Wednesday 26 June 2019

लघु व्यंग्य - मीडिया की औकात / विजय शंकर सिंह

जब कोई साष्टांग यानी आठो अंग, मस्तक, वक्ष, उदर, कटि, जंघा, घुटना, पांव और भुजाओं सहित, अपने आराध्य के समक्ष भूमि स्पर्श कर आत्मसमर्पित हो जाता है, तो  उसकी औकात उसके आराध्य में समाहित हो जाती है। यह भक्ति का भी चरम है और दासत्व का भी।

आज कैलाश विजयवर्गीय ने जब उनसे मीडिया के कुछ लोगों ने उनके पुत्र और विधायक आकाश विजयवर्गीय द्वारा एक म्युनिसिपल अधिकारी को क्रिकेट बैट से मारने के संबंध में कुछ पूछा तो, यह कहा कि, " तुम्हारी औकात क्या है। '

हकबकाये मीडिया मित्र ने अगल बगल देख कर अपनी औकात ढूंढनी चाही, पर औकात कही बची हो तब तो मिले। औकात तो कुछ मीडिया मित्रों ने स्वेच्छा से सत्ता को सौंप दी है। अब वह कहां।

और अंत मे एक जिज्ञासा, शब्द pliable अधिक अपमानजनक है या अपमान की मुद्रा में औकात पूछ लेना ?
यह प्रश्न एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ( Editors Guild Of India ) से है।

© विजय शंकर सिंह

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