Tuesday 10 July 2018

जिओ इंस्टीट्यूट को बिना पढ़ाई की शुरूआत कराए ही देश के 6 सर्वश्रेष्ठ संस्थान में शामिल किये जाने पर एक प्रतिक्रिया  / विजय शंकर सिंह

मानव संसाधन मंत्रालय ने 6 संस्थानों को इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेन्स का दर्जा दिया है। जिसमे एक नाम, जिओ इंस्टिट्यूट का है। कमाल की बात है कि इस संस्थान में पढ़ाई ही अभी तक शुरू नहीं हुई है। अगर पढ़ाई शुरू नहीं हुई है तो क्या यह दर्जा बिना गुणवत्ता के ही दे दिया गया ? लेकिन सबसे बड़ी गुणवत्ता यही है कि यह मुकेश अम्बानी का संस्थान है और सरकार की हिम्मत नहीं कि वह इसे नज़रअंदाज़ कर दे। एक खबर के अनुसार, 

" मानव संसाधन मंत्री, प्रकाश जावडेकर ने देश के 6 उत्कृष्ठ संस्थानों Institutions of Eminence (IoEs) का ऐलान किया है. इसमें 'जियो इंस्टीट्यूट' का भी नाम है.

'जियो इंस्टीट्यूट' में अभी पढ़ाई नहीं होती और अगले तीन साल में यहां पढ़ाई शुरू होने की उम्मीद है. "

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने IoEs में कुल 6 इंस्टीट्यूट को शामिल किया गया है, जिनमें 3 सरकारी हैं और 3 प्राइवेट. ये हैं, ~


IIT दिल्ली

IIT बंबई

IIsc बेंगलुरु

मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन

BITS पिलानी

जियो इंस्टीट्यूट

देश में 800 यूनिवर्सिटी हैं, लेकिन एक भी यूनिवर्सिटी 100 या 200 वर्ल्ड रैंकिंग में शामिल नहीं है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय देशभर के इंस्टीट्यूट की रैंकिंग भी कराता है. इसे राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग ढांचे (NIRF) कहा जाता है. साल 2018 की रैंकिंग में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू पहले, आईआईटी मद्रास, दूसरे,  आईआईटी बॉम्बे तीसरे, आईआईटी दिल्ली चौथे स्थान पर था. वहीं मणिपाल 18 वें और BITS 26 वें स्थान पर था.। 'जियो इंस्टीट्यूट' तो NIRF-2018 का हिस्सा भी नहीं था। अभी यह पूरी तरह से शुरू भी नहीं हुआ है। अभी इसी साल ऐसी खबर आई थी कि रिलायंस फाउंडेशन कोई इंस्टीट्यूट बनाने जा रहा है. गूगल पर ढूंढने पर भी इस यूनिवर्सिटी के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल पा रही है। 

जावेडकर ने कहा कि " इस दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से एक और मील का पत्थर स्थापित करने वाली पहल की गई है. विशेषज्ञ समिति की ओर से इन उत्कृष्ट संस्थानों का चयन किया गया है और आज हम 6 यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी कर रहे हैं. जिओ इसी 6 में हैैं जहाँ अभी पढ़ाई भी शुरू नहीं हो पाई है। यह भी सत्तर साल में कभी नहीं हुआ था। सचमुच यह मील का पत्थर है। 

ग्रीनफील्ड यानी वे संस्थान अभी न हवा में हैं न ज़मीन पर । उनकी  श्रेष्ठता का मापदंड बनाने के लिये एक नई श्रेणी का गठन मानव संसाधन विकास मंत्रालय के विद्वान मंत्री प्रकाश जावेडकर ने किया था। एक है ग्रीनफील्ड, और दूसरा है #ब्राउनफील्ड। ग्रीन फील्ड माने हरा खेत और ब्राउनफील्ड माने पका अनाज का खेत। हरे खेत को पकने के पहले अभी बहुत कुछ सहना पड़ता है, पानी, पाला, ओला, ढोर डांगर, न जाने क्या क्या । जब कि पके अनाज के खेत को बस काटना और दँवाना पड़ता है। अम्बानी का #जिओइंस्टिट्यूट #JioInstitute अभी हरा है। लेकिन सरकार ने इन हरे खेतों में से सर्वश्रेष्ठ चुनने की कवायद भी शुरू की है। कुल 11 खेतिहरों ने अपने अपने ग्रीनफील्ड के लिये सरकार से गुहार लगाई थी। पर उसमे से जीता केवल  जिओ । जिओ भी जीत कर छाया ग्रह की तरह चमकते हुए कुछ नक्षत्रों के बीच स्थापित हो गया। सरकार ने भी प्रसन्नवदन हो कह दिया,  यही है सबसे उत्तम संस्थान। ग्रीनफील्ड के बारे में सरकार का कहना है कि ये वे संस्थान हैं जो कल सर्वश्रेष्ठ हो सकते हैं। इसे  भविष्यवाणी ही मानिये। 


जिओ के सर्वश्रेष्ठ संस्थानॉन में शुमार होने पर जब सोशल मीडिया में सरकार पर अंगुलियां उठी तो सरकार ने कहा कि, 

“The clause 6.1 of the UGC (Institutions of Eminence Deemed to be Universities) Regulation 2017, provides for a completely new proposal to establish an institution to be considered under this project,”

यूजीसी के नियमो में 2017 में जोड़े गए एक नए प्रावधान  के अनुसार, बिल्कुल नए संस्थान की स्थापना और उनकी श्रेष्ठता के लिये कुछ नियम बनाये गए हैं । जिओ इन्ही प्राविधानों के अंतर्गत नए निर्मित होने वाला  संस्थान है। इस प्रावधान के अनुसार, नए और विश्व स्तरीय  संस्थान स्थापित करने के लिये लोगों से प्रार्थना पत्र मांगे गए। इन  प्रावधान और नियमों का यह उद्देश्य है कि निजी क्षेत्रों से भी जो निजी क्षेत्र उच्च शिक्षा में रुचि रखते हैं, लोगों को विश्व स्तरीय संस्थान बनाने के लिये प्रेरित किया जा सके। सरकार के ही शब्दों में, 

“Accordingly, a separate category of applications have been invited from the sponsoring organisations for setting up new or Greenfield projects. The purpose of this provision is to allow responsible private investment to come into building global class education,”

जिओ ने इसी प्रावधान के अनुसार अपना आवेदन दिया। जिओ के साथ दस अन्य लोगों ने भी आवेदन किया था। अन्य प्रमुख आवेदकों में से, ओडिशा में स्थापित होने वाले, अनिल अग्रवाल का वेदांत विश्वविद्यालय और एयरटेल के सुनील मित्तल का भारती विश्वविद्यालय था। यह सारे आवेदन भी ग्रीनफील्ड श्रेणी के थे। इन्ही ग्यारह प्रार्थनापत्रों में से एक ही को सर्वश्रेष्ठता के लिये उपयुक्त पाया गया जो मुकेश अम्बानी का जिओ इंस्टिट्यूट है। यूजीसी ने इसे स्पष्ट करते हुये कहा है,

“We have selected Jio Institute under the greenfield category, which is a category meant for new institutes; institutes that have no history. We looked at the proposal and it turned out to be fit for the tag. They have a plan in place, they have funding, they have a place for a campus and everything that was required under the said category,”

पूर्व निर्वाचन आयुक्त गोपालस्वामी, इस चयन समिति के अध्यक्ष थे। कुल 11 ग्रीनफील्ड और 29 ब्राउनफील्ड के प्रार्थना पत्र प्राप्त हुए थे।

2016 में सरकार ने विश्वस्तरीय संस्थान बनाने के लिये इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेन्स Institution Of Eminence के गठन की योजना बनाई थी। इन संस्थानों को न केवल स्वायत्तता रहेगी बल्कि उन्हें विश्वस्तरीय मानक प्राप्त करने के लिये अपने नियम बनाने की भी स्वतंत्रता रहेगी। उद्देश्य यह है कि भारतीय शिक्षा संस्थान भी विश्वस्तर पर अपने को स्थापित कर सकें। उनमें इतनी क्षमता विकसित हो जाय कि वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ 500 संस्थाओं में अपना स्थान बना सकें। फिर और उन्नति करते हुये वे प्रथम सौ संस्थानों में अपने संस्थानों को ले आएं। जिओ के अचानक चयन से शिक्षा जगत में यह उत्कंठा बढ़ गयी है कि कुल 11 संस्थानों में से केवल जिओ पर यह कृपा क्यों हुईं ? इस #IoE में देश के अन्य श्रेष्ठ संस्थान, जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और कुछ आईआईटी भी शामिल नहीं है।

लेकिन जब अभी तक संस्थान बना नहीं, उसमे पढ़ाई शुरू नहीं हुई, फैकल्टी तय नहीं हुई, शोध और सामान्य पढ़ाई के स्तर और उसके परिणाम आये नहीं तब तक उसे सर्वश्रेष्ठ घोषित कर देना समझ के परे हैं। रिलायंस निश्चित रूप से एक बेहतर और विश्व स्तरीय शिक्षा संस्थान बना सकने में सक्षम है। उसके पास न तो संसाधनों की कमी है और न ही धन की। लेकिन शिक्षा संस्थान धन, ऐश्वर्य और अट्टालिकाओं से ही  श्रेष्ठ नहीं होते हैं, वे श्रेष्ठ बनते हैं, अपनी फैकल्टी, शोध की सुविधा और बंधन मुक्त वैचारिक सोच से। यह तो आकलन किया जा सकता है कि जिओ सबसे साधन संपन्न संस्थान बनेगा, पर वह विश्व मनीषा में कितना योगदान करेगा यह अभी कैसे  अनुमान लगाया जा सकता है ? इस चयन पर जो अन्य दस दावेदार यसी ग्रीनफील्ड श्रेणी के थे, ने भी आपत्ति उठायी है। उनका भी यह कहना है कि जो संसाधन और सुविधा जिओ अपने संस्थान में देने का वादा कर रहा है वह वे भी दे रहे हैं। लेकिन उन्हें किस आधार पर सर्वश्रेष्ठ नहीं चुना गया ? जब तक चयन कमेटी की मीटिंग की मिनट्स सार्वजनिक न हों तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि ग्यारह आवेदकों में से केवल एक जिओ को चुनने का क्या आधार है। 

सरकार ने जो आज स्पष्टीकरण दिया है उसके अनुसार एमिनेन्स इवैल्युएशन कमेटी ईईसी EEC ने निम्न मापदंडों के आधार पर जिओ को उपयुक्त पाया है। ये हैं,
1. इंस्टिट्यूट बनाने के लिए ज़मीन होना
2. एक उच्चस्तरीय कोर टीम का होना
3. इंस्टिट्यूट बनाने के लिए पर्याप्त फण्ड का होना
4. एक स्ट्रेटेजिक विजन प्लान और स्पष्ट वार्षिक योजना का होना 
जिओ को प्रथम 6 संस्थाओं में शामिल करने के बाद, धीरे धीरे जिंदल, बिड़ला, प्रेमजी, अशोका, अडानी, गलगोटिया, शिव नादर इत्यादि जो भारतीय उच्च शिक्षा का बाज़ारूकरण पहले ही करना शुरू कर चुके हैं के नक़्शेक़दम पर अब देश का सबसे सम्पन्न पूंजीपति घराना अंबानी भी शामिल हो गए हैं। आने वाले समय में सरकार एकदम नीतिगत तरीक़े से ऐसे ही सभी कॉर्पोरेट घरानों को शिक्षा की ज़िम्मेदारी सौंप देगी! उच्च शिक्षा न सिर्फ महंगी हो जाएगी बल्कि एक खास वर्ग के लिये ही सुविधाजनक रूप से उपलब्ध होगी।

© विजय शंकर सिंह 

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