जहां तक मैं जानता हूँ, टीवी एंकर, मूलतः उस चैनल का नौकर होता है। वह न तो चैनल की नीतियां तय करता है न ही उसकी उस चैनल की राजनीतिक संबद्धता और प्रतिबद्धता में कोई भूमिका होती है। टीवी एंकर एक वेतनभोगी पत्रकार होता है। वह अपने मालिक और उसकी संपादकीय नीति का पालन करने के लिये बाध्य होता । अक्सर इन चैनलों के मालिक कोई न कोई उद्योगपति होता है जो अपनी व्यावसायिक हितबद्धता के कारण सत्ता और सत्तारूढ़ दल से कोई टकराव नहीं चाहता है। यह सत्तोन्मुखी चरित्र किसी वैचारिक प्रतिबद्धता का परिणाम नहीं होती है बल्कि यह उनकी व्यावसायिकता होती है।
पत्रकारिता रही होगी मिशन कभी, पर अब वह इस बाजारीकरण के युग मे व्यवसाय हो गयी है। व्यवसाय है तो लाभ हानि, प्रचार प्रसार का फंडा जुड़ ही जाता है। इन सबके अतिरिक्त, एंकर विशेष का राजनीतिक झुकाव भी होता है। हर व्यक्ति जो कुछ भी बुद्धि या विवेक से सोचता है वह किसी न किसी व्यक्ति या विचार या दर्शन से प्रभावित होता है। लेकिन जब वह एंकर पीठ पर बैठ कर एक बहस को संचालित करता है तो, उसका दायित्व है कि वह बहस को संचालित करते समय कम से कम अपने राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण को उस समय के लिये न केवल ताख पर रख दे, बल्कि एक निष्पक्ष एंकर के रूप में दिखे और ऐसा आचरण भी करे। अमीश देवगन के कार्यक्रम आर पार में जो अशोभनीय दृश्य और संवाद हुआ है वह अशोभनीय था और एंकर तथा प्रतिभागियों दोनों को इससे बचना चाहिये था।
कुछ टीवी चैनलों पर देश की अन्य ज्वलंत समस्याओं को नजरअंदाज कर के हिन्दू मुस्लिम की बहस एक तयशुदा एजेंडे के अंतर्गत करायी जा रही है। वैसे ही संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर हुयी बहस जिसे टीडीपी के सांसद नायडू, सीपीएम के सांसद मु सलीम और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के आरोपो के बारे में होनी चाहिये थी लेकिन कुछ चैनलों पर यह सारी बहस, आंखों, आलिंगन, देहभाषा और भावुकता भरे जुमलों पर सिमट कर रह गयी। वे मुद्दे जो जनता के हित से जुड़े हैं, और सरकार को असहज कर सकते हैं, कुछ चैनल उठाना ही नहीं चाहते। जब मुद्दे ही अनावश्यक और छिछोरे और भावुकता भरे होंगे तो कोई कितना भी संयम रखे वह असंयमित होगा ही।
प्रवक्ता राजीव त्यागी ने चैनल के डिबेट में एंकर अमिश देवगन से कहा कि,
" पिछले चार वर्षों में कितनी बार तुमने किसान आत्महत्या , दलित हत्या , बेरोजगारी , मंहगाई, बैंक लूट पर कितनी बार बहस करवाया है "
निश्चित रूप से ऐसे मुद्दों पर सरकार का बचाव करना , चाहे कोई भी सरकार हो, कठिन हो जाता है, चाहे कोई भी सरकार हो। निश्चित रूप से एजेंडा तय करना चैनल के संपादक का काम है। पर जब जनहित से जुड़े मुद्दे लगातार चैनल के डिबेट से गायब होते रहते हैं, और डिबेट में वे ही विषय उठाये जाते हैं जो सत्तारूढ़ दल के मूल एजेंडे का अंश होता है तो चैनल की निष्पक्षता पर संदेह स्वाभाविक रूप से उठता है।
राजीव त्यागी एक गम्भीर प्रवक्ता हैं। प्रवक्ता तो अपने दल की बात का औचित्य साबित करेगा ही। उसका काम ही यह है। पर एंकर का काम है जनता के सामने दोनों पक्ष की बात सामने लाने के लिये एक ऐसा वातावरण तैयार करे जिससे दर्शकों को न केवल बहस की उपयोगिता समझ मे आये बल्कि वह दोनों ही पक्षों की बात समझ कर अपना दृष्टिकोण बना सके।
© विजय शंकर सिंह
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