Wednesday 27 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - दो (12)

     ( चित्र: ज़ार निकोलस और जॉर्ज पंचम )

बुद्धिजीवी समाज चाहे कुछ भी सोचे, जनता ज़ार में उस वक्त भी भगवान ही देखती थी। वे अपनी रूसी परंपरा, अपने ईसाई धर्म के प्रति निष्ठावान थे। रूसी बुद्धिजीवी वर्ग में भी धर्म का प्रबल प्रभाव था। रूसी लेखक दोस्तोवस्की पादरी परिवार से थे, और ऑर्थोडॉक्स ईसाईयत में उनकी अगाध श्रद्धा थी। उनकी रचनाओं को धर्म से अलग कर नहीं देखा जा सकता। वहीं लिओ तॉलस्तॉय ईसाई धर्म की एक अलग ही परिभाषा रच रहे थे, जहाँ संन्यास और मोक्ष जैसे कंसेप्ट ला रहे थे। मैक्सिम गोर्की को छोड़ दिया जाए, तो रूस के संपूर्ण इतिहास में दस पक्के मार्क्सवादी साहित्यकार गिनाने कठिन होंगे। इससे कहीं अधिक तो अमरीका या भारत में मिल जाएँगे।

जब ज़ार निकोलस की ताज़पोशी हो रही थी, उस समय कहीं किसी क्रांति की सुगबुगाहट नहीं थी। इस बात का अंदाज़ा उस उत्सव की भीड़ से लगाया जा सकता है। गाँव-गाँव से उठ कर लोग नए राजा-रानी को देखने आए थे। हमेशा की तरह जनता के लिए कुछ नाश्ता (ब्रेड और माँस रोल) और शराब के इंतजाम थे। यह सारा इंतज़ाम गवर्नर जनरल सर्गेई देख रहे थे, जो रिश्ते में ज़ार निकोलस के साढ़ू भाई भी थे। उनकी पत्नी ज़ारीना (महारानी) की सगी बड़ी बहन थी। 

सर्गेई के लिए यह जनता कीड़े-मकोड़ों जैसी थी, जिनको जूतों तले रौंदना वह अपना अधिकार समझते थे। लाखों की भीड़ पंक्तिबद्ध अपने-अपने ब्रेड रोल और बीयर का इंतज़ार कर रही थी, कि वहाँ अफ़वाह फैल गयी खाना कम पड़ गया है। वाकई सर्गेई ने खाना और शराब कम ही मंगवाए थे, तो कम पड़ना ही था। यहाँ रूस के सर्वहारा गरीबी का सत्य सामने दिखा, जब लोग एक अदना नाश्ते के पैकेट के लिए लड़ने लग गए। भगदड़ मच गयी, और एक हज़ार से अधिक लोग मर गए।

ज़ार निकोलस को जब खबर हुई, तो उन्होंने एक दफ़े सोचा कि कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाए। लेकिन, सर्गेई ने समझाया कि ये मामूली घटना है, इसे अधिक तवज्जो न दें। ज़ार जब जनता के मध्य आए, तो उन लाशों को किनारे कर ढेर लगा दिया गया या छुपा दिया गया। कुछ हाथ जो ज़ार की बग्घी को सलाम कर रहे थे, उन्हें जब करीब से देखा तो वे मृत व्यक्तियों के हाथ थे।

उसी रात फ्रेंच दूतावास में पार्टी थी, और वहाँ ज़ार निकोलस शराब पीते हुए संगीत-नृत्य का आनंद ले रहे थे। यह उनके मंत्रियों और अन्य कुलीनों को भी अश्लील लग रहा था कि एक राजा अपनी प्रजा की मौत का अफ़सोस भी नहीं जता रहा। कम से कम बाहर उनसे मिल कर सहानुभूति तो व्यक्त कर सकते थे? वह अपनी सत्ता के नशे में इतने चूर आखिर कैसे हो सकते हैं? 

जब मंत्रियों की सभा आयोजित हुई, तो वहाँ कुछ उम्मीद थी कि ज़ार प्रजातंत्र का एक खाका बनाएँगे। लेकिन ज़ार निकोलस द्वितीय ने घोषणा की, “रूस एक महान देश है, जिसका कारण है यहाँ की राजशाही। मैं, ज़ार निकोलस द्वितीय, यह घोषणा करता हूँ कि सत्ता का पूर्ण नियंत्रण मेरे हाथ में रहेगा। मैं राष्ट्र और धर्म की नींव पर इस देश को विकास के पथ पर ले जाऊँगा।”

इसका अर्थ था कि निरंकुश ज़ारशाही कायम रहेगी। 

मैं ज़ार निकोलस की तस्वीर को ग़ौर से देख रहा था। वह ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम के कुंभ के बिछड़े भाई लगते हैं। न सिर्फ चेहरा, बल्कि मूँछ-दाढ़ी भी एक जैसी। इसके पीछे एक स्पष्ट कारण है। जर्मनी के कैज़र (राजा) विल्हेल्म, इंग्लैंड के युवराज जॉर्ज पंचम और रूस के ज़ार निकोलस, तीनों ही आपस में मौसेरे-फुफेरे भाई थे। महारानियों के भी आपसी संबंध थे। 

अगर ये तीनों भाई मिल जाते तो वे अजेय हो जाते और संभवत: पूरे यूरोप पर राज करते। लेकिन, इन भाइयों के मध्य तो ऐसा भीषण युद्ध हुआ, जिसकी लपटों से सिर्फ़ एक भाई ही सही-सलामत बच पाए। 

आखिर वह कोई साधारण युद्ध नहीं था, वह पहला विश्व-युद्ध था! 
(क्रमशः)

प्रवीण झा 
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - दो (11)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/11_26.html 
#vss 

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