सामंत और उनके दास। जैसे कोल्हू के बैल। पूँजीपति और उसके नौकर। यह कहना कठिन है कि दुनिया की संरचना कितनी बदली है। जब तक एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से मनुष्य की तरह व्यवहार करे, तब तक शायद मालिक-नौकर व्यवस्था से दुनिया खुशी-खुशी चलती रहेगी।
राजा इवान ‘द टेरिबल’ ने सामंतों को मरवाया, मगर वह अपने देश के आम नागरिकों से प्रेम करते थे। जहाँ सामंत उन्हें ‘टेरिबल’ कहते रहे, स्तालिन के रूस में उन्हें एक राष्ट्रवादी ‘कल्ट फिगर’ की तरह देखा गया। वे उन्हें एक ऐसा राजा मानते थे, जिसने रूस का विस्तार किया और बुर्जुआ को सजा दी।
उनके बाद क्या हुआ?
अपने मुख्य उत्तराधिकारी पुत्र को तो राजा इवान स्वयं मार चुके थे। दूसरे पुत्र फ्योदोर एक कमजोर शासक थे। फ्योदोर के साले बोरिस, जो एक सामंत थे, उन्होंने प्रशासन संभाल लिया। उन्होंने तीन कार्य किए।
पहला कि मॉस्को गिरजाघर की ताकत में इज़ाफ़ा किया, ताकि देश पर धर्म का राज (डंडा) चल सके।
दूसरा कि अपने रास्ते के काँटे साफ़ किए। फ्योदोर के छोटे भाई युवराज दमित्री को मरवा दिया, और अपने प्रमुख सामंत प्रतिद्वंद्वी रोमानोव को ईसाई महंत बना कर राजनीति से दूर कर दिया।
तीसरी चीज सबसे अधिक निंदनीय थी। उन्होंने रूस में एक मध्ययुगीन व्यवस्था वापस लायी- Serfdom यानी कृषक दास प्रथा (बंधुआ मजदूरी)। सामंतों के पास लाखों किसान गिरवी हो गए। वे उनकी संपत्ति थे, और उन्हें सामंत मनमर्ज़ी काम करा सकते थे। किसान ही नहीं, उनका पूरा वंश दास बन गया। यह अमरीका के अफ़्रीकी गुलामों से भिन्न इस मायने में था कि ये सभी दास तो रूसी ही थे, कहीं से खरीद कर या उठवा कर लाए नहीं गए थे।
1598 में राजा फ्योदोर की मृत्यु के साथ ही सदियों से चल रहा रुरिक राजवंश खत्म हो गया। एक भी उत्तराधिकारी नहीं बचा। बोरिस ने स्वयं को ज़ार घोषित कर दिया।
घोषित तो कर दिया, मगर उनमें ज़ार का खून नहीं था। किसान पहले ही उन पर ज्यादती से भड़के हुए थे। तभी एक अजीबोग़रीब घटना और हुई। एक व्यक्ति ने घोषणा कर दी कि वह ज़ार युवराज दिमित्रि है, जो असल में मरा ही नहीं था। यह नकली दिमित्रि बोरिस की मृत्यु के बाद ज़ार बन बैठा!
जनता इस पूरे घटनाक्रम से उबल पड़ी कि कोई भी ऐरा-गैरा नत्थू-खैरा आकर ज़ार बन गया। उन्होंने क्रेमलिन पर हमला कर दिया और नकली दिमित्रि को तोप में बाँध कर उड़ा दिया। यह रुस के इतिहास की पहली जन-क्रांति थी, जो 1606 ई. में हुई।
अब रूस पूरी तरह अनियंत्रित भीड़ में तब्दील हो रहा था, जिसका कोई माई-बाप नहीं था। अगले दशक में कुछ सामंतों ने क्रेमलिन पर कब्जे के प्रयास किए, मगर ख़ास सफलता नहीं मिली। पड़ोसी पोलैंड और स्वीडन रूस पर गिद्ध-दृष्टि डालने लगे, पोलैंड की सेना तो एक बार क्रेमलिन तक पहुँच गयी।
आखिर सभी कुलीन वर्ग के लोग जमा हुए, और सर्वसम्मति से एक नया ज़ार चुनने का निर्णय लिया। लेकिन जब बड़े-बड़े नाकाम रहे, तो आखिर ऐसा कुशल व्यक्ति होगा कौन? कोई धर्मगुरु? कोई अनुभवी सामंत? या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिसमें ऐसी कोई क़ाबिलियत न हो? जिसे ‘ईश्वर’ ने चुना हो?
‘टाइम ऑफ ट्रबल्स’ से रूस को निकालने के लिए जिस व्यक्ति को चुना गया, वह एक सोलह वर्ष का किशोर था। उसके महंत पिता पोलैंड की कैद में थे। उसे स्वयं राज-पाट में कोई रुचि नहीं थी। 1613 में रूस को यह नया ज़ार मिला, जिसका नाम था- मिखाइल रोमानोव!
रोमानोव ज़ारशाही अगले तीन सदियों तक कायम रही। तब तक, जब तक उन्हें धक्के मार कर निकाल नहीं फेंका गया।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रूस का इतिहास (8)
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