तेज़ चले अंधड़ ने ,
उड़ा डाले सारे पत्ते ,
जो चिपके हुए थे पेड़ों से किसी तरह ,
हो रहे थे पल्लवित ,
दे रहे थे छाया पथिक को ,
अचानक उन्हें गिरा गया ,
एक पागल चक्रवात ,
फिर पूछा ,
एक शैतानी मुस्कराहट से ,
अलग हो कर शजर से तुम ,
क्या सोचते हो .
क्या कहें , सूखे और गिरे पत्ते ,
एक मौन , जिसमें भरा है
केवल आक्रोश ....
-vss
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