कल दही हांडी पर मैंने एक पोस्ट डाली थी और एक जिज्ञासा की थी कि ' क्या ठाकरे परिवार या इस आयोजन के आयोजकों में से किसी सज्जन के घर परिवार के चार पांच साल के बच्चे भी गोविंदा बन कर मानव पिरामिड के शीर्ष पर चढ़ें हैं ?' इस जिज्ञासा का समाधान नहीं हुआ बल्कि एक और जिज्ञासा उछाल दी गयी, कि 'क्या मुहर्रम के बारे में ऐसा कोई आदेश हुआ है क्या ? 'यह जिज्ञासा स्वाभाविक थी । मैंने कुछ जानकारों से ज्ञात किया तो पता चला कि ऐसा कोई आदेश नहीं है कि मुहर्रम के अवसर पर कोई हिंसक शोक प्रदर्शन न किया जाय । धर्म एक बेहद संवेदनशील मामला है । आस्थावान भी आस्था क्यों है इस पर कोई तर्क नहीं देता है और न ही तर्क पसंद करता है । वह बहुत ही नाज़ुक दिल होता है, ईश्वर से अधिक वह आहत हो जाता है । दही हांडी पर भी जिसे आहत होना था सो आहत हुआ। आहत होने का भी एक विचित्र कारण यह था कि, क्या मुहर्रम के बारे में कोर्ट ने दखल क्यों नहीं दिया । बात तो सच है , तुम खतरा उठा कर अपनी परम्पराएँ जीवित रख सकते हो तो हम क्यों नहीं ।
दही हांडी, कृष्ण के माखन चोरी के प्रकरण का एक स्वांग है जिसे जन्माष्ठमी के अवसर पर मनाया जाता है । मुम्बई में जन्माष्ठमी को गोकुलाष्ठमी भी कहते हैं । मुम्बई और उसके उपनगर थाणे में यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है , और इस आयोजन पर बहुत ईनाम आदि भी दिए जाते हैं । मानव पिरामिड कई स्तरों का बनाया जाता है जिसके शीर्ष पर हल्का होने पर सबसे छोटा बच्चा चढ़ाया जाता है । कृष्ण बचपन में अपने संगी गोपों के कंधे पर बैठ कर छींके में रखे मिटटी के पात्र से दही या माखन चुरा कर खाया करते थे, यह उसी का प्रतीकात्मक प्रदर्शन है । बाद में जब इस पर इनाम आदि घोषित होने लगे तो, इसका रूप व्यावसायिक हो गया और टीवी के चलन ने इसे आकर्षक और लोकप्रिय भी बना दिया । पुरस्कार की राशि भी एक लाख से लेकर 12 लाख तक हो गयी । मुम्बई का मुख्य आयोजन होने के कारण शिव सेना और राज ठाकरे का इस से जुड़ना स्वाभाविक है । अब यह मुम्बई और थाणे के सड़कों से उठ कर हम सब के ड्राइंग रूम में आ गया । दही हांडी का एक कीर्तिमान गिनीस बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी शामिल है । जोगेश्वरी के एक जय जवान गोविंदा पाठक मंडल ने 13.35 मीटर यानी 43.79 फ़ीट ऊंचाई पर रखी दही हांडी को 9 स्तरीय मानव पिरामिड बना कर फोड़ा था । यह कीर्तिमान 2012 का है । यह अभी टूटा नहीं है ।
पर दही हांडी उत्सव एक अन्य कारण से अभी खबरों में है । सारे उत्सव प्रारम्भ में धार्मिक श्रद्धा से आयोजित होते हैं पर जब वह लोकप्रिय होने लगते हैं तो उनमे व्यावसायिकता भी घुस जाती हैं । धर्म का यह अर्थशास्त्र है । इनाम आदि जब बहुत घोषित होने लगे तो विभिन्न गोविंदा मंडलों में प्रतियोगिताएँ भी बढ़ने लगी और दही हांडी और ऊपर सरकने लगी । परिणामस्वरूप मानव पिरामिड के आवश्यकता से अधिक ऊपर होने और शीर्ष पर खड़े चार पांच साल के बच्चों के कारण दुर्घटनाएं भी अधिक होने लगी । यह प्रवित्ति वर्ष 2000 ईस्वी के बाद से अधिक बढ़ गयी है । 2012 में जर्नल ऑफ़ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिसिन ने एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें यह निष्कर्ष छापा कि, मानव पिरामिड के बढ़ने और कई स्तरीय होने के कारण , इसका कारण इसमें भाग लेने वाले गोविंदाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । अकेले वर्ष 2012 में ही 250 से अधिक गोविंदा घायल हुए और कुछ को उनके मेरुदंड पर गहरी चोट पहुंची जिस से उनके स्नायु तंत्र को नुकसान पहुँचा । जब कि 2011 में घायल होने वालों की संख्या 205 थी । इस अध्ययन के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों को इस आयोजन में भाग लेने पर प्रतिबंधित कर दिया । बाद में एक याचिका पर सुनवाई कर के महाराष्ट्र हाई कोर्ट ने आयु सीमा 18 वर्ष की कर दी । और दही हांडी की ऊंचाई 20 फ़ीट से अधिक करने पर रोक लगा दी । हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद दही हांडी के आयोजक अपील में सुप्रीम कोर्ट गए । सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त 2016 को इस अपील पर अपना फ़ैसला सुनाया और उसने हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखा । अब इसी फैसले को धर्म में हस्तक्षेप और आस्था का प्रश्न बताया जज रहा है । यह याचिका मुम्बई स्थित एक ट्रस्ट ने दायर की थी । महाराष्ट्र सरकार ने भी ऊंचाई 20 फ़ीट के बजाय 25 फ़ीट रखने की मांग पर पुनर्विचार करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की पर कोर्ट ने 20 फ़ीट की ऊंचाई को बढ़ाने से इंकार कर दिया । मुम्बई में कल जन्माष्ठमी के दिन 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के दोनों आदेशों , 18 साल से कम के गोविंदा के भाग लेने और दही हांडी की ऊंचाई 20 फ़ीट से अधिक न करने , का उल्लंघन किया है । अब कोर्ट इस पर क्या करती है यह देखना है ।
दही हांडी परम्परा है पर कोर्ट की रोक इस परम्परा पर नहीं बल्कि इसके खतरनाक होते जाते स्वरूप को ले कर है । मुहर्रम में भी ताजिये और आग का मातम, और तलवार बरछी आदि का मातम शिया समुदाय मनाता है । यह भी एक खून खराबे वाला मातम होता है । पर संभवतः ऐसा मातम शिया बाहुल्य ईरान में भी नहीं मनाया जाता है । अगर किसी को ऐसे खूनी मातम से दुःख पहुंचा हो, और कोई ऐसा अध्ययन कि ऐसे मातम के समय लोग घायल हो गए हों तो वह भी कोर्ट जा सकते हैं । यह मामला भी कोर्ट नहीं गया होता तो ऐसा निर्देश नहीं आता । उत्सव आनंद की एक अभिव्यक्ति है । वह बाज़ार नहीं है । वह आस्था का प्रश्न है । आस्था और एडवेन्चर में अंतर है । एडवेंचर हमारी क्षमता को नापने का एक माध्यम है । आस्था , आराध्य के प्रति समर्पण है और उस से तादात्म्य स्थापित करने का एक साधन है । कृष्ण की बाल लीलाओं के स्वांग में कोई बुराई नहीं हैं । स्वांग हमारी संस्कृति का एक अंग है । रामलीलाएं, कथक, सहित सारे भारतीय शास्त्रीय नृत्य राम कथा और महाभारत सहित अनेक पुरा आख्यानों के स्वांग की ही अभिव्यक्ति हैं । पर वे एडवेंचर नहीं है । इसी प्रकार दही हांडी जब तक एक उत्सव और परम्परा का निर्वाह बना रहा तब तक कोई बात नहीं हुयी । पर जब यह प्रतियोगिता , और घातक होने लगा तो सरकार और कुछ लोग जाग्रत हुए और अदालतों को दखल देना पड़ा ।
( विजय शंकर सिंह )
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