Tuesday, 3 July 2018

क्या सरकार के आंकड़े दोषयुक्त और विश्वसनीय नहीं है ? / विजय शंकर सिंह

प्रधानमंत्री जी का कहना कि नौकरियां तो दी गयी हैं पर डेटा नहीं है । पर डेटा है क्यों नहीं है ? सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़ो को जारी करने पर रोक क्यों लगा दी फिर ? इन्हें देखते हुये अगर पीएम की बात  कुछ हद तक सही मान ली जाय तो, यह सरकार की और भी बड़ी कमी होगी कि सरकार फिर बिना किसी विश्वसनीय डेटा के चल कैसे चल रही है ?

सरकार काम कर रही है या नहीं, यह तो आंकड़ो से ही जाना जा सकता है। जब आंकड़े ही सही और विश्वसनीय तरीके से इकट्ठे नहीं किये जा रहे हैं तो योजनाओं के क्रियान्वयन का अंदाज़ा कैसे लगाया जा सकता है। अतः जब जब प्रधानमंत्री जी कुछ अविश्वसनीय और हास्यास्पद आंकड़े अपने भाषणों में देते हैं तो न केवल उनका, बल्कि देश का भी मज़ाक़ उड़ता है। जैसे उन्होंने 600 करोड़ मतदाताओं की बात कही, 125 करोड़ परिवारो द्वारा गैस सब्सिडी छोड़ने की बात कही, तो जाहिर है कि पीएम ने अपने कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर ही यह संख्या बताया होगा। यह डेटा पूर्णतः गलत था। 125 करोड़ की आबादी है तो 600 करोड़ मतदाता और 125 करोड़ परिवार कैसे हो जाएगा ? इस ब्लंडर पर उनकी किरकिरी भी हुई। यह किरीकिरी उनकी नहीं देश और देश के सबसे अधिकार सम्पन्न कार्यालय पीएमओ का है। उन्होंने आंकड़े ही नहीं , अत्यंत गम्भीर ऐतिहासिक तथ्यों को भी गलत ढंग से पीएमओ द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेखों के आधार पर, देश और अंतराष्ट्रीय मंचों पर कहा और जिससे उनकी व्यापक आलोचना हुयी।

हैरानी की बात है कि अगर सरकार के पास उचित और विश्वसनीय आंकड़े नहीं हैं तो पिछले चार साल से बजट कैसे बन रहा है ? बजट की प्राथमिकताएं कैसे तय की जा रही हैं ? जीडीपी या अन्य उपलब्धि के आंकड़ें कैसे प्रस्तुत किये जा रहे हैं ? यह वादा कैसे किया जा रहा है कि 2022 में किसानों की आय दुगुनी हो जाएगी ? 2025 तक सबको आवास दे दिया जाएगा ? 2022 और 2025 के लक्ष्यप्राप्ति के आंकड़ों का आधार वर्ष या आधार आंकड़े क्या होंगे ? वे कितने विश्वसनीय हैं ? प्राथमिक शिक्षा से लेकर यूनिवर्सिटी की शिक्षा तक सारे लक्ष्य कैसे पूरे किये जा सकते हैं ? या तो ये सारे वायदे पहले के वायदों की तरह जुमले हैं या इनके भी आंकड़े सरकार के पास गलत हैं। गलत आंकड़े अच्छी खासी योजना का कबाड़ा कर देते हैं।

आंकड़े केवल मायाजाल और सरकार की उपलब्धि तथा उसकी कमियों को इंगित करने के लिये ही नहीं होते हैं। इनकी सबसे बडी उपयोगिता योजनाओं को बनाने, उनके लक्ष्य निर्धारित करने और फिर उन लक्ष्यों की समीक्षा करने में होती है। सभी विभागों में आंकड़ा अनुभाग होते हैं, जो सभी जगहों से सही और विश्वसनीय आंकड़े जुटाते हैं और फिर उनकी समीक्षा होती है। यह अपने आप मे ही विज्ञान है जो सांख्यिकी कहलाता है। इसका एक मौलिक सिद्धांत है। निष्कर्ष जिन आधार पर निकलता है वह भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। जिसे सेफ़लाजी कहते हैं, है। योजना आयोग जो अब नीति आयोग बन गया है, बिना आंकड़ो के एक कदम चल भी नहीं सकता। लेकिन यह बात भी पूरी तरह से सच है कि यदि गलत आंकड़े इकट्ठे हो गए हैं और उनकी क्रॉस चेकिंग नहीं की गई है तो, ऐसे आंकड़े गुमराह भी करते हैं। 

अगर प्रधानमंत्री जी को लगता है कि आंकड़े उपलब्ध नहीं हो रहे हैं, या गलत तरीके से बिना उनकी पुष्टि किये ही आंकड़े एकत्र हो रहे हैं तो निश्चय ही उनकी समीक्षा के परिणाम भटकाएंगे। इससे सरकार की उपलब्धि भी प्रभावित होगी और उनकी समीक्षा भी। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इन आंकड़ों का उपयोग केवल देश के अंदर सरकार की आलोचना या प्रशंसा के लिये ही किया जाता है बल्कि आज के वैश्विक परिवार के युग मे हर देश के आंकड़े हर देश को प्रभावित करते हैं। प्रधानमंत्री की यह बात कि आंकड़े नहीं हैं या आंकड़ों के अध्ययन में कमियां हैं तो उन्हें सबसे पहले मंत्रालयों के सांख्यिकी विभागों को त्रुटिरहित करना होगा। क्योंकि सारे बजटीय प्राविधान और योजनाओं का क्रियान्वयन इन्हीं आंकड़ो के आधार पर होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हम एक डिजिटल भारत मे प्रवेश कर चुके हैं।

© विजय शंकर सिंह

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