Tuesday 25 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 40.


           चित्र: सनम, मुर्तज़ा, बेनज़ीर भुट्टो

अगर भारत के प्रधानमंत्री का पाकिस्तान-कनेक्शन निकल जाए, तो उनकी सरकार गिर जाएगी। अगर ऐसा पाकिस्तान में हो, तो वहाँ भी सरकार गिरना तय है। नवाज़ शरीफ़ यह जानते थे कि भुट्टो परिवार बड़ी आसानी से इस जाल में फँस सकते हैं। यह कहानी भारतीय इतिहासकार तो खुल कर नहीं दर्ज करना चाहेंगे, मगर मैं देवनागरी लिपि में लिख देता हूँ। 

इंदिरा गांधी की हत्या से पहले ही राजीव गांधी एक ‘पंजाब थिंक टैंक’ का हिस्सा थे, जो ख़ालिस्तानी आंदोलन और पाकिस्तान के सूत्र तलाश रहे थे। यह कोई रहस्य नहीं कि जिया-उल-हक़ और आइएसआइ भिंडरावाले को न सिर्फ समर्थन, बल्कि हथियार भी मुहैया करा रहे थे। इस पर विस्तृत चर्चा मैंने ‘ब्लूस्टार: अस्सी के दशक का भारत’ में की है। 

जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तो राजीव ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में सिख-विरोधी हिंसा में भूमिका निभायी। बचाव की दलीलें भी मिल जाएगी, लेकिन राजीव गांधी इन आरोपों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकते। घुमा-फिरा कर लोगों ने लिखा है कि वह उसके बाद पाकिस्तान से हिसाब चुकता करना चाहते थे। जैसे जनरल जिया ख़ालिस्तान आंदोलन को शह दे रहे थे, राजीव भी पाकिस्तान के खिलाफ़ कुछ ऐसा ही करना चाहते थे। इसके लिए जो प्यादे इस्तेमाल होने वाले थे, वह और कोई नहीं, बेनज़ीर के भाई मुर्तज़ा भुट्टो थे।

मुर्तज़ा की जीवनी में राजा अनवर लिखते हैं (जो अन्य संदर्भ में भी है) कि राजीव गांधी और ‘रॉ’ ने मिल कर अल-ज़ुल्फ़िकार उग्रवादी संगठन को सहयोग दिया। 1986 में उस संगठन के मुखिया मुर्तज़ा भुट्टो ने ‘सिंधु देश’ की आज़ादी का नारा बुलंद कर दिया। सिंध के कई मुहाजिर और सिंधी उनका समर्थन कर रहे थे।

उस पुस्तक के अनुसार रॉ ने बाक़ायदा दिल्ली में उनके कुछ कमांडरों के रहने का इंतज़ाम किया, जिनमें तीन थे एहसान भट्टी, सोहेल सेठ, और सरदार मोहम्मद सलीम। हालांकि ये दिल्ली कार्यालय में बैठ कर बस बॉलीवुड फ़िल्में देखते, शराब पीते, और कुछ शहीदों (?) की तस्वीरें लटका कर माहौल बनाए रहते। इससे पहले भी मुर्तज़ा और शाहनवाज़ भुट्टो दिल्ली हवाई अड्डे पर राजीव से मुलाक़ात कर चुके थे। सबसे बड़ा खुलासा तो यह कि स्वयं मुर्तज़ा काफ़ी समय दिल्ली में ही रहे और रॉ के नियंत्रण में रहे। 

जिया-उल-हक़ के बेटे ने पिछले वर्षों में दावा किया कि रॉ उनके पिता की हत्या में शामिल हो सकता है। उन्होंने कुछ आधे-अधूरे तथ्य भी दिए हैं, जिन पर विश्वास नही किया जा सकता। मैंने पहले लिखा है कि जनरल जिया ने राजीव गांधी को परमाणु बम की धमकी दी थी। क्या इसलिए राजीव उन्हें रास्ते से हटाना चाहते थे और भुट्टो परिवार को गद्दी पर बिठाना चाहते थे? 

बहावलपुर में जनरल जिया की मृत्यु हुई, जो भारत के एक महत्वपूर्ण सेना पोस्ट गंगानगर (राजस्थान) की सीमा पर है। क्या भारत से ही उनके विमान को उड़ाया गया? इस बात के कोई सबूत, कोई संदर्भ नहीं। 

लेकिन, एक बात के संदर्भ हैं। जनवरी 1987 में बीस सिंधी राष्ट्रवादी बहावलपुर के रेगिस्तान में चलते हुए भारत के गंगानगर पहुँचे। उसके बाद जुलाई में पुन: कुछ पाकिस्तानी युवक आए। कथित रूप से इन सभी को प्रशिक्षण देने के लिए भारतीय सेना ने गंगानगर में कैंप बनाए। हद तो यह कि इनका मुखिया बेनज़ीर भुट्टो का निजी बॉडीगार्ड मोहम्मद रजार था।

ठीक अगले वर्ष इसी बहावलपुर में जिया-उल-हक़ का ‘पाक 1’ जैसा मज़बूत राष्ट्रपति विमान क्रैश कर गया। चश्मदीदों ने हवा में विस्फोट भी देखा। संभव है, सब कुछ संयोग हो। संभव है राजा अनवर गप्प हाँक रहे हों। उन्होंने भी यह नहीं लिखा कि अल-ज़ुल्फ़िकार या भारतीय सेना ने यह विमान उड़ाया। 

लेकिन, ठीक अगले दिन मुर्तज़ा भुट्टो के आदेश पर कराची के तेल रिफ़ाइनरी को उड़ा दिया गया। वह जनरल जिया की मृत्यु पर कुछ आतिशबाजी चाहते थे। यह आग तो इतना भयावह था कि कई दिनों तक दूर-दूर तक धुआँ दिखता रहा। यह रिफ़ाइनरी उड़ाने वाले रफ़ीक मेमन थे। बेनज़ीर भुट्टो जब प्रधानमंत्री बनी, तो वही रफ़ीक मेमन उनके आवास ‘बिलावल हाउस’ के रक्षक बन गए और तब तक रहे, जब तक बेनज़ीर से गद्दी छिन नहीं गयी।

अगर ये बातें सच हैं तो रॉ पर उंगली नहीं उठ सकती। वे तो शत्रु देश के साथ इस तरह की गतिविधियाँ कर ही सकते हैं। राजीव गांधी ने भी अगर इस तरह की कूटनीति अपनायी, तो यह ज़ंग में जायज़ कही जा सकती है। 

मगर भुट्टो परिवार पर उंगली ज़रूर उठ सकती है, जो भारत की सहायता से पाकिस्तान को सिर्फ़ इसलिए तोड़ना चाहते थे, क्योंकि जनरल जिया ने उनके पिता को फांसी दी थी। 

राजा अनवर लिखते हैं, “इन दो परिवारों (गांधी और भुट्टो) ने देश के गरीबों और भोली जनता के विश्वास को भुना कर अपने परिवारों का राज कायम किया। देश गरीब ही रहा, ये अमीर होते गए।”

अगर अमीर होते गए, तो धन कहाँ रखा? नवाज़ शरीफ़ और वीपी सिंह उनके तिजोरियों की कुंजी तलाश रहे थे। एक ने राजीव की पत्नी सोनिया का नाम उछाला, तो दूसरे ने बेनज़ीर के पति आसिफ़ अली ज़रदारी का। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 39.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/39.html
#vss 


No comments:

Post a Comment