मैं देवरिया जिले में 4 सितंबर 1992 से 28 अगस्त 1995 तक अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त था। 1994 की गर्मियों तक देवरिया जिला बंटा भी नहीं था। तब तक जिला कुशीनगर या पडरौना बना नहीं था। पड़रौना जिले में ही एक थाना पड़ता था, रामकोला । रामकोला एक छोटा कस्बा था, और वहां एक निजी चीनी मिल थी। उस मिल में गन्ना के बकाया भुगतान को लेकर बहुत तनातनी चल रही थी। मिल बंद थी। किसानों का धरना मिल के गेट पर चल रहा था। यह धरना चल तो रहा था एक महीने से। पर मिल प्रबंधन की एसडीएम और सीओ पडरौना के साथ धरने का शांतिपूर्ण हल निकालने के लिये बातचीत भी लगातार चल रही थी।
अचानक एक दिन शाम को देवरिया मुख्यालय पर खबर मिली कि किसानों की उग्र भीड़ ने कस्बे में जुलूस निकाला और मिल गेट पर बड़ी सभा करने के बाद वे थाने पर आए। जुलूस और मिल गेट पर ही कुछ किसान नेताओं से पुलिस की झड़प हो गयी। जैसा कि अक्सर होता है गन्ना के बकाए भुगतान का मामला तो पृष्ठभूमि में चला गया, पुलिस के उत्पीड़न का मामला सामने आ गया। किसान मिल गेट के साथ साथ थाने के सामने भी धरना दे कर बैठ गए। उस समय मोबाइल फोन और आज की तरह से सुख सुविधा सम्पन्न डायल हंड्रेड की गाड़ियां नहीं होती थीं। वायरलेस सिस्टम था। एसडीएम और सीओ जो भी उनके पास पुलिस बल था, लेकर रामकोला की ओर चल पड़े। देवरिया मुख्यालय से भी पुलिस लाइम में जो कुछ भी पुलिस पीएसी थी भेज दी गयी। रात तक भीड़ उग्र हो गयी। अचानक उग्र भीड़ ने थाने पर हमला किया और उसी के बाद जो भी पुलिस बल थाने में मौजूद था, ने फायर कर दिया। भीड़ की तरफ से भी बन्दूको से फायर किये गए और पत्थर चले। थानाध्यक्ष के सिर में चोट आई। उन्हें किसी तरह से निकाल कर गोरखपुर भेजा गया फिर गोरखपुर से वाराणसी बीएचयू मेडिकल कॉलेज में। वे मरणासन्न थे। पर बच गए। अब वे नौकरी पूरी करके इलाहाबाद में रह रहे हैं।
थानाध्यक्ष के गम्भीर रूप से घायल होने के बाद तो थोड़ी देर के लिये लाठी और कुछ फायरिंग भी हुगी। दो किसानों को भी गोली लगी, उन्हें देवरिया सदर अस्पताल भेजा गया जहां एक कि मृत्यु हो गयी और एक की मृत्यु रामकोला में ही हो गयी थी। भीड़ तितर बितर हो गयी। मिल गेट का भी धरना समाप्त हो गया। लोग बकाया भुगतान भूल गए। पुलिस उत्पीड़न याद रहा। मिल मालिक ने चैन की सांस ली। और हम और किसान आमने सामने हो गए।
अब शुरू हुआ महाभोज। सरकार भाजपा की थी। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। गृह मंत्री सूर्य प्रताप शाही थे जो देवरिया के ही रहने वाले थे। घटना के दूसरे ही दिन भारी संख्या में फोर्स लगा दी गयी। मैं भी कुशीनगर आ गया और पथिक निवास जो एक सरकारी अतिथि गृह था में डेरा जमा लिया। मैं समझ गया था कि यह बवाल लंबा चलेगा। कभी कांग्रेस के कोई नेता, कभी भाजपा के तो कभी समाजवादी दल के हर स्तर के नेता आने लगे। रोज़ रोज़ एक ही सवाल पूछते, गोली क्यों चली। कुछ धैर्य से रहने और भीड़ नियंत्रण के नुस्खे भी बता जाते । कुछ तारीफ भी मेरी, मेरे सामने कर जाते थे कि यह तो सुलझे हुए अफसर हैं, कोई बात बिगड़ गयी होगी। बुद्ध की निर्वाण स्थली इस हिंसा पर बहस की केंद्र विंदु बनी रही। मेरे साथ एक युवा आईएएस अधिकारी डॉ रणधीर सिंह थे। वे और हम साथ ही थे। पर वे मितभाषी थे। कम मिलते थे और कम बोलते भी थे। मैंने कहा देवरिया या पूर्वांचल में मितभाषी अफसर लोगों को रास नहीं आता है। वे मुस्कुरा कर रह जाते। मैं ही लोगो से बात करता रहता।
उस समय रामकोला में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह आये पर उन्हें आने नहीं दिया गया। गिरफ्तार कर के फतेहगढ जेल देवरिया से भेज दिया गया। मुलायम सिंह भी आये, उन्हें भी देवरिया के पीडब्ल्यूडी डाक बंगले से चाय नाश्ता कर के रात का खाना खिला गिरफ्तार कर वाराणसी जेल भेज दिया गया। और भी लोग आए। उनके साथ भी यथोचित व्यवहार कर के पिंड छुड़ाया गया। शासन की इच्छा थी कि रामकोला कोई न जाने पाए। वहां जाने से स्थिति बिगड़ सकती है। जो मान जाते थे वे कुशीनगर या देवरिया में ही अपने पार्टी वालों से मिल कर पुलिस पर गुस्सा निकाल कर खुद ही चले जाते पर जो अड़ जाते उन्हें फिर गिरफ्तार कर गोरखपुर या आजमगढ़ भेज दिया जाता। जनेश्वर मिश्र आये तो अड़ गए और चार सौ लोगों के साथ गिरफ्तारी दी। जितने महानुभाव रामकोला कांड के सिलसिले में आये थे उन सबके साथ मुझे और डॉ रणधीर सिंह जो सीडीओ भी थे को साथ साथ झेलना पड़ता था।
इसी क्रम में चंद्रशेखर जी भी आये। वे गोरखपुर से रात में ही कुशीनगर आ गए और हमने उनका स्वागत किया और बस औपचारिक हाल चाल पूछ कर अपने कमरे में चले गए। दूसरे दिन सुबह ही देवरिया के जिला मैजिस्ट्रेट मनोज कुमार आए एसपी जेएल त्रिपाठी कुशीनगर आये। पहले तो हमलोगों से चंद्रशेखर जी का कार्यक्रम पूछा और पुलिस व्यवस्था फिर उन्होंने चंद्रशेखर जी से मुलाकात की और गोरखपुर एक मीटिंग में चले गए। 11 बजे दिन में चंद्रशेखर जी के रामकोला जाने का और उस मृतक किसान के घर जो रामकोला में ही था जाने का कार्यक्रम था। उनके गिरफ्तार करने का कोई निर्देश नहीं था। वे 10 बजे पथिक निवास के सभाकक्ष में बैठे। उनसे मिलने जुलने वाले भी थे। भीड़ उतनी नहीं थी। पर भीड़ तो रामकोला में थी। हम और सीडीओ साहब भी अंदर आये और अभिवादन के बाद उन्होंने मुझसे हाल चाल पूछा। मुझे वे व्यक्तिगत रूप से जानते और पहचानते थे। सीडीओ साहब से वे अपरिचित थे। उनसे भी रामकोला के बारे में उन्होंने पूछा। फिर वे अपने लोगों से बात करने लगे। हम बाहर आ कर बैठ गए।
ऐसी जगहों पर जब कोई बड़ा नेता रहता है तो उसके स्थानीय समर्थक थोड़ा अधिक मुखर रहते हैं। अंदर बैठे लोगों ने खूब शिकायतें की। पुलिस की तो शिकायत होती ही रहती है। यहां भी हो रही थी। हमारे एलआईयू वाले अंदर थे, वे आ आ कर कुछ कुछ हमे बता जाते थे। थोड़ी देर के बाद अंदर से एक सिपाही आया कि चलिये सर, साहब बुला रहे हैं। हमलोग अंदर गये। चंद्रशेखर जी ने अपने पास बैठे लोगों को हटा कर हमलोगों से बैठने को कहा। फिर शांत भाव से पूछा कि
क्या हुआ था ? पुलिस को गोली कैसे चलानी पड़ी ?
मैंने विस्तार से गन्ना किसान आंदोलन और उस दिन का किस्सा बताया।
उन्होंने पूछा कि गोली कहाँ पर चली थी ? रामकोला चीनी मिल के गेट जहां किसान धरना दे रहे थे या कस्बे में ?
मैंने कहा कि " गोली न तो मिल गेट पर चली और न ही कस्बे में। गोली तब चलाई गई जब एसओ गिर कर घायल हो गया और भीड़ थाने में घुस गई। सीओ और एसडीएम भीड़ के दूसरी तरफ थे । पहरे की रायफल छीनने की कोशिश हुयी तब जा कर गोली चली। थाने में चार पांच और कार्यालय के सिपाही थे। "
फिर उन्होंने उपस्थित लोगों से पूछा कि आप लोग थाने में घुसे थे।
कुछ बगलें झांकने लगे। एक ने कहा कि भीड़ उत्तेजित हो गयी थी। कुछ ज़रूर घुसे होंगे।
इस पर और लोग भी अपना अपना मंतव्य रखने लगे।
मैंने कहा कि थानाध्यक्ष बीएचयू अस्पताल में आज भी है। उसे हफ्ते भर बाद होश आया है। उसके सर पर गहरी चोट लगी थी। तीन सिपाही अभी भी गोरखपुर अस्पताल में हैं। आप कहें तो मैं गोरखपुर और वाराणसी के डीएम एसएसपी से आप की बात करा सकता हूँ।
उन्होंने कहा, मैं यहां जांच करने नहीं आया हूँ। अब मैं रामकोला नहीं जाऊंगा। मैं अब सीधे बलिया अपने गांव इब्राहिम पट्टी जाऊंगा।
इस पर कुछ लोगों ने कहा कि रामकोला में लोग आपकी प्रतीक्षा में हैं। वहां सभा की भी व्यवस्था है।
इस पर सीडीओ साहब ने कहा कि सभा कैसे होगी ? धारा 144 में सभा कैसे आप कराएंगे। आप उसकी अनुमति लीजिये।
तब मैंने चंद्रशेखर जी से कहा कि सर, वहां अभी भी तनाव है इसलिए 144 धारा लगायी गयी है। आप वैसे चलना चाहें तो हमलोग चल रहे हैं। पर भीड़ से दिक्कत होगी।
उन्होंने कहा मैं बिल्कुल नहीं जाऊंगा। सभा की तो कोई बात ही नहीं थी।
इस पर उनसे कुछ लोग यह कहने लगे कि तीन चार दिन से हमलोग आप के आने की राह देख रहे हैं। नही जाने पर लोग निराश हो जाएंगे।
इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए भोजपुरी में कहा कि थाने में घुस कर तोहन लोग बंदूक छिनबा त थाने से का रसगुल्ला बरसी। आपलोगों को अपना आंदोलन मिल से गन्ना के भुगतान के बारे में करना था न कि पुलिस थाने में घुस कर झगड़ा करना था।
थोड़ी देर रुकने के बाद वे कुछ गाड़ियों के काफिले के साथ बलिया जिले में स्थित अपने गांव की ओर रवाना हो गए। तीन साल की अवधि जो मेरी देवरिया में बीती, उस दौरान उनका कई बार आना हुआ। देखने मे सख्त पर व्यवहार से वे बहुत ही कोमल और ठेठ देसी थे। मिलने पर भोजपुरी में ही हाल चाल पूछते थे। आज उनकी पुण्यतिथि है। उनका विनम्र स्मरण ।
© विजय शंकर सिंह
Iss mahan atma ko pranam. Aur aapko v sukria k aapne yaad dila diya.
ReplyDelete