Saturday 27 March 2021

व्यक्तित्व - काली एलिस की दास्तान

एलिस के माता-पिता को उनकी मातृभूमि बारबाडोस से गुलाम बनाकर अमेरिका लाया गया था. 1686 में उसके जन्म के वक्त वे पेन्सिल्वेनिया को बसाने वाले और गुलामों का व्यापार करने वाले विलियम पेन के नजदीकी दोस्त और फिलाडेल्फिया में रहने वाले सैम कारपेन्टर के गुलाम थे. जाहिर है एलिस ने भी उसी की गुलामी करनी थी. पांच साल की उम्र में उसे एक शराबखाने में छोटे-मोटे कामों पर लगा दिया गया. बूढ़ी हो चुकने पर वह याद करती थी कि आठ साल की उम्र में उसने एक दफा खुद विलियम पेन का पाइप सुलगाया था.

दस साल की होने पर सैम कारपेन्टर ने उसे फिलाडेल्फिया कुछ दूर स्थित बेन्सालेम भेज दिया जहाँ डेलावेयर नदी पर उसकी नावें चला करती थीं. डंक्स फैरी में चप्पुओं से चलाई जाने वाली इन विशाल नावों का इस्तेमाल लोगों के अलावा घोड़ों और अन्य पालतू पशुओं को बेन्सालेम से बेवर्ली लाने-ले जाने में किया जाता था. एलिस ने अगले अनेक दशकों तक इन नावों में आने वाली सवारियों से पैसा वसूलने का काम किया. इस वजह से एलिस को एलिस ऑफ़ द डंक्स फैरी के नाम से जाना जाने लगा. कोई उसे काली एलिस भी कहता. बूढ़ी हो जाने पर उसे कारपेन्टर परिवार की रसोई के काम में खपाया गया और बहुत बूढ़ी हो जाने पर वह ओल्ड एलिस कहलाई.

एक सामान्य दास और उसकी संततियों का यही जीवन हुआ करता था लेकिन एलिस ख़ास थी - बहुत-बहुत ख़ास.

सबसे पहली बात तो यह कि एलिस एक सौ सोलह साल तक ज़िंदा रही. उसकी मृत्यु के दो साल बाद यानी 1804 में टॉमस आइसेया ने अमेरिकी इतिहास के उल्लेखनीय लोगों पर दो खंडों का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा – ‘एक्सेन्ट्रिक बायोग्राफी’. इस किताब के दूसरे खंड में केवल ऐसी विख्यात महिलाओं का जीवन परिचय दिया गया है. इन महिलाओं का  में जोन ऑफ़ आर्क से लेकर कांस्टेंसिया ग्रियर्सन तक शामिल हैं. एलिस नाम की उस उस गुलाम काली औरत में जरूर कुछ ऐसा तिलिस्म था कि  ‘एक्सेन्ट्रिक बायोग्राफी’ के इस दूसरे खंड का पहला ही अध्याय उस के बारे में है.

काली एलिस को फिलाडेल्फिया का पहला वाचिक इतिहासकार माना जाता है क्योंकि उसने अपनी स्मृति में फिलाडेल्फिया के बसने का इतिहास किसी फोटोग्राफर की सी डीटेल्स के साथ दर्ज कर रखा था.

वह एक बेहतरीन किस्सागो थी और तीन शताब्दियों में पसरे अपने जीवन में उसने फिलाडेल्फिया को एक ग्रामीण जंगली इलाके से पहले कस्बे, फिर एक बड़े नगर और अंततः अमेरिका की राजधानी में तब्दील होते देखा था.

फिलाडेल्फिया में आने वाले नए लोगों के बच्चे और उनकी औलादें अपना और अपने पुरखों का इतिहास जानने की नीयत से एलिस के पास पहुंचा करते थे. एलिस वहां बनाए गए क्राइस्टचर्च गिरजाघर के भी सबसे पुराने सदस्यों में एक थी. ‘एक्सेन्ट्रिक बायोग्राफी’ में दर्ज है कि वह पिचानवे की आयु में भी अपना घोड़ा भगाते हुए हर इतवार को वहां आया करती थी. उसे लिखना-पढ़ना नहीं आता था लेकिन बाइबिल के उद्धरण उसे रटे रहते थे जिनका इस्तेमाल वह किस्से सुनाते समय किया करती थी. उसने बाइबिल के वे हिस्से भी कंठस्थ कर रखे थे जिनमें मानव-मात्र की स्वतंत्रता और दासता के अंत की बातें कही गयी थीं.

बहुमूल्य स्मृतियों से अटी अपनी याददाश्त की मदद से बुने गए अपने नायाब किस्सों में वह अमेरिका के बसने की कहानी सुनाती थी और उसके अपने जीवनकाल में उसकी साख इंग्लैण्ड, स्पेन और लैटिन अमेरिका तक पहुँच गयी थी. उसकी बुद्धिमत्ता और उद्यमिता की अनेक कथाएं अब अमेरिकी किंवदंतियां बन चुकी हैं. मिसाल के लिए यह कि उसने डंक्स फैरी का प्रबंधन करते हुए अपने मालिकों के लिए एक पूरा मत्स्य-व्यवसाय अकेले बूते पर खड़ा कर दिखाया था.

जब वह बयानवे साल की हुई उसकी दृष्टि चली गयी. अगले दस साल तक वह पूरी तरह अंधी रही. काम करना उसने तब भी नहीं छोड़ा और रसोई के लिए हर रोज ताजी मछली पकड़ कर लाने की जिम्मेदारी सम्हाल ली. किसी चमत्कार की तरह एक सौ दो साल की आयु में उसकी आँखों की ज्योति वापस लौट आई. उसकी हाजिरजवाबी, बुद्धिमत्ता और उदारता का असर था कि गोरों के बीच भी उसे खासी इज्जत और लोकप्रियता हासिल हुई. एलिस के जीते-जी उसकी कहानियाँ छपना शुरू हो गयी थी. अखबारों और पत्रिकाओं का सौभाग्य देखिये जो उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में एक ऐसी औरत का इंटरव्यू कर सकते थे जो सत्रहवीं शताब्दी के आख़िरी सालों में जवान हुई थी.  

अमेरिका से दासता का उन्मूलन होने में एलिस की मौत के बाद तिरेसठ साल और लगे. तब तक अमेरिका अपने झूठे-सच्चे इतिहासकार पैदा कर चुका था. जिन किशोरों ने एलिस के मुंह से अमेरिकी इतिहास के निर्माण की आँखों देखी कहानियां सुन रखी थीं, उनमें से ज्यादातर तब तक मर चुके थे या एलिस उनकी स्मृतियों से अलोप हो चुकी थी. अमेरिकी समाज के इतिहास में एलिस की नहीं विलियम पेन, जॉर्ज वाशिंगटन और बेंजामिन फ्रेंकलिन की आवाजें सुनने को मिलती हैं लेकिन हालिया दशकों में आई स्त्री-चेतना के चलते न केवल काली एलिस की जीवनी लिखी जा चुकी है, उसका स्मारक बना दिया गया है और 1958 में जन्मी अमेरिकी कवयित्री गेल जैक्सन ने एलिस पर एक कविता भी लिखी है.

गुलाम होने के बावजूद अपने समय के क्रूर गोरे समाज में एक अनपढ़ काली बुढ़िया जितना आत्समम्मान पा सकने का सपना देख सकती थी, एलिस ने उससे हजार गुना हासिल कर दिखाया. इसका सबूत यह है कि ‘एक्सेन्ट्रिक बायोग्राफी’ में उसका पोर्ट्रेट तक छपा है. उस ज़माने में पोर्ट्रेट केवल राजकुमारियों और रईस मुटल्ली औरतों के बनाए जाते थे.

अशोक पांडेय
( Ashok Pandey )


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