राजशाही की पहली शर्त यही थी कि राजा के पास सभी शक्तियाँ केंद्रित हो। एक तानाशाह की तरह। उसके बिना राजा या रानी अपनी शक्ति खो देते। जिस समय कैथरीन रूस की महारानी बनी, लगभग उसी समय फ्रांस में लुई सोलह राजा बने। कैथरीन फ्रांस में अपना आदर्श देखती थी। उनकी इच्छा थी कि पीटर्सबर्ग और मॉस्को में फ्रेंच शहरों का वैभव आए। फ्रेंच साहित्य, फ्रेंच कला, फ्रेंच संगीत की तरह रूस भी प्रगति-पथ पर जाए।
उस वक्त रूस के कई किसान साइबेरिया जाने लगे थे, क्योंकि वहाँ बंधुआ मजदूरी नहीं थी। वहाँ वे मुक्त थे। उन शुरुआती किसानों में ही एक परिवार ने अपना नया नाम अपनाया- रासपूतिन। ऐसे परिवारों ने वहाँ गाँव बसाने शुरू किए। लेकिन, तभी वहाँ एक बीमारी पसर गयी- स्मॉल पॉक्स।
यह बीमारी पूरे यूरोप में पसर रही थी, और फ्रांस के राजा लुई पंद्रह की मृत्यु भी इसी बीमारी से हुई थी। अठारहवीं सदी में प्रति वर्ष औसतन चार लाख लोग इस बीमारी से मर रहे थे। हज़ारों लोग साइबेरिया जैसी जगह पर मर रहे थे। कैथरीन अभी गद्दी पर बैठी ही थी, वह घबरा गयी कि यह बीमारी उन्हें और राजकुमार पॉल की जान ले लेगी।
उस समय उन्हें खबर मिली कि ब्रिटेन के एक चिकित्सक थॉमस डिम्सडेल एक विचित्र प्रयोग कर रहे हैं। वह जान-बूझ कर मरीजों की त्वचा में यह बीमारी डाल रहे थे, और उनका दावा था कि इससे उस मरीज को स्मॉल-पॉक्स दुबारा नहीं होगा। उनके इस प्रयोग पर किसी को भरोसा नहीं था, लेकिन कैथरीन ने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने चुपके से उन्हें आमंत्रित किया।
डिम्सडेल ने कहा, “महारानी! यह एक प्रयोग है, जो असफल भी हो सकता है। अगर आपको कुछ हो गया, तो मुझे आपके लोग जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”
महारानी ने कहा, “मैं आपके लिए घोड़ों की व्यवस्था रखूँगी। अगर आप देखें कि मेरी या मेरे पुत्र की स्थिति बिगड़ रही है, आप रूस छोड़ कर भाग जाएँ।”
इस तरह बंद कमरे में टीकाकरण की नींव पड़ी। डिम्सडेल का प्रयोग सफल हुआ। महारानी और उनके पुत्र में स्मॉल-पॉक्स डाला गया, और वह मामूली बीमारी के बाद स्वस्थ हो गए। कुछ दशकों बाद एडवर्ड जेनर ने इसी मॉडल को विकसित कर दुनिया का पहला टीका बनाया। यह कहा जा सकता है कि आज जो भी टीकाकरण हो रहा है, उसमें रूस की महारानी जैसों का अपनी जान जोखिम में डालना शामिल है।
इस वैज्ञानिक सोच के साथ ही कैथरीन रूस को आगे ले जा रही थी। लेकिन, वैज्ञानिक और प्रगतिवादी सोच के भी अपने साइड-इफेक्ट हैं।
लुई सोलह और कैथरीन ने अपने-अपने देशों में कृषि-दासता (serfdom) खत्म करने की तरफ कदम बढ़ाया। किसान अब मुक्त होते जा रहे थे, और शहरों की तरफ आ रहे थे। एक बुद्धिजीवी वर्ग तैयार हो रहा था, जो पत्रिकाएँ निकाल रहा था। स्वयं महारानी कैथरीन भी एक पत्रिका की संपादक थी। फ्रांस में एक ‘कॉफी हाउस’ संस्कृति आ रही थी, जहाँ बुद्धिजीवी बैठ कर देश की समस्याओं पर बतियाते। ऐसी संस्कृति रूस के अंदर भी जन्म ले रही थी।
लेकिन, अगर किसान मुक्त हो गए, तो खेती कौन करता? सामंत किसके भरोसे रहते? सबसे बड़ी बात कि राजा-रानी की आखिर कौन सुनता? सदियों से चल रही है यह शक्ति-संरचना ही बिखरने लगी।
कैथरीन को खबर मिली कि अमरीका में क्रांति हो गयी है, और वे ब्रिटेन से स्वतंत्र राज्य स्थापित कर चुके हैं। यह तो खैर दूर की बात थी। उन्हें सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके आदर्श देश फ्रांस में क्रांति हो गयी, शाही कैदखाना बैस्टील तोड़ दिया गया। वहाँ अब संविधान का निर्माण हो रहा था, और राजा लुई सोलह का गला काट कर मृत्युदंड दिया जा रहा था। यूरोप का एक शक्तिशाली राजतंत्र ध्वस्त हो चुका था, और पहले आधुनिक गणतंत्र का उदय हुआ था।
कैथरीन सिहर उठी। वह उस वक्त एक किताब पढ़ रही थी, जिसका नाम था- ‘अ जर्नी फ्रॉम सेंट पीटर्सबर्ग टू मॉस्को’। उसमें लेखक ने रूस की यात्रा करते हुए वहाँ के किसानों की दुर्दशा लिखी थी। वह किताब के पन्नों पर ही कुछ नोट्स लिखने लगी। उन्होंने लेखक को गिरफ़्तार कर सुदूर साइबेरिया के एक किले में कैद कर दिया। उनके हिसाब से उन्होंने क्रांति की एक चिनगारी को दबा दिया। लेकिन, ऐसी कई चिनगारियाँ रूस में उभर रही थी।
एक लंबे शासन के बाद 1796 में जब महारानी कैथरीन की मृत्यु हुई, रूस में क्रांतियों का नया युग शुरू हो रहा था। वहीं, फ्रांस में एक नए नायक का उदय हो रहा था जिनकी नजरें दुनिया के सबसे बड़े देश रूस पर थी।
नाम था- नेपोलियन!
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/15_10.html
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