Thursday 18 March 2021

दक्षिणपंथ और वामपंथ - 2 - समाज मे ऊँच नीच और वर्ग विभाजन

जैसा कि हम सब जानते है कि वर्तमान परिपेक्ष्य में हमें समाज मे जो वर्ग विभाजन या ऊँच नीच देखने को मिलता है ये कोई अचानक से आया परिवर्तन नही है। न ही किसी आदिपुरुष के द्वारा उत्पन्न हुआ है जैसा कि प्रचारित किया जाता है ( ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण भुजा से क्षत्रिय जांघ से वैश्य और पैर से शूद्र )। न ही इस पृथ्वी पर पहला जीव मानव है जैसा कि हर एक धर्मग्रंथ में वर्णित है। आज हम जानते है कि बंदर (एप्स यानी चिम्पैंजी गोरिल्ला) से विकसित हुआ होमोसेपियंस के सफर को देखे तो इसकी उत्पत्ति से लेकर लाखो साल तो इसने संघर्ष में ही निकाल दिए आदिम युग का मानव शिकार करता था और उसी के भरोसे जीवन यापन करता था। समय के साथ कृषि के क्षेत्र में आये बड़े बदलाव के कारण जल्द ही बड़े बड़े कबीलों का निर्माण होने लगा, यहां साथ रहकर वो खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करने लगा। ये समझ सकते है कि छोटे स्तर पर ही सही एक समाज का निर्माण होने की प्रक्रिया का आरंभ मानव कर चुका था। इसमें से कुछ लोग खाना उपलब्ध करने का काम करते थे, तो कुछ लोग कबीले की रक्षा करने का। हर एक काम जरूरी था। इस समय सब लोग बराबर थे। लेकिन रक्षा करने वालों ने अपनी शक्ति के बल पर खुद को दूसरों से ऊपर रखना शुरू कर दिया। वे लोग राज करने लगे। और यही से समाज में सोशल स्ट्रैटिफिकेशन, यानि सामाजिक ऊँच-नीच की शुरूआत हुई। यही से वो खेल स्टार्ट हो चुका था जो खुद को दूसरों से बेहतर और श्रेष्ठ सिद्ध करने का अंतहीन व्यवस्था का परिचालक बना। इसी समय एक ऐसा वर्ग हुआ, जिसने बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के दूसरों पर अपनी धौंस जमाई। उस समय का मानव प्रकृति और दुनिया को समझा नहीं था जैसा कि आज विज्ञान से समझ पाया है। उस समय प्राकृतिक घटनाएं जैसे बारिश, सूखा, आग, तूफ़ान, बीमारी, मानसिक रोग के पीछे किसी अदृश्य शक्ति का हाथ माना जाता था। सामाजिक व्यवस्था में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने वाला वो वर्ग जो लोगों की रक्षा करता था ज़ाहिर है वो भी इन सभी प्राकृतिक घटनाओं से डरता था। इसी के क्रम में धार्मिक वर्ग ने ये विश्वास हासिल कर लिया कि इस अदृश्य शक्ति से निपटने के तरीके इन्हें पता है। इनके पास ऐसे उपाय हैं, जिनसे आप अदृश्य शक्ति के गुस्से से बच सकते हैं। ज़ाहिर है कि यह सब एक वरदान पाने जैसा था। इस प्रकोप से बचने लिए लोग इस धार्मिक वर्ग को कुछ भी देने को तैयार थे। यही वो समय था जब इन घटनाओं को आसमानी(ईश्वरीय) प्रकोप कहकर सिद्ध किया गया। चूंकि ये घटनाएं आसमान में घटित होती थी तो आसमानी शक्तियों को ईश्वर का नाम दिया गया और यही से अलग अलग ग्रंथो (ऋग्वेद,जिन्द अवेस्ता,ओल्ड टेस्टामेंट, ग्रीक आदि) में प्रकृति रूपी ईश्वर मिलने की बात मिलती है। जिसका रचियता धार्मिक वर्ग था। इस धार्मिक वर्ग ने जल्द ही समाज मे खुद को स्थापित कर लिया। और इस तरह इन्होंने अपना वर्चस्व कायम करना शुरू किया। खेती करने और कबीलाई जीवन मे गुणोत्तर बढ़ोतरी के कारण व्यापार वर्ग जो कि तीसरे पायदान पर आ गया वही अन्य तरह के सभी कार्य को करने वाला मजदूर और कर्मकार वर्ग चतुर्थ वर्ग का अंग बना। ये वर्ग विभाजन किस आधार पर हुआ उसको आप समझ ही गए होंगे। चूंकि अब वर्ग विभाजन स्थापित हो चुका था।

शुरुआती समय मे ये वर्ग विभाजन कर्म के आधार पर तय हुआ लेकिन पद की लालसा और इच्छा की भूख ने इसको हाथ से जाने नही दिया। आप सोचिये एक बार अगर कोई व्यापारी बन जाए, तो उसके बेटा-बेटी को भी उसको व्यापार विरासत में मिलता है। वकील के बच्चे उसकी लॉ प्रैक्टिस को सँभालते हैं। डॉक्टर के बच्चे उसके अस्पताल के मालिक बन जाते हैं। एक बार हाथ में आई हुई चीज़ को कौन हाथ से जाने देगा। इसी तरह से इन शासक और धर्म वर्ग वालों ने भी अपनी शक्ति अपनी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करनी शुरू कर दी। यानि बचपन से ही उन्हें ये विशेषाधिकार प्राप्त होने शुरू हो गए। यहाँ से शुरु हुआ जन्म के आधार पर वर्ग विभाजन। जिसे बाद में एक संहिता में कड़ाई से लागू करने के लिए जोड़ दिया गया और उसे ईश्वरीय वाणी कहा गया। हर एक ओर समाज ऊँच नीच के चंगुल में फंस गया। उसके बाद समाज मे इसी ऊँच नीच के वजह से कई कुरूतियों का जन्म हुआ। समय बदलता रहा और इसी सामाजिक ऊँच नीच को कई बुद्धजीवियों से टक्कर मिलती रही। बुद्ध, सुकरात और कंफ्यूशियस जैसे लोगों का आना हुआ।बुद्ध ने कहा कि लोगों के पास अपने जीवन को बेहतर करने का तरीका है। उन्हें किसी दूसरे पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं। उन्होंने जातिवाद की सामाजिक ऊँच-नीच के खिलाफ प्रहार किया। उन्होंने औरतों को संघ में शामिल कर आदमी-औरत की सामाजिक ऊँच-नीच को भी 'हलकी' चुनौती दी। ज़ाहिर है कि इस वजह से जिनकी सत्ता पर खतरा मँडराने लगा, उन्हें यह पसंद नहीं आया। बुद्ध को ब्राह्मणों का विरोध सहना पड़ा। बुद्ध ने बेज़ुबान जानवरों की बलि देने के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। ऐसा करना किसी एक वर्ग की सदियों से चली आ रही संकुचित सोच पर प्रहार था। बुद्ध की मृत्यु के बाद अशोक ने बुद्ध की सीख को अपनाया...साथ ही इसे दूर-दूर तक फैलाया। बुद्ध की बढ़ती लोकप्रियता के चलते ही बाद में वैष्णव पुराण में बुद्ध को विष्णु का अवतार मान लिया गया। ये घर वापसी जैसा था कुछ...जिसका असर भी हुआ। समाज मे इसी ऊँच नीच के बढ़ते प्रचलन के परिणामस्वरूप नवीन धर्मो का उदय हुआ।

इतना सब कुछ होने पर भी ऊँच नीच है कि समाज से जाने का नाम ही नही ले रही थी। आठवी शदी में आदि शंकराचार्य के बारे में एक कथा प्रचलित है कि उनके सामने एक चांडाल आए। शंकर आचार्य ने उन्हें रास्ते से हटने को कहा। चांडाल बोले कि मेरे शरीर को कह रहे हो, या मेरी आत्मा को? शरीर तो तुम्हारा भी मेरे जैसा ही है। खाने से उभरता है, और पाँच इंद्रियों के मिश्रण से बना है। अगर बात आत्मा की है, तो क्या वह ईश्वरीय आत्मा अलग अलग है? शंकर चांडाल के आगे नतमस्तक हो गए और चांडाल को अपना गुरु बताया। उन्होंने अद्वैतवाद वेदांत के सूत्र को लोकप्रिय किया - 'अहं ब्रह्मास्मि', यानि मैं ब्रह्म हूँ। उनका कहना था कि ब्रह्म और आत्मा में कोई फ़र्क़ नहीं है। सबकुछ उसी ब्रह्म से बना है। जब हर कोई उसी तत्व से बना है, तो ऊँच-नीच कैसी। इतना कुछ हो जाने पर भी कही कही उनके ही भाष्य में ऊँच नीच का कई बार जिक्र किया है ऐसा लगता है वो उस वक्त के कट्टर रूढ़िवादी प्रथाओं से बाहर नही निकल पाए और उन्ही के अधीन हो गए। कट्टरता का दंश उन्हें भी झेलना पड़ा जब उनकी ही माता के अंतिम संस्कार करने की मनाही उन्ही के समाज से उनको मिली इसके बावजूद उन्होंने सब को परे रखकर अपनी मां का अंतिम संस्कार घर के आंगन में किया। ये दवाब नही तो क्या था। 

इसी के क्रम में रामानुज आचार्य जिन्होंने विशिष्ट अद्वैतवाद का सिद्धांत दिया। उनके गुरु ने उन्हें एक रहस्यमयी मंत्र दिया, जिससे किसी को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती थी(ऐसा था या नही ये अलग विषय है मुझे नही लगता कि कोई स्वर्ग नरक की संकल्पना है )लेकिन उससे पहले उन्होंने रामानुज को कसम खाने को कहा कि वे यह शुद्ध मंत्र किसी को नहीं बताएँगे। रामानुज ने गुरु को विश्वास दिलाया। जब उन्हें मंत्र मिल गया, वे इससे बहुत खुश हुए। रास्ते में उन्होंने द्रवित(समाज मे नीच स्थान रखने वाले) लोगों को देखा,उनको देखकर उनके मन में उन लोगी के लिए स्नेह महसूस होने लगा। उन्होंने लोगों को मंदिर के पास इकट्ठे होने को कहा। इसके बाद वे मंदिर की ऊपरी मंज़िल पर चढ़े, और चिल्लाते हुए उन्होंने वह मंत्र पूरे शहर के आगे बता दिया। गुरु को जब यह पता चला, तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने उन्हें श्राप दिया कि रामानुज, तुमने घोर पाप किया है...तुम नरक में जाओगे। रामानुज ने अपने गुरु से कहा कि अगर मेरे अकेले के नरक में जाने से इन सभी लोगों को स्वर्ग मिल सकता है, तो मुझे नरक भी मंज़ूर है। ये सभी उदाहरण समाज मे ऊँच नीच से जुड़े हुए है। 

अन्ततः इसी के क्रम में बाद में गुरु नानक ने भी जातिवाद का जमकर विरोध किया। कबीर के क्रांतिकारी विचार भी सामाजिक ऊँच-नीच पर प्रहार करते रहे। इनके बाद भी कई महापुरुष ऐसे थे जिन्होंने इसे खत्म या कम करने का प्रयास किये जिसमे गांधी ज्योतिबा फूले और अम्बेडकर को जोड़ सकते है लेकिन ऊँच नीच समाज का वो कोढ़ है वो लाइलाज बीमारी है जो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रही इस कहानी को लिखने का मेरा खास उद्देश्य था जिसे  मैं अगले पार्ट में बताऊंगा। अगर आप इससे जुड़ पाए तो अगले पार्ट से भी आसानी से जुड़ पायेंगे।
( क्रमशः )

धर्मेंद्र कुमार सिंह 
( Dharmendra kr singh )

दक्षिणपंथ और वामपंथ - 1
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/03/1_17.html
#vss 

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