Tuesday, 17 March 2015

गांधी , गोवा सरकार और गोडसे / विजय शंकर सिंह



गोवा सरकार का फैसला , गांधी जयन्ती पर अवकाश घोषित करना , राष्ट्र के प्रति गांधी के योगदान को नकारना और इस विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व जिसके पद चिह्नों पर चल कर तीसरी दुनिया के अनेक देशों ने मुक्ति का मार्ग खोजा है और आज वे सवतंत्र हैं , के प्रति कृतघ्नता है। कृतघ्नता भारतीय संस्कृति का कभी भी अंग नहीं रहा है। इस विराट व्यक्तित्व , जिसे बौने रहनुमा , अक्सर नकारते रहते हैं , यह भूल जाते हैं , कि भारत के इतिहास में बीसवीं सदी के काल खंड की ,गांधी के बिना कल्पना नहीं की जा सकती। गांधी ने ड्राइंग रूम में चल रही आज़ादी की चर्चा को , जन जन में फैला दिया , यह गांधी का सब से बड़ा योगदान है। आप अवकाश रखें या रखें , यह आप की मानसिकता और विवेक पर निर्भर है , पर गांधी को प्रत्यक्षतः नकार नहीं सकते। दुनिया के लगभग सभी देशों में गांधी प्रतिमाएं हैं , उनके नाम पर आधारित संस्थाएं हैं राज मार्ग हैं। दुनिया जानती है , गांधी को , और उनके योगदान को. गोवा सरकार का फैसला निंदनीय है। भारत सरकार , यह कह कर बच नहीं सकती कि , अवकाश देना और देना राज्य सरकार के क्षेत्र में आता है। भारत सरकार से इस संबंध में कार्यवाही अपेक्षित है। गांधी के विचारों से , उनके क्रियाकलापन से कुछ का विचार वैभिन्य हो सकता है , पर निःसंदेह वह अपने युग के सब से बड़े और विराट व्यक्तित्व थे। 

गांधी जयन्ती के अवकाश के विवाद पर , गोवा सरकार ने भूल सुधार कर लिया है। वहाँ के चीफ सेक्रेटरी साहब का बयान आया है कि यह टंकड़ की गलती थी। मान लिया। पर गांधी को ले कर एक ख़ास विचारधारा के लोग उनके खिलाफ निंदात्मक अभियान चलाते रहते हैं। पर वह खुल कर गांधी के विरोध की बात स्वीकार नहीं करते। जैसे कि एक डॉक्टर कोई विशेष इंजेक्शन देने के पूर्व उसके प्रतिक्रिया को जांचने के लिए टेस्ट करते हैं , वैसे इस ख़ास विचारधारा के लोग ऐसे ही टेस्ट यदा कदा करते रहते हैं। गांधी का विरोध किया जाय यह तो सम्भव है और ही उचित है। गांधी कोई अतिमानव नहीं थे। वह एक राजनेता थे और उनकी अपनी दृष्टि थी। उनके अपने सिद्धांत थे। उन सिद्धांतों से तो सब सहमत हो सकते हैं और ही उन्हें सहमत होना चाहिए। पर अगर आप का गांधी विरोध है तो उस पर खुल कर आप को बात करनी चाहिये। इतिहास में देश के प्रतिमान बदलते रहते हैं। सोवियत यूनियन के पतन के बाद लेनिन , जो सोवियत क्रान्ति के जनक रहे हैं को भी भुला दिया गया था। गांधी के साथ भी जो कुछ यदा कदा हो रहा है , उस से खोखलापन ही जाहिर होता है।

आज एक नयी बात सुनायी पडी।  गोडसे , जो एक जाति  सूचक सरनेम है को संसद में असंसदीय शब्द घोषित कर रखा गया है। इसका कारण यह बताया जा रहा है , गांधी की हत्या , जिस नाथू राम गोडसे ने की थी , वह गोडसे सर नेम का था। गोडसे ने गांधी की हत्या की। उस पर मुक़दमा भी चला , और फांसी की सज़ा हुयी। गोडसे ने गांधी की हत्या के बारे में अपने तर्क रखे और कुछ लोग उसके तर्कों से सहमत भी हैं। यहां असुर पूजा भी मान्य है. यह बेहद विविधिता पूर्वक जीने वाला देश है।  गोडसे नाथू राम के हत्यारे हो जाने के कारण सारे गोडसे नाम धारी तो शापित नहीं हो जाएंगे। संविधान में किसी भी जाति विशेष को , जाति के आधार पर अपशब्द या गाली से सम्बोधित नहीं किया जा सकता है। एक सांसद ने जो खुद भी गोडसे नाम धारी हैं ने यह सवाल उठाया है। इस सर नेम को केवल नाथूराम गोडसे से जुड़ा होने के कारण असंसदीय मान लेना और घोषित करना , मेरी राय में उचित नहीं है।
- vss  


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