कि दर्जन वर्ग थे। जबकि सभी मिला-जुला कर एक जैसी ही नस्ल के थे, एक जैसा रंग, एक ही संस्कृति। फिर भी, उनके पुरोहितों, उनके सामंतों और शाही परिवार का ओहदा कहीं ऊँचा था। उनके महल-नुमा घर होते, जिसमें विशाल आगार, कई कमरे और लगभग पचास दास-दासियाँ होती। उनके अधिकार में कई खेत और उन खेतों में परिश्रम करते किसान होते। वे टोगा पहन कर सीनेट में बैठते या किसी उच्च पद पर होते।

इसके विपरीत रोम के सर्वहारा वर्ग के बड़े परिवारों को भी एक कमरे में रह कर संतोष करना होता। कइयों के पास तो वह भी नहीं थी। गणतंत्र में भी उनके अधिकार सीमित थे, और उन्हें किसी उच्च वर्ग के व्यक्ति को ही ‘ट्रिब्यून’ के लिए चुनना होता। ऐसे भी क़िस्से मिलते हैं कि सामंत उनका खयाल रखते थे, लेकिन यह उनके सामंतों पर आश्रित होने को ही सत्यापित करता है।

विडंबना यह कि आम जनता का विभाजन राजा सर्वियस ने किया, जो स्वयं दास-पुत्र थे। उनकी चर्चा मैंने पहले की है। मुमकिन है कि कुलीनों के समर्थन से अपनी सत्ता को मज़बूत करने के लिए किया हो; या सेना की बेहतर संरचना के लिए किया हो। उन्होंने आर्थिक आधार पर छह वर्ग बनाए, जो सेना में भिन्न-भिन्न भूमिका रखते। पहले वर्ग को हेल्मेट, कवच, तलवारें आदि मिलती। दूसरे को कवच नहीं मिलता। इसी तरह किसी को सिर्फ़ भाला, और किसी को बिगुल बजाने मिलता। 

आखिर वर्ग वह था, जो सबसे गरीब था। उन्हें सेना से मुक्त रखा जाता, और वे बंधुआ मजदूर बन कर काम करते। उनके लिए कहा जाता कि ये सिर्फ़ प्रोल (prole) यानी बच्चा पैदा करने के लिए है। उसी से शब्द जन्मा प्रोलिटैरियट यानी सर्वहारा। पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह विभाजन कायम रहा।

गणतंत्र बनने के बाद ब्रूटस और कौलिनेटस पहले प्रधान बने। यूँ तो कौलिनेटस की पत्नी के बलात्कार से ही गणतंत्र की नींव पड़ी थी; लेकिन चूँकि वह क्रूर राजा टारक्विन के परिवार से ही थे और वही उपनाम रखते थे, इस कारण उन्हें पद त्यागना पड़ा। ब्रूटस की भी मृत्यु हो गयी।

अब इस कमजोर गणतंत्र पर चारों तरफ़ से हमले होने लगे, और इस कारण आम जनता खेतों को छोड़ कर युद्ध लड़ने लगी। कई सैनिक युद्ध में मर जाते, और उनका परिवार अनाथ हो जाता। सामंत उनके खेत हड़प लेते। उनकी ग़ैरमौजूदगी में उनकी पत्नी और बहनों के साथ ज़बरदस्ती भी की जाती। जब पानी सर से ऊपर जाने लगा, तो आखिर हुआ- विद्रोह। 

यह विद्रोह किसी लाठी-भाले से नहीं हुआ। बल्कि, एक दिन जनता ने यह निर्णय लिया कि वह रोम छोड़ कर चले जाएँगे। वे रातों-रात बोरिया-बिस्तर बाँध कर रोम से चले गए। सड़कें वीरान हो गयी, दुकानें बंद हो गयी, खेत सूने पड़ गए। जब रोम के कुलीन सो कर उठे, रोम किसी मरघट की तरह दिख रहा था।

आखिर रोमन कुलीन उन्हें मनाने के लिए लिए उस पहाड़ी पर गए, जहाँ जनता जाकर बस गयी थी। सीनेटर मेनेनियस ने वहाँ उन्हें कहा,

“एक क़िस्सा सुनो। एक दिन शरीर के सभी अंगों ने सोचा कि हम हाथ लड़ते हैं, हम दाँत चबा कर देते हैं, हम जीभ निवाला बनाते हैं, और यह पेट आराम से बैठ कर सिर्फ़ खाता है। उन अंगों ने यह निर्णय लिया कि अब हम काम नहीं करेंगे, पेट भूखा मर जाएगा। लेकिन, अंतत: उस पेट को भूखा मारने के फेर में शरीर सूखा पड़ता गया और सभी एक साथ मर गए।”

इस कथा के साथ उन्होंने कहा कि रोम अब यह ध्यान रखेगा कि पेट से चीजें हर अंग तक पहुँचे, और पूरा शरीर स्वस्थ रहे। इस बात की तस्दीक़ के लिए रोम में बारह तख़्तियाँ (Twelve tables) टांगी गयी, जो एक तरह से उनका संविधान बना। उसमें जनता के अधिकार और सीमाएँ स्पष्ट रूप से लिखी गयी।

यह शुरुआत थी एक गण-तंत्र को जन-तंत्र में बदलने की। रोम को वे चार अक्षर देने की, जो उस समय से आज तक रोम की गली-गली में उकेरे दिख सकता है। 

SPQR - Senatum Populis Que Romanus अर्थात संसद और रोम की जनता

अब इन्हीं अक्षरों के झंडे बना कर रोम को कई युद्ध लड़ने थे। एक छोटे से नगर को साम्राज्य में बदलना था। कई बार गिर कर फिर से खड़ा होना था। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रोम का इतिहास (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/7.html 
#vss 

No comments:

Post a Comment