आज फिर तुम मिले ,
वही सपनों में डूबी हुई ,
'अमिय, हलाहल, मद भरी ,'
‘ तीर ए नीमकश सी, ’
ख्वाबीदा ख्वाबीदा आँखे,
वही सिलसिला सोच का,
रोज़ की तरह ,
पहले तुम , पहले तुम, की लिए मनुहार ,
दिल में किसी दूर वीराने से उठता हुआ ,
एक बगूला ,
चाहतों का तूफान लिए ,
आज फिर घेर लिया है मुझे काल बैसाखी की तरह ,
कितने ख़याल , कितने ज़ज्बात ,
बातें कहाँ कहाँ की ,
आ कर ज़ुबान पर ठहर गयी हैं .
आओ अब घुसें शब्दों की भीड़ में ,
तलाश करें कुछ शब्द , कुछ भाव ,
पिरोएँ तुम्हारे लिए ,
और रच दें कुछ ऐसा कि ,
दास्ताँ तो मुख़्तसर हो ,
पर लोग सुनते रहें ,
और भींगते रहें ,
पावस की उस फुहार में ,
जो देती है ,
केवल आनन्द और आनन्द !!
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