Saturday 21 March 2015

World Poetry Day 2015 / विश्व कविता दिवस 1915 , आदि कवि वाल्मीकि , और निराला की कविता , ' तोड़ती पत्थर " / विजय शंकर सिंह


वियोगी होगा पहला कवि ,

आह से उपजा होगा गान ,

निकल कर आँखों से चुपचाप ,

बही होगी , कविता अनजान !!

( सुमित्रा नंदन पंत )

 

मनुष्य ने पहली कविता कब लिखी , यह बता पाना बहुत कठिन है , पर संस्कृत के आदि कवि वाल्मीकि के बारे में कहा जाता है कि प्रथम काव्याभियक्ति उन्ही के स्वर से हुयी है। रामायण उनका रचा एक महा काव्य है। गहन वन में मिथुन रत क्रोंच युग्म को , जब एक बधिक ने  , कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर रत्नाकर, ( वाल्मीकि ) की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।

 

 मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।'

 

(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी।) 

 

मादा क्रोंच की पीड़ा भरी  चीत्कार ने पाषाण ह्रदय वाल्मीकि को , जो तब स्वयं एक कुख्यात दस्यु थे , हिला दिया।  ' मा निषाद ' से प्रारम्भ हुयी इन पंक्तियों ने , वाल्मीकि के कोमल और संवेदनशील ह्रदय का नया रूप जगत के समक्ष रखा इस घटना के पश्चात दस्युकर्म से उन्हें विरक्ति हो गई ज्ञान की प्राप्ति में अनुरक्त हो गये। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण (जिसे कि "वाल्मीकि रामायण" के नाम से भी जाना जाता है) की रचना की और "आदिकवि वाल्मीकि" के नाम से अमर हो गये।

 

साहित्य के अनेक विधाओं में कविता सबसे पुरानी और लोकप्रिय विधा है। संसार की सारी प्राचीन रचनाएं अधिकतर काव्य रूप  है। कविता , मनुष्य के कोमलतम भावनाओं की अभिव्यक्ति है। आज विश्व कविता दिवस है। नवम्बर 1999 में यूनेस्को ने आज 21 मार्च को विश्व कविता दिवस रूप में घोषित किया है। आज का दिन कविता को लोकप्रिय अभिव्यक्ति के वाहक के रूप में सार्थक बनाये जाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। प्रथम विश्व कविता दिवस , 21  मार्च 2000 को मनाया गया था। कुछ देशों में यह 5 अक्टूबर को मनाया जाता है।  जब यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस घोषित नहीं किया था तो बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यह 15 अक्टूबर को मनाया जाता था। प्रख्यात रोमन कवि , वर्जिल का जन्म 15 अक्टूबर को हुआ था , इस लिए वह तिथि इस दिन के लिए चुनी गयी थी। आज भी यूनाइटेड किंगडम UK में , 5 अक्टूबर को ही कविता दिवस मनाया जाता है।

 

एक कविता निराला की ,

 

तोड़ती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर।

नहीं छायादार

पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,

श्याम तन, भर बँधा यौवन,

नत नयन, प्रिय कर्म रत मन,

गुरु हथौड़ा हाथ,

करती बार बार प्रहार

सामने तरु मालिका अट्टलिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप,

गर्मियों के दिन,

दिवा का तमतमाता रूप,

उठी झुलसाती हुई लू,

रूई ज्यों जलती हुई भू

गर्द चिंदी छा गई

प्राय: हुई दोपहर

वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा, मुझे तो एक बार

उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार,

देख कर कोई नहीं,

देखा मुझे उस दृष्टि से,

जो मार खा रोई नहीं,

सजा सहम सितार,

सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

एक छन के बाद वह काँपी सुघर

ढुलक माथे से गिरे सीकर

लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा

मैं तोड़ती पत्थर।

 

कवितातोड़ती पत्थरसूर्यकान्त त्रिपाठीनिरालाने लिखी है। इस कविता का रचना-काल सन् 1935 0 बताया जाता है। यह श्रमशील समाज की राजनीतिक संचेतना की मुखर अभिव्यक्ति है जो अपना स्वाधीन-पथ निर्मित करने में कर्मरत है। इस कविता का आरंभिक पंक्ति ही दृश्य में प्रतिरोध की पूर्ण-परिधि रच देता है. ‘तोड़ती पत्थरकविता वस्तुतः भारत के सर्वहारा वर्ग की राजनीतिक चेतना का संलयन है। ऐसे कठिनतम काल में निराला ने विद्रोह, प्रतिरोध तथा चेतना की राग को भास्वरित किया।

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