Tuesday 10 March 2015

एक कविता , आज फिर तुम मिले , / विजय शंकर सिंह.




आज फिर तुम मिले , 
वही सपनों में डूबी हुई , 
'अमिय, हलाहल, मद भरी ,'  
‘ तीर ए नीमकश सी, ’ 
ख्वाबीदा ख्वाबीदा आँखे, 

वही सिलसिला सोच का, 
रोज़ की तरह , 
पहले तुम , पहले तुम, की लिए मनुहार , 

दिल में किसी दूर वीराने से उठता हुआ , 
एक बगूला ,
चाहतों का तूफान लिए , 
आज फिर घेर लिया है मुझे काल बैसाखी की तरह , 

कितने ख़याल , कितने ज़ज्बात , 
बातें कहाँ कहाँ की , 
आ कर ज़ुबान पर ठहर गयी हैं . 

आओ अब घुसें शब्दों की भीड़ में , 
तलाश करें कुछ शब्द , कुछ भाव , 
पिरोएँ तुम्हारे लिए , 
और रच दें कुछ ऐसा कि , 
दास्ताँ तो मुख़्तसर हो , 
पर लोग सुनते रहें ,  
और भींगते रहें , 
पावस की उस फुहार में , 
जो देती है ,  
केवल आनन्द और आनन्द !! 


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