Thursday 19 July 2018

19 जुलाई - दुःखद निधन - कवि गोपालदास नीरज - विनम्र श्रद्धांजलि / विजय शंकर सिंह

हिंदी के मूर्धन्य कवि गोपाल दास नीरज का आज दुःखद निधन हो गया। 1964 में वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर नृत्य, संगीत, वाद विवाद की अनेक प्रतियोगिताओं के साथ साथ एक रात कवि सम्मेलन भी होता था। 1964 से 72 तक यूपी कॉलेज का छात्र रहने के कारण दो ऐसे कवि सम्मेलनो में  नीरज को सुनने का अवसर मिला। उनका प्रसिद्ध गीत कारवां गुज़र गया, श्रोता और दर्शकों की मांग हुआ करती थी। यह पहलीं बार उन्ही के मुख से वहां सुना। लेकिन मेरी व्यक्तिगत मुलाक़ात उनसे नहीं हुयी थी तब तक।

1980 - 81 में जब अलीगढ़ मेरी पोस्टिंग ट्रेनिंग के लिये हुयी तो, अलीगढ़ एक अनजाना शहर था। जिस दिन अलीगढ़ स्टेशन पर टीन के दो बक्से और एक तलवार जो यूनिफॉर्म का अंग थी लेकर उतरा तो स्टेशन पर ही मौजूद जीआरपी के एक सब इंस्पेक्टर ने कहा कि शहर मे कर्फ्यू है और इसका कारण दंगा है। मैं मय साज़ ओ सामान जीआरपी थाने आया । थाने से जब पुलिस लाइन की जीप मंगाई गयी तो मैं अलीगढ़ पुलिस लाइन गया। उस समय एसएसपी अलीगढ़ श्री बीपी सिंह थे। वे मेरे सेवाकाल के प्रथम गुरु थे।

दूसरे दिन, शहर में कर्फ्यू, सारे अफसर ड्यूटी पर, मुझे ट्रेनिंग देता तो कौन देता। अलीगढ़ में मैं किसी को जानता नहीं था। किसी से बातचीत करते करते यह पता लगा कि नीरज जी अलीगढ़ के ही हैं। जीप ले उनके घर पहुंचा। न वे मुझे पहचानते थे न उन्ही की शक्ल मुझे याद थी। लेकिन पुलिस ड्राइवर उन्हें जानते थे। उन्होंने मेरा परिचय दिया, मैंने प्रणाम किया। फिर दस पन्द्रह मिनट की बातचीत। चाय और चाय के साथ कुछ बिस्कुट। न तो उन्होंने मुझे कोई गीत सुनाया न मेरा ही संकोच टूटा कि उनसे कुछ सुनाने के लिये कहूँ। मुख्तसर सी मुलाक़ात रही यह।

इसके बाद कुछ आयोजनों में जो मुलाक़ात श्रोता और कवि की होती है, वैसी ही या कुछ उससे अधिक अनौपचारिक मुलाक़ात अलीगढ़ में होती रही। 1986 में मैं अलीगढ़, से मथुरा और मथुरा से मिर्जापुर होते हुए कानपुर आया तो यहीं ठहर गया। कानपुर में नीरज जी डीएवी कॉलेज में पढ़े थे और अक्सर आते रहते थे। यहां उनसे मुलाकात भी होती थी और कुछ लंबी बातें भी। नीरज ने कानपुर में कई कवि सम्मेलनों को अपनी उपस्थिति से गरिमामय बनाया। कवि सम्मेलनों में उनकी गूंजती हुयी आवाज़ और सधी शब्दों की कविताएं श्रोताओं को बांधे रखती थी।

आज 19 जुलाई को नीरज ने 93 साल की उम्र में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में अंतिम सांस ली। इटावा उत्तर प्रदेश के मूल रूप से रहने वाले नीरज हिंदी साहित्य में एक गीतकार के रूप में तो प्रतिष्ठित थे ही उन्होंने फिल्मों के लिये भी बहुत से मधुर गीतों की रचना की। फिल्मों में गीतकार के रूप में उन्हें तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण के सम्मान से भी उनको सम्मानित किया है।

साहित्यकार कभी नहीं मरते हैं। अक्षरों के सहारे वे सदैव जीवंत बने रहते हैं । अक्षर तो अ क्षर होता है। उसका कभी भी न क्षरण होता है और न वह साहित्यकार का क्षरण होने देता है।

नीरज की यह कविता पढ़े,
हम तुम्हें मरने न देंगे

धूल कितने रंग बदले डोर और पतंग बदले
जब तलक जिंदा कलम है हम तुम्हें मरने न देंगे

खो दिया हमने तुम्हें तो पास अपने क्या रहेगा
कौन फिर बारूद से सन्देश चन्दन का कहेगा
मृत्यु तो नूतन जनम है हम तुम्हें मरने न देंगे।

तुम गए जब से न सोई एक पल गंगा तुम्हारी
बाग में निकली न फिर हस्ते गुलाबों की सवारी
हर किसी की आँख नम है हम तुम्हें मरने न देंगे

तुम बताते थे कि अमृत से बड़ा है हर पसीना
आँसुओं से ज्यादा कीमती है न कोई नगीना
याद हरदम वह कसम है हम तुम्हें मरने न देंगे

तुम नहीं थे व्यक्ति तुम आजादियों के कारवाँ थे
अमन के तुम रहनुमा थे प्यार के तुम पासवाँ थे
यह हकीकत है न भ्रम है हम तुम्हें मरने न देंगे

तुम लड़कपन के लड़कपन तुम जवानो की जवानी
सिर्फ दिल्ली ही न हर दिल था तुम्हारी राजधानी
प्यार वह अब भी न कम है हम तुम्हें मरने न देंगे

बोलते थे तुम न तुममें बोलता था देश सारा
बस नहीं इतिहास ही तुमने हवाओं को सवाँरा
आज फिर धरती नरम है हम तुम्हें मरने न देंगे।
( गोपालदास नीरज )

कवि नीरज के दुःखद निधन पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

© विजय शंकर सिंह

No comments:

Post a Comment