Wednesday 25 May 2022

डायर्मेड मक्कलक / ईसाइयत का इतिहास - अ हिस्ट्री ऑफ़ क्रिश्चियनिटी (3)

भूमध्य सागर के पूर्वी-दक्षिणी तट के अनेक नाम रहे हैं. सबसे पुराने सन्दर्भ उसे केनन (Canaan) बताते हैं. हालिया नाम हैं इस्राएल और पैलेस्टीन. पहला नाम यहूदियों को याद दिलाता है कि इस जमीन को उनके ईश्वर ने उन्हें देने का वादा किया था, यही उनकी प्रतिश्रुत भूमि है, प्रॉमिस्ड लैंड. यहीं पर उनका पुराना राज्य जूडेआ था जिससे उनकी नस्ल का अंग्रेजी नाम ज्यू बना. यूनानी शब्द जूडेआ का हीब्रू रूप यहूदा है, जिससे उनकी नस्ल का अरबी नाम यहूदी बना. 

ईसाइयों के लिए इसका नाम 'पवित्र भूमि' (हौली लैंड) है क्योंकि यहीं ईसा मसीह का जन्म और उनकी मृत्यु हुई थी. यहीं गलीली है जिसके निकट रहते येशुआ ने बचपन में यहूदियों के इस जमीन से लगाव की तमाम कहानियाँ सुनी होंगी. और इस्राएल में ही जेरूसलम है जिसके निकट ईसा को सूली पर लटकाया गया था. जेरूसलम में ही यहूदियों का प्राचीन मंदिर ज़ायन था और यह जगह इस्लाम के भी प्राचीन, पवित्रतम स्थलों में एक रही है.

जेरूसलम पर तीनो धर्म दावा करते हैं, स्वाभाविक था कि जेरूसलम को बार बार रक्तपात देखना पड़ा. समुद्र और पहाड़ी बीहड़ के बीच यह केनन / इस्राएल / पैलेस्टीन एक उजाड़ जगह है, उपजाऊ भूमि बहुत कम, वर्षा बहुत कम होती है, पश्चिम से आती गर्म शुष्क हवा मिटटी में नमी नहीं रहने देती. फिर भी इसके आधिपत्य के लिए युद्ध होते रहे - बस धार्मिक कारणों से नहीं. मिश्र और दजला-फरात की घाटियों में उगती, गिरती और फिर उगती सभ्यताओं के बीच स्थल मार्ग केनन होकर ही सम्भव था. रक्त पात की एक वजह केनन की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थिति भी रही. 

उजाड़ होने के बाद भी केनन के कुछ क्षेत्र पुरा काल से आबाद रहे हैं. शेकम ऐसा ही एक नगर था. शेकम के शासकों के द्वारा, जो मिश्र के फ़ेरो के अधीन थे, फ़ेरो को लिखे पत्र उपलब्ध हैं और उनसे हजार वर्ष ई.पू. के केनन की कुछ जानकारियाँ मिलतीं हैं. ऐसे ही कुछ अन्य पुरातात्विक स्रोतों से मिली जानकारी और यहूदियों के इतिहास के एक मुख्य स्रोत बाइबिल से मिलती जानकारियों में भिन्नता हैं. 

बाइबिल में यहूदियों के कुछ कुलपिताओं (पूजनीय वृद्ध व्यक्तियों, पैट्रिआर्क्स) के उल्लेख आये हैं. सबसे प्राचीन अब्राम थे, जो उर (वर्तमान ईराक) से आये थे. बाइबिल के अनुसार ईश्वर ने उनका नाम  अब्राहम कर दिया और उन्हें केनन की जमीन देने का वादा किया, बार बार.

अब्राम का एक फसादी पौत्र था जेकब. किसी अजीब अजनबी ने एक रात अँधेरे में जेकब को कुश्ती में पराजित कर उसका नया नाम रखा इस्राएल, जिसका अर्थ होता है "जो ईश्वर से संघर्ष करता है". इस्राएल के लड़कों से यहूदी निकले. यहूदी विश्वास है कि जेकब को पराजित करने वाला वह अजनबी और कोई नहीं, ईश्वर ही थे. अपने ईश्वर के साथ यहूदियों के संबंध आंतरिक, सघन, और कुछ द्वंद्वात्मक भी रहे हैं. और कौन लोग अपने आप को उस व्यक्ति की संतान बताएंगे जो उससे लड़ा था जिसकी वे पूजा करते हों?

इसके आगे लेखक ने अपने संदेह व्यक्त किये हैं, यह स्वीकार करते हुए कि ये विवादास्पद हो सकते हैं. 

कुलपिताओं के विस्तृत उल्लेख बाइबिल के जेनेसिस में मिलते हैं. बाइबिल में दिए सन्दर्भों के अनुसार अब्राहम का काल ईसा से 1800 वर्ष पहले का होना चाहिए. उसके बाद यहूदियों के पैगम्बरों की चर्चा अन्यत्र आई है: इसाएया, जेरेमिया आदि. पैगम्बरों का कालखंड आठवीं और सातवीं सदी ई.पू. का है लेकिन उन्होंने कुलपिताओं की बात नहीं की, जो उनसे हजार वर्ष पहले हो गए थे. कुलपिताओं की बात फिर मिलती है, पूरे विस्तार में, छठी सदी ई. पू. में. लेखक विचार से  ये कुलपिता उसी काल के होंगे  न कि अठारहवीं सदी ई.पू. के.          

इसके समर्थन में वे फिलिस्तीनों की बात भी करते हैं. ये फिलिस्तीनी केनन के सागर तट पर बसे थे. यहूदियों ने इन्हे हटाने के बहुत प्रयास किये थे पर पूरी तरह नहीं हटा पाए थे. बाइबिल में कुलपिताओं के काल में फिलिस्तीनियों की बात आती है. लेकिन फिलिस्तीनी अठारहवीं सदी ई.पू. में वहां नहीं थे. फिलिस्तीनियों पर मिश्र में पर्याप्त अभिलेख हैं जो बताते हैं कि वे समुद्र से बारहवीं सदी ई.पू. के आस-पास केनन आये थे. यदि कुलपिताओं को केनन में फिलिस्तीनी मिले थे तो निश्चित ही वे वहाँ बारहवीं सदी ई.पू. के बाद ही आए होंगे, अठारहवीं सदी ई.पू. में नहीं.
    
मूसा (मोज़ेस) पर लेखक का कहना है कि मूसा कोई यहूदी नाम नहीं है, यह मिश्र का नाम है.  इस आधार पर वे कहते हैं कि मूसा के नेतृत्व में जो लोग केनन आए थे वे किसी एक नस्ली समूह के नहीं थे. आगे वे कहते हैं,  बाइबिल की जजेज़ में आये वृतांतों के पुरातात्विक समर्थन मिलते हैं. इसमें जिस समय के वर्णन हैं उस कालखंड में यहूदियों का कोई राजा नहीं होता था. बस मुंसिफ (जज) होते थे जो शान्ति या युद्ध, दोनों समय क्या करना है इस पर अपने निर्णय देते थे. उनके पद वंशानुगत नहीं थे. इस किताब में बार बार ईश्वर के निर्देशों की बात आयी है - कभी यहूदी उन्हें मानते थे कभी नहीं भी मानते थे. लेकिन ईश्वर बस एक था. 

ऐसा नहीं है कि ओल्ड टेस्टामेंट में एक ही ईश्वर का उल्लेख है. एक जगह विभिन्न कुलपिताओं के अलग अलग ईश्वरों के भी उल्लेख हैं, जेनेसिस (31.53) में अब्राहम के पुत्र ईसाक के ईश्वर 'भय' की चर्चा है, जेनेसिस (49.24) में ही जेकब के ईश्वर 'महाबली' का उल्लेख है और 15.1 में अब्राहम के ईश्वर 'रक्षक' का. जेनेसिस (31.53) में जेकब के एक तकरार को सुलझाने के लिए दोनों दलों के व्यक्तिगत ईश्वरों से निर्णय की अभ्यर्थना की गयी है - अब्राहम के ईश्वर  से और नाहोर के ईश्वर से! 

जेनेसिस में अनेक ईश्वरों के उल्लेख के बाद जजेज़ में इस्राएल के बस एक ईश्वर को देख लेखक के विचार हैं कि यहूदी एक धार्मिक समुदाय था - उनकी एक नस्ल नहीं थी. जिन लोगों का उस  ईश्वर में विश्वास था वे सब एक साथ मिल गए थे.

'जजेज़' में वर्णित समय की समाप्ति तक यहूदी इतने समृद्ध हो गए थे कि एक जज सॉल ने अपने आप को यहूदियों का राजा घोषित कर दिया. अनेक यहूदी सॉल का राजा बनना अनुचित मानते थे. सॉल का एक युवा दरबारी डेविड उसे विस्थापित कर यहूदियों का राजा बना. डेविड के और उसके बाद उसके पुत्र सोलोमन के शासन काल निस्संदेह यहूदियों के सबसे गरिमामय दिन थे.
(क्रमशः) 

ईसाइयत का इतिहास (2) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/2_25.html

चित्र - किंग सोलोमन

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