Friday, 6 July 2018

जुए और खेलों में सट्टेबाजी को वैधानिक स्वरूप देने की संस्तुति विधि आयोग ने की है - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

विधि आयोग ने यह नायाब सिफारिश की है कि जुआ - खेलों पर सट्टा बैध कर दिया जाय। यह सिफारिश, जुआ और सट्टा न रोक पाने के कारण तो नहीं की गयी है या यह भी किसी धनपशु को उपकृत करने की चाल है ? ऐसे ही कभो लॉटरियों को भी वैधानिक रूप से चलाया गया था। जब उसके दुष्परिणाम आने लगे तो उन पर प्रतिबंध लगा। धोखा, झूठ, फरेब, प्रपंच यह तो समाज मे जब से समाज बना है तब से ले कर जब तक समाज रहेगा तब तक रहेंगे। इन पर रोक लगाया जाना संभव ही है। पर इसका यह भी अर्थ नही कि इसे कानूनन वैध कर के राजस्व प्राप्ति का मार्ग ढूंढ लिया जाय।

यह अपराध को वैधानिकता का जामा पहनाने जैसे हुआ। विधि आयोग ने यह भी एक तर्क दिया है कि इज़े कानूनन रोकना सम्भव नहीं है। कानूनन या गैर कानूनन दुनिया मे कोई भी सरकार यहां तक कि काल्पनिक आदर्शवाद का जामा ओढ़े यूटोपियन सरकारें भी कोई अपराध खत्म नहीं कर सकती हैं। हो सकता है आदिम सभ्यता के नवोन्मेष काल मे अपराध मुक्त समाज रहा हो पर इतिहास के किसी भी काल मे न तो ऐसा समाज रहा है और न रहेगा। पुलिस या कानून का पालन कराने वाली एजेंसियां भी अपराध उन्मूलन के लिये नहीं बनी हैं। उनका गठन, अपराधों के रोकथाम करने और अपराधियों को दंड हेतु सक्षम न्यायकर्ता के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु किया गया। विधि आयोग के यह तर्क, कानून को वैधानिक रूप से लागू न कर सकने की हताशा ही बताता है।

पहले पकौड़ा बेचना रोज़गार हुआ, फिर एक मुख्यमंत्री जी ने सुझाया पान बेचिये, कल एक मंत्री जी ने अचार बनाना भी रोज़गार का साधन है, बता दिया। भीख मांगना तो संगठित अपराध से रोज़गार किसी ने बता ही दिया है, अब जुआ, सट्टा यही बचा था, अब इसके विज्ञापन भी पढ़ लीजयेगा, कुछ इस अंदाज में,
" जय भारत जुआ सट्टा केंद्र।
सभी क्रिकेट और अन्य किसी भी प्रकार के सट्टा और जुए के लिये संपर्क करें। विश्वसनीयता ही हमारी पहचान है। '
फिर एक कोने में किसी भी बड़े मंत्री या नेता का फोटो लगा हो तो, हैरान न होइएगा।

अब कहा जा सकता है कि जब कैसिनो अन्य देशों में वैध है तो आप कहाँ थे। यह सवाल कुछ मित्र पूछेंगे यह मैं आप को अभी से बता दे रहा हूँ। लेकिन असल रोज़गार की बात कीजिये तो प्रधानमंत्री जी कहेंगे रोज़गार तो बहुत दिये गये पर डेटा ही नहीं। उधर अमित शाह कह रहे हैं कि मुद्रा लोन योजना में सात करोड़ लोगों को रोजगार मिला। पीएम के पास डेटा नहीं है उधर अमित शाह के पास सारे डेटा है । अज़ीब हाल है।

वेश्यावृत्ति और जुआ दोनों ही प्राचीन भारत मे वैध थे। इन के पर्यवेक्षण के लिये गणिकाध्यक्ष और द्यूताध्यक्ष के पद थे। जब सामंतवाद का समय था। पर आज वह स्थिति नहीं है। आज रोज़गार के नए नए अवसर है । वैसे वायदा बाजार कुछ चीज़ों पर आज भी वैध है। शेयर बाजार भी किसी समय जब ऑनलाइन ट्रेडिंग का समय नहीं आया था तो बहुत गुलज़ार रहता था। लाटरी तो 1965 से ले कर लगभग 20 साल खूब चली और लोग बरबाद भी हुये। शेयर बाजार की मंदी तेज़ी ने भी लोगो  को अर्श से फर्श पर पहुंचाया। लोग फर्श से अर्श पर भी गये। आज इसकी जरूरत क्यों पड़ी यह भी सोचने की बात है। आज सरकार की जो नीतियां हैं उनसे रोज़गार बढ़ नहीं रहा है। कम ही हो रहा है । रेलवे, शिक्षा क्षेत्र, अन्य लगभग सभी सरकारी विभागों में रिक्तियां भी हैं और लोग सड़कों पर नौकरियों की चाह में भी घूम रहे हैं। सरकार की सेवायोजन की नीति क्या है यह खुद सरकार भी नहीं बता सकती क्यों कि उसके पास कोई ऐसा आँकड़े भी नही है।

© विजय शंकर सिंह

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