Tuesday 30 March 2021

ग़ालिब - करे है बादा तेरे लब से / Kare hai baadaa tere lab se - Ghalib / विजय शंकर सिंह


ग़ालिब - 119.
करे है बादा तेरे लब से, कस्बे रंगे फू रोग
खते पियाला सरासर निगाहें गुलचीं है !!

Kare hai baadaa, tere lab se, kasbe range fuu rog
Khate piyaalaa saraasar nigaahen gulchiin hai !!
- Ghalib

मधु तेरे होंठों के स्पर्श से और भी मदिर हो गया है। मधु चषक, (शराब के प्याले) पर खिंची हुयी रेखाएं, फूल चुनने वाले व्यक्ति के पारखी आंखों से की तरह, उक्त चषक में भरी मदिरा की मादकता को और भी बढ़ा दे रही हैं।

इस शेर में मदिरा यानी मधु, जब पीने वाले के सुंदर अधरों को स्पर्श करती है तो उसका माधुर्य और बढ़ जाता है। यदि मदिरा में नशा है तो उसका पान करने वाले होंठों में भी कम नशा नही है। साथ ही प्याले पर जो खूबसूरत नक्काशी है, वह भी ऐसा ही है जैसे, किसी गुलचीं, ( फूल चुनने वाले ) ने, बेहत इत्मीनान और हुनरमंदी से उन्ही फूलों को चुना हो जिंसमे, सुगंध और नशा अधिक है।

शराब, मिर्ज़ा ग़ालिब की कमज़ोरी थी, और शौक़ भी। शराब, साकी, प्याला, आदि के जो भी प्रतीकात्मक सूफियाना अर्थ हों, उससे अलग होकर ग़ालिब की जीवन यात्रा पर नज़र डालें तो शराब ने उन्हें तबाह ही किया है। ग़ालिब का कलाम सूफियाना असर लिये हुए होता है। वे रुमी, उमर खैयाम, आदि महान सूफी शायरों के प्रतीकों को अपनी शायरी में, अक्सर इस्तेमाल करते नज़र आते हैं, पर, आदत में बैठ चुकी इस शराबनोशी का, उन्हें मलाल भी रहा है। वे कहते भी है,

ये मसाइले-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान ग़ालिब,
तुझे हम वली समझते जो न बादाख़्वार होता !! 

यानी वे एक संत की ही तरह समझे जाते, यदि वे शराब न पीते होते तो। क्योंकि बातें तो वे वली यानी सूफी संतों की तरह ही करते हैं।  

अधरों के माधुर्य की थीम पर उर्दू का एक और खूबसूरत शेर, रियाज़ खैराबादी का भी है। उसे पढिये, 

ऐसी दो आतशा मय ए गुलगूँ कहां नसीब,
आदत बुरी पड़ी तेरी जूठी शराब की !!

ऐसी दो बार खिंची हुयी शराब (आसुत मदिरा ) कहां मेरे नसीब में है, पर मेरी आदत तो तेरे होंठों से लग कर पी हुयी जूठी मदिरा का पान करने की पड़ी है।

एक तो मदिरा का अपना नशा और दूसरे प्रेमिका के नशीले होंठों से स्पर्श से द्विगुणित उस प्याले में भरी शराब का नशा, ग़ालिब ने इसे ही बेहद खूबसूरती से बयां किया है। यही ग़ालिब की अंदाज़ ए बयानी है और यही उन्हें सबसे अलग करती भी है।

( विजय शंकर सिंह )

No comments:

Post a Comment