Monday, 22 August 2016

Ghalib.- Asad ko but parastee se / असद को बुत परस्ती से - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह



ग़ालिब - 15,
असद को बुत परस्ती से गरज दर्द आशनाई है, 
निहां है नाला ए नाकूस में दर पर्दा यारब हां !!

असद - ग़ालिब का असली नाम, असदुल्ला खान ग़ालिब. 
बुत परस्ती - मूर्ति पूजा. 
नाला - आवाज़. स्वर. 
नाकूस - शंख. 

Asad ko but parastee se garaz dar aashanaaii hai, 
Nihaan hai naalaa e naaqoos mein dar pardaa haa !! 
-Ghalib. 

मूर्ति पूजा से मेरा अभिप्राय एक मात्र प्रेम के दर्द की प्राप्ति है, शंख के ध्वनि की आवाज़ में मुझे ईश्वर तू ही तू है की छिपी हुयी ध्वनि सुनाई देती है. 

ग़ालिब का शेर उनके दर्शन के उच्चतम आयाम को प्रदर्शित करता है. इस्लाम में मूर्ति पूजा को कोई स्थान नहीं है. लेकिन यहाँ ग़ालिब ने मूर्ति पूजा में बजने वाले शंख ध्वनि में भी ईश्वर की ध्वनि को अनुभव किया है. ग़ालिब जब अँगरेज़ गवर्नर जनरल को एक याचिका देने दिल्ली से कलकत्ता जा रहे थे तो जब बनारस पहुंचे तो बनारस की सुबह, मंदिरों में बजने वाले घंटा घड़ियाल और शंख की ध्वनि ने उन्हें बहुत आकर्षित किया और वह प्रभावित भी हुए. उन्होंने फारसी में एक लम्बी नज़्म लिखी. इसमें उन्होंने बनारस को हिन्दुओं का काबा कहा है. इस शेर के द्वारा उन्होंने सारे धर्म और दर्शन का मूल कि ईश्वर एक है. मूर्तिया ईश्वर नहु बल्कि उसकी उपासना का एक माध्यम है. ग़ालिब के हर शेर में कहीं न कहीं उच्च कोटि का दर्शन छिपा है. ग़ालिब का विरोध मुल्लों ने तब भी किया था. लेकिन ग़ालिब ही साबित हुए. 
-vss


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