Friday, 19 August 2016

किस्सा ए बलोचिस्तान - एक ऐतिहासिक विवेचन / विजय शंकर सिंह


1946 के अंत तक ब्रिटेन ने घोषणा कर दी थी कि, 1948 साल लगते लगते भारत को आज़ाद कर दिया जाएगा । चर्चिल जो भारत जैसे रत्न को महारानी ब्रिटेन के मुकुट से खोने के पाप का भागी नहीं बनना चाहता था, ब्रिटेन का चुनाव जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ था , हार गया था । लेबर पार्टी जो भारत के आज़ादी के पक्ष में थी, वह चुनाव जीत गयी थी और क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बन चुके थे । लार्ड वेवेल का स्थान ब्रिटेन के राजन्य परिवार के नील रक्तवर्णी लार्ड माउंटबैटन, द्वीतीय विश्व युद्ध में दक्षिण पूर्व एशिया का समर जीतने के बाद , रायसीना हिल के भव्य वाइसरीगल लॉज में आ चुके थे । आज़ादी और बंटवारे, के सदर्भ में मीटिंग, मुलाक़ातें और पेटिशंस का आदान प्रदान चल रहा था । टाइप राइटर्स खटखटा रहे थे । ड्राफ्ट्स लिखे जा रहे थे और एक एक शब्द पर मंथन कर उसे संशोधित किया जा रहा था । लग रहा था सब के सब एक अंधी सुरंग में कभी एक दूसरे का हाँथ पकडे तो कभी एक दूसरे से उलझते आगे बढ़ रहे थे । आज़ादी की मांग 1930 में जितनी ही एकजुटता से की गयी थी अब उतना ही मत वैभिन्नय पसर रहा था । भारत का आज़ादी के बाद क्या स्वरूप रहेगा, और बंटवारे में क्या नक़्शा रहेगा यह सिवाय ईश्वर के कोई नहीं जानता था, न तो आज़ादी देने वाले गौरांग महाप्रभु और न ही आज़ादी लेने वाले तपे तपाये पर थके और उकताए हमारे रहनुमा । जीवन में वक़्त अक्सर ऐसे ही भूलभुलैया में डाल देता है, तब जिस धैर्य , और स्थितप्रज्ञता की आवश्यकता पड़ती है , उसका उस समय अभाव था । पर वक़्त को तो चाल चलनी ही थी । और वह चाल चल चुका था। 15 अगस्त को देश बँटा और आज़ाद हुआ ।

बलोचिस्तान जो आप को पाकिस्तान के नक़्शे में ईरान से सटा हुआ और ईरान के अंदर घुसा हुआ दिखता है, वह पाकिस्तान का दक्षिणी पश्चिमी इलाक़ा है । वह देसी रियासतों का भू भाग था । कुछ भाग  ब्रिटिश भारत का भी हिस्सा था । यह दक्षिण में अरब सागर से मिलता है और अच्छी खासी समुद्री सीमा बनाता है । इसका क्षेत्रफल 3,47,190 वर्ग किमी, जो पूरे पाकिस्तान के ज़मीनी भूभाग का आधा भाग और जनसंख्या 1,31, 62,222 जो पाकिस्तान की कुल जन संख्या का 5. 6% है । यह भूभाग प्राकृतिक सम्पदा और खनिज आदि से भरा पूरा है । लेकिन पूरे बलोचिस्तान में भयंकर गरीबी है । लोगों के रहन सहन की दशा बहुत खराब है । पीने के पानी सहित लगभग सभी नागरिक सुविधाओं का अभाव है । यह पाकिस्तान के सबसे गरीब इलाक़ों में से एक है ।

भारत के विभाजन के पूर्व, बलोचिस्तान में कुल चार देसी रियासतें थीं। वे , कलात, लसबेला, खरन, और मकरान की रियासतें थीं । इनमें से लसबेला और मकरान की रियासतें ब्रिटिश सम्राट द्वारा कलात के खान को सौंप दी गयी थी । ये रियासतें एक ट्रस्ट के समान सिर्फ उनकी देखभाल के लिये सौंपी गयी थी । वे कलात के खान की अपनी रियासत नहीं थी । इस प्रकार कलात के खान के पास अपनी कलात की रियासत के अतिरिक्त उपरोक्त दोनों रियासतें भी थीं । क्यों कि मकरान तो कलात का ही एक ज़िला था । मई 1947 में आज़ादी के तीन माह पूर्व एमए जिन्ना ने कलात के स्थिति के बारे में चर्चा की । जिन्ना , कलात को पाकिस्तान का अंग बनाना चाहते थे, पर कलात के खान इस से सहमत नहीं थे । इस सम्बन्ध में कई दौर की बैठकें हुयी पर कोई नतीजा नहीं निकला। अंत में वायसरॉय , क्राउन के प्रतिनिधि और जिन्ना के साथ इस मसले को हल करने के लिए एक निर्णायक बैठक हुयी । यह बैठक दिल्ली में हुयी । बैठक में जो तय हुआ उसी के आधार पर 11 अगस्त 1947 को एक परिपत्र जारी हुआ, जिसमें इस मामले का निस्तारण इस प्रकार किया गया ।

1. पाकिस्तान की सरकार, कलात को स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देगी । यह स्थिति अन्य देसी रियासतें जो अविभाजित भारत में हैं उनसे अलग होगी ।
2. ब्रिटिश क्राउन से कलात की जो सन्धियां हुयी हैं, उनकी कानूनी स्थिति अलग से कानूनी राय ले कर दोनों पक्ष यानी, पाकिस्तान सरकार और कलात के खान, तय करेंगे ।
3. तब तक अभी जो स्थिति एक स्वतंत्र और सम्प्रभु कलात की है वही रहेगी । पाकिस्तान सरकार इसे मानेगी ।
4. पाकिस्तान और कलात के बीच रक्षा, वैदेशिक मामले, और संचार पर क्या स्थिति होगी, इस सम्बन्ध में जल्दी ही एक बैठक कराची में बुलाई जायेगी ।
यह परिपत्र यह स्पष्ट करता है कि,
1. कलात की स्थिति अन्य देसी रियासतों से अलग थी ।
2. कलात के खान का यह कहना कि वह स्वतंत्र और खुदमुख्तार रहना चाहेंगे , से अँगरेज़ सहमत थे ।
3. जिन्ना साहब को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं थी ।
4. सिर्फ तीन विषय पर बात होनी थी, वैदेशिक मामले, रक्षा और संचार ।



इस निर्णय के बाद, जिन्ना का विचार बदला और वे कलात को पूरा का पूरा मिला कर पाकिस्तान का एक प्रान्त बलोचिस्तान के रूप में चाहते थे, जैसा कि भारत में स्थित अधिकांश देसी रियासतों ने भारत में विलय की स्वीकृति दे दी थी , जो कि कलात के खान नहीं चाहते थे । ब्रिटिश पोलिटिकल डिपार्टमेंट के पाकिस्तान शाखा के अधिकारी,  ग्राफी स्मिथ ने 17 अक्टूबर , 1947 को, पाकिस्तान - कलात के समझौते पर, जो ऊपर दिया गया है, के सम्बन्ध में एक नोट भेजा । उस नोट में यह लिखा गया था कि, जिन्ना, पाक - कलात समझौते के बारे में पुनर्विचार करना चाहते हैं, और वे नहीं चाहते हैं कि कलात एक सार्वभौम और सम्प्रभु तथा स्वतंत्र राज्य रहे । तब तक भारत में देसी रियासतों का विलय शान्ति पूर्ण रूप से हो रहा था । जिन्ना भी इसी प्रकार का विलयन कलात के खान से चाहते हैं । पाकिस्तान में कलात के खान को छोड़ कर अन्य रियासतों ने अपना विलय कर दिया था । जिन्ना ने यह भी कहा कि, कलात के पास जो दो रियासतें ट्रस्ट रूप में हैं, लसबेला और खरन उन्हें कलात के खान के अधिकार से हटा कर उनका विलय करा दिया जाय । चूँकि 11 अगस्त की बैठक में वायसरॉय और क्राउन के प्रतिनिधि भी थे, अतः यह नोट उनके पास भेजा गया ।

अक्टूबर 1947 तक जिन्ना ने यह मन बना लिया था, कि कलात को भी Instrument of accession विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर के जैसे अन्य रियासतें पाकिस्तान में मिल गयी हैं , वैसे ही कलात को भी मिला लेना है । वह कलात के खान को स्वतंत्र और सम्प्रभु नहीं बने रहना चाहते थे । कलात के खान न पहले विलय को राज़ी थे और न ही अब राज़ी हुए  । वे अपना स्वतंत्र अस्तित्व जो उन्हें 11 अगस्त 1947 की गोष्ठी में जिसमे जिन्ना भी थे, और जिन्ना कलात या बलोचिस्तान के स्वतंत्र अस्तित्व पर सहमत भी थे , को छोड़ कर, पूर्ण विलयन के लिए राज़ी नहीं थे ।  पर वे रक्षा, संचार और विदेश मामले के बारे में पाकिस्तान के साथ बात करने  को तैयार थे । लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य सभी मामलों में अपनी खुदमुख्तारी बनाए  रखना चाहते थे । हालांकि उन्हें यह आशंका थी कि, लसबेला और खरन की रियासतें जो उनकी नहीं , सिर्फ उनके देखभाल के लिए अधिकार में थीं, को कहीं पाकिस्तान सरकार ज़बरदस्ती ले न ले ।

फरवरी 1948 आते आते जिन्ना का धैर्य चुक गया । उन्होंने बलोचिस्तान को पाकिस्तान में मिला लेने का निश्चय कर लिया । उन्होंने कलात के खान को एक पत्र लिखा और उसमे उन्होंने अपना निश्चय स्पष्ट कर दिया -
“I advise you to join Pakistan without further delay…and let me have your final reply which you promised to do after your stay with me in Karachi when we fully discussed the whole question in all its aspects.”
( मैं आप को सलाह देता हूँ कि, आप अब और विलम्ब किये बिना ही पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ । मैं चाहूँगा कि जब आप कराची में हों तो मुझे अपना अंतिम फैसला बता दें । कराची में जब आप मेरे साथ होंगे तो हम इस प्रकरण पर विस्तार से चर्चा करेंगे । )
15 फरवरी 1948 को जिन्ना , बलोचिस्तान के एक और नगर सीबी में बलोचिस्तान के शाही दरबार को संबोधित करने गए । उन्होंने कहा कि, दो वर्षों तक, जब तक कि पाकिस्तान का संविधान तैयार नहीं हो जाता वे पाकिस्तान का शासन एक परामर्श मंडल की सहायता से करेंगे । उन्होंने पाकिस्तान के शासन और आज़ादी के बाद की योजनाओं का विवरण दिया । प्रत्यक्ष रूप से तो वे, यह दिखा रहे थे, कि, पाकिस्तान का भावी स्वरूप क्या होगा , पर उनका मूल उद्देश्य कलात के खान को विलय के लिए राज़ी करना था । खान को जिन्ना के इस उद्देश्य की भनक लग गयी थी । वह अंतिम बैठक में शामिल नहीं हुए, और जिन्ना को पत्र लिखा कि वह अस्वस्थ हैं । यह भी लिखा कि, जैसे ही वह थोडा स्वस्थ होंगे, तो वे दार उल उमरा, और दार उल अवाम, ( बलोच संसद के दोनों सदन , जिनके मशविरे से कलात के खान बलोचिस्तान का शासन चलाते थे ) की बैठक बुला कर सभी अमीरों और जनता की राय, पाकिस्तान में विलय हेतु , लेकर, जैसी राय होगी , उस से फरवरी के अंत या मार्च के प्रथम सप्ताह तक अवगत कराएंगे ।

दार उल अवाम की बैठक 21 फरवरी 1948 को खान द्वारा आहूत की गयी । वहाँ पाकिस्तान में शामिल होने का मुद्दा उठा । ज़ोरदार बहसें हुयी । अधिकतर लोग स्वतंत्र रहने के पक्ष में थे । अंत में बलोचिस्तान का अस्तित्व 11 अगस्त 1947 के परिपत्र के अनुसार बनाए रखने पर सब राज़ी हुए । स्वतंत्र रहने और न मिलने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया पर उन तीन विषयों , रक्षा, संचार, और विदेश मामलों के बारे में संधि हेतु वार्ता करने का निर्णय किया गया । जिन्ना को दार उल अवाम के फैसले से अवगत करा दिया गया । 9 मार्च 1948 को जिन्ना ने कलात के खान को एक पत्र लिखा और उन्हें यह बताया कि,
अब वह बलोचिस्तान के विलय के लिए निजी तौर पर कोई प्रयास नहीं करेंगे , अब जो भी वार्ता करनी है वह पाकिस्तान सरकार , सरकार के रूप में ही करेगी ।


उन्होंने यह भी कहा कि ,वह सीबी में निजी हैसियत से गए थे । वे निजी रूप से चाहते थे कि बलोचिस्तान का विलय पाकिस्तान में हो जाय । अब वे खुद को निजी रूप में इस मसले से अलग करते हैं । सीबी में जो कुछ उन्होंने कहा था, वह एक अनौपचारिक अनुरोध था ।
लेकिन पाक सरकार ने कलात को छोड़ कर अन्य तीन छोटी रियासतें लसबेला , खरन और मकरान को अपने में मिलाने की सोचना शुरू किया । मकरान तो कलात का ही एक ज़िला था । शेष दोनों रियासतों भी खान के ही अधिकार क्षेंत्र और नियंत्रण में थी । इसके अतिरिक्त बलोचिस्तान का वह भाग तो पाक के था ही जो ब्रिटिश भारत का अंग था । इन तीनों छोटी छोटी रियासतों को मिलाने के बाद कलात के खान का अकेला पड़ जाना स्वाभाविक था । यह सारी बातचीत गुपचुप रूप से हो रही थी । कलात के खान को भारत से भी कोई सहायता नहीं मिल सकती थी । भारत खुद भी कश्मीर, हैदराबाद, त्रावणकोर, और जूनागढ़ जैसी बड़ी रियासतों से जुडी समस्याओं के हल में जुटा हुआ था और बलोचिस्तान की सीमा भारत से मिली भी नहीं थी । 23 मार्च 1948 को अमेरिकी राजदूत ने अपने देश को एक पत्र भेजा, जिसमे उसने यह उल्लेख किया कि,
" 18 मार्च को खरन, लसबेला, और मकरान की रियासतों ने पाकिस्तान में अपने विलय को स्वीकार कर लिया है । "
कलात के खान ने इसका प्रबल विरोध किया और यह कहा कि, यह 11 अगस्त 1947 की संधि जो कलात और पाकिस्तान के साथ हुयी थी, कि कलात का स्वतंत्र अस्तित्व , उपरोक्त तीनों छोटी छोटी रियासतों सहित बना रहेगा । बात केवल रक्षा, संचार, और विदेश मामलों के सम्बन्ध में होंनी थी । खरन और लसबेला तो कलात के खान के ही अधिकार क्षेत्र में और मकरान तो कलात का ही एक ज़िला है , तो इन तीनों को तो विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने का ही अधिकार नहीं है । ब्रिटिश सरकार ने भी जुलाई 1947 से इन सभी छोटी रियासतों के बारे में निर्णय करने का अधिकार खान को ही दे रखा था । पाकिस्तान का यह कदम और कृत्य धोखा और फरेब है । पर खान की सुनता कौन ?



खान और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध बिगड़ गए थे । अब इस विलयन के बाद, ब्रिटिश बलोचिस्तान तो पाकिस्तान का भाग 14 अगस्त को हो ही गया था, तीनों छोटी रियासतें भी 18 मार्च 1948 को पाकिस्तान का भाग हो गयीं । अब बलोचिस्तान की सबसे बड़ी रियासत कलात बची । पाकिस्तान सरकार ने खान से किसी भी प्रकार की बातचीत और मनौव्वल करना बंद कर दिया । 26 मार्च को समुद्र के किनारे किनारे सिंध की सीमा से बलोचिस्तान के सागर तटवर्ती शहरों पसनी, जीवानी और तुरबत के रास्ते से पाकिस्तान की सेना ने प्रवेश किया । इरादा सैनिक कार्यवाही का था । इधर सेना घुसी और उधर कराची में यह खबर उड़ा दी गयी कि, कलात के खान ने स्वेच्छा से पाकिस्तान में शामिल होने की मंजूरी दे दी है । यह दिनांक 1 अप्रैल 1948 का दिन था, जब सेना ने कलात में प्रवेश किया । जिन्ना ने यह सहमति बंदूक के नोक पर ली और यह रियासतों को जो विकल्प ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए थे, उसका खुला उल्लंघन था । यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बलोचिस्तान की दार उल उमरा ने विलय को नकार दिया था । खान तो शुरू से ही विलय के खिलाफ थे । अगर खान ने उस विलय पत्र पर बंदूक की नोक पर दस्तखत भी कर दिया था तो भी उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं थी । ब्रिटेन ने भारत की आज़ादी और पाकिस्तान के गठन के पूर्व ही बलोच की इन चारों रियासतों को स्वतंत्र मान लिया था । विलय की तो कोई बात ही नहीं थी । इस प्रकार सम्प्रभु बलोचिस्तान सिर्फ 227 दिन ही स्वतंत्र रह पाया । वह पाकिस्तान में शामिल नहीं हुआ बल्कि पाकिस्तान ने उसे बल पूर्वक सेना के दम पर हथिया लिया । जब यह कार्यवाही हो रही थी तब भी कराची स्थित बलोच दूतावास पर बलोचिस्तान का झंडा फहर रहा था । 11 अगस्त से ही दोनों ही देशों , बलोचिस्तान और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार दौत्य सम्बन्ध स्थापित थे ।



पाकिस्तान की धोखाधड़ी का यह एक उदाहरण है । बलोचिस्तान की 90 प्रतिशत आबादी मुसलमान थी । और पाक का आधार ही मजहब था, और गठन के एक साल के अंदर ही मजहब ही राष्ट्र का आधार हो , का तिलिस्म टूटने लगा । खान के साथ पाकिस्तान सरकार के इस रवैये ने बलोच जैसे आत्म सम्मान वाले लड़ाकू लोगों को इनका स्थायी दुश्मन बना दिया । बलोच असंतोष, बांग्ला असंतोष से पहले ही पनप गया था । बाहर यानी बलोचिस्तान के बाहर , पाकिस्तान के अन्य प्रांतों से भेजी गयी पुलिस और सेना ने तभी दमन शुरू कर दिया । ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा इन सभी देशी रियासतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी 1858 के महारानी की घोषणा के बाद, सभी रियासतों ने सेना का गठन, प्रशिक्षण और उनका उपयोग बंद कर दिया था । सारे राजा बस ऐश ओ आराम में डूबे रहने लगे । खान के पास भी सेना नाम मात्र की और वह भी ब्रिटिश सेना जो अब पाक सेना बन चुकी थी , तुलना में बेहद पिछड़ी थी, अतः पाक सेना का सामना करने की तो बात ही नहीं सोची जा सकती थी । सेना के दमन का परिणाम यह हुआ कि जनाक्रोश समय समय पर बढ़ता गया और 2006 में सरदार अकबर बुगती और उनके क़बीले के 26 लोगों की हत्या के बाद, पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने बड़े पैमाने पर हत्या, लूट और जबरन धन उगाही की कई घटनाओं की जांच स्वतः संज्ञान ले कर की और बड़ी संख्या में दमन के मामले सामने आये । बिना कारण बताये गिरफ्तारी, निरुद्धि, और बिना मुक़दमे के फांसी जैसे मामले भी सामने आये । इन सब में पाक सेना और आई एस आई का स्पष्ट हाँथ मिला । पर पाकिस्तान सरकार ने ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने और सेना , पुलिस की लगाम कसने का कोई भी प्रयास नहीं किया । कचकोल अली बलोच जो बलोच विधान सभा में, नेता विरोधी दल थे ने सदन को बताया कि 4000 की संख्या में बलोच लोग या तो गायब हैं या कहीं न कहीं अवैध रूप से बंदी बनाये गए हैं । इनमे से 1000 छात्र हैं । इस आरोप के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने जांच की और उसने भी भारी संख्या में मानवाधिकार हनन की शिकायतों की जानh के बाद पुष्टि की । कचलोल अली बलोच का पुत्र भी 14 महीने तक अवैध रुप से बंदी बना कर रखा गया । यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है । अभी कुछ ही दिन पहले क़्वेटा के अदालत में एक विस्फोट में वकीलों की एक अच्छी खासी संख्या खत्म हो गयी । असंतोष अभी भी है और दमन भी ।

पाकिस्तान इन सब सारी घटनाओं के लिए भारत की रॉ को दोषी ठहराता है । पर सच बात तो यह है कि बालोच लोगों के साथ पाकिस्तानी सरकार का रवैया दुश्मन सरीखा रहा है । पाकिस्तान की नयी पीढ़ी को यह इतिहास नहीं पढ़ाया जाता है । उन्हें सिर्फ पढ़ाया जाता है कि सब हममजहब हैं और देश की एकता का आधार ही सिर्फ और सिर्फ इस्लाम है ।

( विजय शंकर सिंह )

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