Tuesday 18 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 33.


पाकिस्तान इस्लाम के आधार पर ही बना था, लेकिन उसकी जड़ तो भारत में थी। अरब या ईरान से वे खुद को अगर जोड़ते भी तो कई पुश्तें पीछे जाना पड़ता, फिर भी जुड़ना कठिन होता। विभाजन के बाद दशकों तक भारत से मुसलमान पाकिस्तान जाते रहे। मसलन वहाँ के परमाणु बम प्रोजेक्ट में नए-नए जुड़े अब्दुल क़ादिर ख़ान पचास के दशक में भोपाल से उठ कर पाकिस्तान गए थे। उनके क्रिकेट टीम कप्तान आसिफ़ इकबाल तो भारत में घरेलू क्रिकेट खेल चुके थे, और पाकिस्तान के खिलाफ़ भी खेले थे। वह साठ के दशक में ही पाकिस्तान पहुँचे और वहाँ लंबे समय तक कप्तानी की।

एक पाकिस्तानी बुजुर्ग महिला ने कहा कि उन दिनों पाकिस्तानी महिलाएँ बुरका नहीं पहनती थी। वे साड़ियाँ पहनती, और बिंदी लगाती थी। युवतियाँ पैंट पहनती। लाहौर और कराची में स्कूल जाती लड़कियाँ फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती।

जिया-उल-हक़ ने यह महसूस किया कि पाकिस्तान की ताक़त इस्लाम ही है। उनका मानना था कि अगर इस्लाम अपने रूप में होता तो बांग्लादेश कभी अलग न होता।

भुट्टो और जिन्ना ने धर्म को राजनीति का जरिया बनाया, लेकिन वे स्वयं तो अंग्रेज़ी तालीम के लोग थे, और निजी जीवन में ख़ास मज़हबी नहीं थे। जबकि जिया-उल-हक़ के पिता मौलवी थे, और वह स्वयं पक्के नमाज़ी थे जो ब्रिटिश फौजी स्कूल में भी नमाज़ पढ़ना नहीं भूलते। वह एक धर्मनिष्ठ पद्धति की ओर पाकिस्तान को ले जा रहे थे। यहाँ भी औरंगज़ेब से साम्य है।

जिया-उल-हक़ ने पाकिस्तान के हर स्कूल में कुरान की शिक्षा अनिवार्य कर दी। हालाँकि वह भुट्टो ने भी काग़ज पर कर दी थी, मगर अब सख़्ती से पालन हो रहा था। पाकिस्तान में पहली बार शरिया कानून लाया गया, जब चोरी करने पर हाथ काटने और विवाहेतर संबंध पर सौ कोड़े मारने जैसी सजाएँ लायी गयी। उलेमाओं को सरकारी संस्थाओं में उच्च पद दिए गए। महिलाओं पर गाज सबसे अधिक गिरी, जिनमें एक लूपहोल ऐसा भी था कि बलात्कृत महिलाओं को सजा दी जाती, मगर बलात्कारी छूट जाता।

सभी पाकिस्तानी वैतनिक/कमाऊ नागरिकों को ज़कात और उश्र जैसे कर देने अनिवार्य कर दिया गया। बैंकों में ब्याज की प्रथा खत्म कर दी गयी, और फ़ायदे-नुकसान का ब्यौरा मिलता। कॉलेजों और सभी सार्वजनिक स्थलों पर नमाज़ के लिए विराम लिया जाता, और नमाज़ के लिए स्थान तय किए गए।

जिया-उल-हक़ ने पहली बार पाकिस्तान को अरब देशों के समकक्ष एक पक्का मुसलमान देश बना दिया। अब वहाँ भी रमज़ान के महीने में उसी तरह नियम होते, जैसे अरब देशों में थे। यह सब भले रूढ़िवादी नज़रिया लगे, मगर पाकिस्तान को उसकी पहचान दिलाने में इसका अपना महत्व है। अब वे औपचारिक रूप से स्वयं को भारतीयता से काट चुके थे। यही कारण था कि एक जनमत में 99 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि वे इस्लामीकरण से खुश हैं।

अगला चरण था ‘जिहाद’ (धर्मयुद्ध)। यूँ तो कश्मीर में जिहादी पहले भी जाते रहे थे, मगर उससे पूरा पाकिस्तान प्रभावित नहीं था। पाकिस्तान को एक करने के लिए एक ऐसा युद्ध ज़रूरी था, जिसमें वे बाकी अरब देशों से कंधा मिला सकें।

दिसंबर 1979 में सोवियत का अफ़ग़ानिस्तान में अतिक्रमण शुरू हुआ और साथ ही शुरू हुआ जिहाद। यह जिहाद एक ऐसा जरिया बना, जिसने पाकिस्तान को धार्मिक एकता दी, अमरीकी डॉलरों की खूब वर्षा हुई और सोवियत भी विखंडित हो गया।

अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के कथनों से गुजरे तो साम्यवाद के ताबूत में आखिरी कील जनरल जिया उल हक़ ने ठोकी। भले ही उस कील की गूँज वर्षों बाद न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में भी सुनाई दी।
(क्रमश:)

प्रवीण झा
(Praveen Jha)

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 32.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/32.html
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