गृह राज्यमंत्री, अजय मिश्र टेनी, जो खीरी हत्याकांड के अभियुक्त आशीष मिश्र के पिता हैं पर भी, उक्त घटना में, धारा 120B के अंतर्गत, मुकदमा दर्ज करने की मांग की जा रही है। अभी तक ऐसा कुछ नही किया गया है। वे आज, 7 अक्टूबर 2021 को, बहैसियत मंत्री, बीपीआरडी (ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट) के समारोह के मुख्य अतिथि थे। अजय मिश्र का आपराधिक इतिहास है और वे हत्या के एक मामले में भी जमानत पर हैं। बीपीआरडी ने अपने इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया है। स्थगित करने का कारण भी गृह राज्यमंत्री का, खीरी हत्याकांड में विवादित होना है। यह एक स्वागतयोग्य निर्णय है।
बीपीआरडी का यह समारोह कारागार सुधार पर था, और इस समारोह का खीरी हत्याकांड की घटना से कोई सम्बंध भी नही है। यह एक विभागीय समारोह था और उंस समारोह की सदारत करने का यह आमन्त्रण भी एक औपचारिक ही था जो, उनके मंत्री होने के कारण था। यह समारोह, खीरी हत्याकांड के काफी पहले से ही नियत किया गया होगा। पर जैसी चुनावी व्यवस्था है और जो फिलहाल सिस्टम है, उसमें यदि दस हत्याओं का अभियुक्त भी मंत्री बन जाता है तो वह भी, ऐसे प्रोफेशनल पुलिसिंग के समारोह का मुख्य अतिथि बन सकता है। यह विडंबना है।
जब से अजय मिश्र के अनेक वीडियो, जिंसमे वे मंत्री के रूप में भाषण देते दिख रहे हैं और 2 मिनट में सुधार देने की धमकी किसानों को देते हुए दिख रहे हैं, उसे देखते हुए बीपीआरडी का यह निमंत्रण पत्र, मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था। इसीलिए मैं बार बार कहता हूं कि कम से कम गृह विभाग के मंत्री को तो आपराधिक पृष्ठभूमि का नहीं होना चाहिए।
राजनीति के अपराधीकरण और पुलिस के राजनीतिकरण पर लंबे समय से बहस चल रही है। पुलिस सुधार के लिये बने नेशनल पुलिस कमीशन, वोहरा कमेटी से लेकर 2007 के प्रकाश सिंह सर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश तक बार बार यही सवाल उठ खड़ा होता है कि राजनीति के अपराधीकरण और पुलिस के राजनीतिकरण की जटिल समस्या का निदान कैसे किया जाय।
पुलिस, सरकार के अन्य विभागों से, थोड़ी अलग है। पुलिस, सबसे प्रमुख और सबसे पहली लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी है। यह कानून को कानूनी तरह से लागू करने के लिये कानूनी रूप से प्रतिबद्ध और शपथबद्ध है। ऐसी स्थिति में कानून तोड़ने वाला या कानून की अवज्ञा करने वाला राजनेता, यदि आपराधिक मानसिकता का हो, या क्रिमिनल मुक़दमे में मुलजिम है, तो उसके विरूद्ध कार्यवाही करने मे कई व्यवहारिक कठिनाइयाँ आती है।
कानून अपना काम करेगा, कानून सर्वोच्च है, आप कितने भी ऊपर हो, कानून आप के ऊपर है, आदि बेहद खूबसूरत शब्द, यदि उन्हें व्यवहार या कानूनी कार्यवाही में नहीं लाया गया तो, वे महज एक सुभधित बन कर रह जाते हैं। यह दायित्व सरकार, राजनीतिक दलों, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों का है कि वे लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों का राजनीतिक और दलगत इस्तेमाल न होने दें। इससे न केवल पुलिस और इन लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों के अधिकारियों और कर्मचारियों के मनोबल पर असर पड़ता है, बल्कि कानून को लागू करने का उद्देश्य भी बाधित होता है।
यह समस्या आज की नहीं है। यह समस्या पहले से है। पर किसी भी राजनीतिक दल ने पुलिस को, अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव से मुक्त करने के बारे में गंभीरता से प्रयास नहीं किया। क्या सभी राजनीतिक दल इस विषय पर प्राथमिकता से सोचेंगे और एक राजनीति के अपराधीकरण को कम करने की कोशिश करेंगे ?
( विजय शंकर सिंह )
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