Sunday, 31 October 2021

प्रवीण झा - रूस का इतिहास - दो (16)



बुद्धिजीवियों की क्रांति तो अपनी जगह है ही, लेकिन लेनिन को कुछ बाज़ीगरी करने वाले युवाओं की भी ज़रूरत थी। ऐसे लोग जो रूसी ओख्रानो (गुप्तचर एजेंसी) को चकमा दे सकें, जो हत्या कर सकें, चोरी या लूट से क्रांति के लिए धन जुटाएँ। उसके बाद हुई अन्य देशों की क्रांतियों में भी यह मॉडल प्रयोग हुआ।

लेनिन को ऐसे लड़के कॉलेजों से नहीं, बल्कि फुटपाथ से उठाने थे। सड़क-छाप मवाली हो, स्कूल ड्रॉप-आउट हो, छुटभैया डकैत हो, बहुरूपिया हो।

जॉर्जिया के एक फुटपाथ पर ऐसे तीन लड़के मिल गए। एक था कामो, दूसरा सुरेन, तीसरा कोबा। तीनों ही स्कूल ड्रॉप-आउट। तीनों का बचपन बस्तियों में बीता। कोबा के पिता मोची थे। इनकी बचपन से ही कारस्तानियों की वजह से इन्हें एक सेमिनरी में भेजा गया कि धर्म-कर्म सीखें, पादरी बनें। लेकिन, तीनों ही वहाँ से निकाले गए। 

कामो को रूसी ठीक से नहीं आती थी। वह आर्मीनियाई-जॉर्जियन था। भेष बदलने का उस्ताद। एक बार क्रांतिकारियों को एक जनता हॉल में ज़ारशाही के ख़िलाफ़ पैम्फलेट बँटवाना था, मगर यह काम रिस्की था। कामो एक छोटा रिवॉल्वर लेकर अंदर गया, और ऊपर की गैलरी में पहुँच कर पैम्फ्लेट के पूरी गड्डी को हवा में बिखेर कर आ गया। जब तक उसे कोई पकड़ता, वह अपना भेष बदल कर भाग चुका था। यह हॉल में गैलरी से पैम्फ्लेट बिखेरना भारत में कुछ बड़े स्तर पर हुआ, जब 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त नामक युवकों ने एक बम विस्फोट कर असेंबली हॉल में पर्चे लहराए।

कोबा कुछ अधिक संभल कर कदम रखने वाला युवक था। उसने अपना नाम कोबा एक मशहूर उपन्यास के किरदार के नाम रखा था, जो रॉबिनहुड की तरह ज़ार के कोसैक रक्षकों को चकमा देकर क्रांति करता है। लेनिन की नज़र कोबा पर पहले से थी, और उन्होंने जब यह पर्चा लहराने वाला क़िस्सा सुना तो कामो को भी मिलाने की सोची। ये लड़के बचपन से साथ खेले थे, तो काम मुश्किल नहीं था। 

ये तीन तिलंगे छोटी-मोटी लूट करने लगे और पार्टी के लिए कुछ धन इकट्ठा करने लगे। इनको क्रांति से अधिक जाँबाज़ी का शौक था। इनके छुपने की जगह भी ऐसी थी, जहाँ किसी को शक नहीं होता। ये वेश्यालयों में छुपा करते! 

26 जून 1907 को जॉर्जिया की राजधानी तिबलिस में एक बड़ी लूट को अंजाम देना था। कोबा को खबर मिली थी कि एक बड़ी रकम एक बैंक से दूसरे बैंक एक बग्घी पर लेकर जाने वाले हैं। लेनिन ने यह योजना बनायी कि बम फेंक कर इसे लूट लिया जाए। तीनों लड़के तैयार किए गए, जो एक सोफा में बम भर कर ले आए। उस दौरान बम जाँचते हुए कामो घायल भी हो गया, लेकिन वह तो स्वयं को खतरों का खिलाड़ी ही समझता था।

सुबह 10.30 बजे जब बग्घी शहर के चौराहे से गुजरी, ये लड़के किसानों की भेष में वहाँ इंतजार कर रहे थे। सिर्फ़ कामो वहाँ घोड़ा-गाड़ी पर बैठा किसी फौजी की तरह आया था। बग्घी करीब आते ही इन लोगों ने बम फेंक कर सारा धन लूट लिया, जो लगभग तीन मिलियन डॉलर के करीब थे। यह सरकारी खजाने की पहली इतनी बड़ी लूट था। इस घटना का भी भारत की क्रांति में काकोरी लूट कांड से साम्य है। 

लेनिन के पास यह धन पहुँचा कर कोबा उनका ख़ास बन चुका था। कोबा इसके बाद कई दफ़े ओख्रानो द्वारा पकड़ा गया, और साइबेरिया भेजा गया। लेकिन, वह हर बार भाग आता। एक बार तो क्रांतिकारियों को यह शक हो गया कि कहीं यह ज़ार का जासूस ही तो नहीं? इसके कुछ प्रमाण भी थे। आखिर उसी साइबेरिया से बाकी क्रांतिकारी तो नहीं भाग पाते, फिर कोबा के पास ऐसी कौन सी जादुई छड़ी थी? 

एक बात तो तय है कि यह किरदार रहस्यमय था। इस बात को समकालीन दुनिया बेहतर जानती है। कोबा को लेनिन ने त्रोत्स्की के पास मार्क्सवाद सीखने वियना भेजा था। दशकों बाद ये दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। कोबा तब तक अपना नाम आखिरी बार बदल चुका था। सड़क से उठ कर वह गद्दी तक पहुँच चुका था, और एक समय दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति कहा जाने लगा था। वह बन चुका था- स्तालिन! 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

रूस का इतिहास - दो (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/10/15_30.html 
#vss

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