आइये रजिया बानो उर्फ पंडित पवन शर्मा जी, आप का खैरमकदम है। आइये थोड़ा पीछे लौटे।
1989 के बाद जब राम संकट में पड़ गए तो, उन्हें उबारने के लिये आडवाणी जी सहित पूरी भाजपा को अवतार लेना पड़ा। राम को तो 1949 में महंत रामचन्द्र दास ने अयोध्या की एक जर्जर और वीरान पड़ी मस्ज़िद में ला कर स्थापित कर दिया था। कहा प्रभु फिलहाल तो यहीं बिराजे बाद में देखा जाएगा। अब तक जो राम घट घट में व्याप्त थे, वह एक कदीम इमारत में कैद हो गए। वही उनकी प्रार्थना पूजा शुरू हो गयी। न प्राण प्रतिष्ठा का कर्मकांड हुआ, और न ही कोई प्रकटोत्सव का भोज भात । फिर तो महंत रामचन्द्र दास क्या उन्हें देखते, सरकार का ही राजस्व विभाग और दीवानी अदालत उन्हें देखने लगी। सिविल सूट के मामलों में एक मसल जो अंग्रेजों के जमाने के जज साहब रह चुके मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने कहा वही साबित होती दिखाई दी। मसल है, दीवानी का मुकदमा, जो जीता सो हारा, जो हारा सो मरा। बात तो सच ही है। महंत रामचंद्र दास प्रतिवादी भयंकर और हाशिम मियां दोनों ही जहां से आये थे वहीं लौट गए और मुकदमा बदस्तूर अदालत में चल रहा है। राम तो मंदिर आदि ढकोसलों से ऊपर हैं सो वे चुपचाप जहां उनके खैरख्वाह एक टूटी फूटी ही सही पक्की इमारत को जमीदोज कर, उन्हें पुलिस और सरकार के हवाले छोड़, रातों रात भाग गए थे, वही प्रभु अब भी विराजमान हैं । राम पर तो इन सबका कोई असर पड़ा नहीं। वैसे भी जो कष्ट उन्होंने अपने जीवन मे सहे थे उनकी तुलना में यह कुछ था भी नहीं। तब भाजपा ने दो नारे गढ़े। एक था, रामलला हम आएंगे और मन्दिर वहीं बनाएंगे दूसरा गर्व से कहो हम हिन्दू है। दोनों ही नारे खूब चले और इतने चले कि वे कभी कभी मज़ाक़ भी बन जाते हैं।
गर्व से कहो हम हिन्दू हैं कहते कहते हमारे पंडित जी पवन शर्मा, अचानक रजिया बानो बन गए और एक दिन उनका बुर्का भी उतर गया। हुआ यह कि मन्दसौर में एक बालिका के साथ जघन्य कुकृत्य हुआ और पूरा देश उबल पड़ा। बालिका और उस वहशी दरिंदे का धर्म अलग अलग है तो धर्म की राजनीति में ही अपनी संभावना खोजने वाले लोगो ने बार बार यही देखना शुरू किया कि कौन कौन चुप है और कौन कौन बोल रहा है। उनका सरोकार न पीड़िता से था, न उस जघन्य अपराध से न ही उस अपराधी से बल्कि उनका सरोकार था उस अपराधी के धर्म से । अभियुक्त को फांसी मिलती है या उम्रकैद यह भी उनके लिये उतनी चिंता की बात नहीं है , जितनी कि इस घोर पाप और जघन्य अपराध पर दो समुदायों में तनाव और विवाद का न फैलना है । लेकिन वहां आक्रोश तो खूब पनपा पर वह आक्रोश अभियुक्त के प्रति था, न कि उनके सम्प्रदाय के विरुद्ध।
सोशल मीडिया पर रजिया और रज़िया में फ़र्क़ न समझने वाले पंडित जी ने अपना पता कराची का दिया, एक खूबसूरत चेहरे को प्रोफ़ाइल पिक्चर बनाई और फिर शुरू हो गए अपने एजेंडे पर। काश कि उन्हें यह पता होता कि उर्दू में नुक़्ते का बड़ा अहम रोल है। एक नुक़्ते के हेरफेर से खुदा जुदा हो जाता है। पंडित जी का एजेंडा साफ है, कि राम मंदिर बने या न बने, हिन्दू होना गर्व की बात हो या न हो, पर हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदायों में इतना अविश्वास और नफरत का जहर भर दिया जाय कि देश के हर गांव, शहर के हर मुहल्ले में जहां जहां यह दोनों सदियों से रहते आ रहे हैं एक दूसरे को सदैव आशंकित नज़र से देखें और मानसिक तथा सामाजिक रूप से हिन्दू पानी मुस्लिम पानी के उन्हीं काले दिनों में पहुंच जांय जो आज से सत्तर अस्सी साल पहले हमारे बुजुर्ग देख आये हैं। हद तो यह हो गयी कि ट्विटर पर श्री राम के नाम से एक आईडी से कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की बेटी के साथ बलात्कार करने की धमकी दी गयी। जय श्री राम, भारत माता की जय और बलात्कार का दुर्लभ संयोग ऐसी ही प्रतिभाएं कर सकती हैं। सोशल मीडिया पर पंडित पवन शर्मा उर्फ रज़िया केवल अकेले ही एक उदाहरण नहीं है, बल्कि देश को तोड़ने का षडयंत्र करने वाले तत्वों का यह एक संगठित गिरोह है जिसकी आस्था न तो राम में हैं, न सनातन धर्म मे, न राष्ट्र में है। इनका बस एक ही उद्देश्य है, कि द्विराष्ट्रवाद के मरे हुयेे सिद्धांत को ठेल ठेल कर जीवित करना और देश के टुकड़े टुकड़े करना। यह कैसा राष्ट्रवाद है जो समाज के बिखराव में, समाज के विखंडन में, समाज को तोड़ने के षड़यंत्र में राष्ट्र निर्माण की बात करता है ।
सोशल मीडिया पर इस प्रकार के सायबर लफंगों की एक जमात है जिसका एक ही उद्देश्य है निरर्थक और गाली गलौज शब्दावली से स्वस्थ बहस करने वालों को हतोत्साहित करना। इसके कारण न केवल सोशल मीडिया जो स्वस्थ वार्तालाप और जानकारियों का एक प्रमुख मंच बन सकता है, एक चंडूखाने में तब्दील हो रहा है बल्कि गम्भीर लोग किनारा कर रहे हैं। एक पासपोर्ट के मामले में इन लफंगों ने जो व्यवहार सुषमा स्वराज के साथ किया है उस पर अन्य किसी को आश्चर्य हो तो हो, पर मुझे बिल्कुल आश्चर्य नहीं है। ऐसे लफंगों का मनोविज्ञान और रणनीति मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। ये ऐसी ही हरकत अपने घर परिवार, आस पास के समाज मे भी कभी न कभी कर गुजरेंगे। इन्हें यही सिखाया जा रहा है कि गाली गलौज करें, खुल कर अश्लील शब्दों का प्रयोग करें, धार्मिक जहर फैलाएं, हर प्रकरण को साम्प्रदायिक नज़रिए से देखें, और बीच बीच मे जय श्री राम , भारत माता की जय, वंदे मातरम का भी उल्लेख भी कर दें, तभी तो राष्ट्रवाद की छौंक लगेगी, क्योंकि उन्हें यह ही बताया गया है कि यही राष्ट्रवाद है। मुझे उन पर सचमुच तरस आता है जब संबित पात्रा जैसे चिकित्सक जो देश की सबसे नामचीन सरकारी कम्पनी ओएनजीसी के एक डायरेक्टर के साथ साथ भाजपा के सबसे चहेते और लोकप्रिय प्रवक्ता हैं भी टीवी चैनल्स पर कभी कभी इन्हीं टॉल्स की भाषा बोलने लगते हैं। अधिकतर साइबर लफंगों के हमारे प्रधानमंत्री जी सहित अन्य कई मंत्री उनके अनुगामी भी हैं। यह उनके लिये शर्म की बात हो या न हो, लेकिन हममें से बहुतों के लिये है क्यों कि वे भारत भाग्य विधाता हैं।
राम लला के मंदिर बनने के बारे में कोई विवाद नहीं है। यहां जो भी विवाद है वह गढ़ा हुआ विवाद है। भाजपा जब सरकार में नहीं रहती है तो कहती है कि जब लोकसभा में बहुमत आएगा तो कानून बनाएंगे। जब लोकसभा में राम बहुमत दे देते है तो ये कहते हैं राज्य में सरकार बन जाय तो बनायेगे। राम ने राज्य में भी सरकार बना दी और मन्दिर आंदोलन से जुड़े एक मजबूत स्तम्भ से मुख्यमंत्री भी बना दिया। अब क्या कहना है ? अब यह कहना है कि अदालत का जो फैसला होगा वह मान्य होगा। अदालत का फैसला मान्य होगा यह तो सभी पक्ष पहले से ही कह रहे हैं। अदालत ने भी यह साफ कह दिया कि वे राम का जन्म स्थान कहाँ है यह तय करने नहीं बैठे हैं बल्कि उस इमारत जिसे सरकार के अभिलेखों में विवादित ढांचा कहा जाता है, का मालिकाना हक या टाइटिल सूट किसके नाम है यह तय करेंगे। और यह दस्तावेजों के सुबूत के आधार पर तय होगा न कि आस्था के आधार पर। अदालत आस्था की डिग्री तय नहीं करती है वह यह तय करती है कि साक्ष्य या अभिलेख क्या कह रहे हैं। अब तो कम से कम, यह नारा और राम के नाम और मन्दिर का उपहास उड़ाना बन्द कीजिये।
हिन्दू या सनातन धर्म निश्चय ही गर्व करने लायक है। अपनी तमाम कर्मकांडीय और लोकाचार भरी बुराइयों के बावजूद अपनी दार्शनिक सम्पदा, समरसता, विविधता बहुलतावाद और नाना पुराण निगमागम प्रकृति के लिये इस पर गर्व किया जा सकता है। पर इन सारी दार्शनिक सोच और हज़ारो साल की समृद्ध परंपरा को दरकिनार कर के इसके संकीर्ण रूप हिंदुत्व को, जो आज उसी प्रकार से समझा और समझाया जा रहा है, जैसे इस्लाम के वहाबी आंदोलन को समझा और समझाया गया है तो यह गर्व की बात बिल्कुल भी नहीं बल्कि नहीं चिंतन करने की बात है। लेकिन खंजर से लिखे राम, क्रोधित हनुमान, युयुत्सु भाव मे प्रत्यंचा खींचते राम, यह धर्म या राम का स्थायी भाव नहीं है। स्थायी भाव मर्यादा पुरुषोत्तम का है। पर मर्यादा पुरुषोत्तम वाले राम हिंदुत्व की बात करने वाले संगठनों का मक़सद पूरा नहीं करते । इसी लिये उन्होंने राम की एक विपरीत क्षवि गढ़ी है। यह क्षवि न तो वल्मीकि के राम की है, न तुलसी के राम की, न कबीर सहित भक्ति आंदोलन के तमाम संतो के निर्गुण राम की और न ही गांधी के राम की। यह क्षवि राम के धीरोदात्त नायक के विपरीत राम की है।
ऐसे फर्जी आईडी वाले पवन शर्मा अकेले नहीं होंगे और भी होंगे। ये सब भले ही अपने संगठन और राजनीतिक दल, जिस किसी भी दल से ये सब जुड़े हों उस संगठन और दल को भले ही कुछ तात्कालिक लाभ पहुंचा दें, पर देश का वे अहित ही कहेंगे। इन मारीच और संत का भेस धरे रावण से देश और समाज को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
© विजय शंकर सिंह
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