Saturday 31 October 2020

फ्रांस की घटना पर मुनव्वर राना का बयान निंदनीय है / विजय शंकर सिंह

फ्रांस में अध्यापक की उनके मुस्लिम छात्र द्वारा की गयी हत्या पर शायर मुनव्वर राना की इस हत्या को औचित्यपूर्ण ठहराने के संबंध में दिया गया उनका बयान, निंदनीय और शर्मनाक है। किसी भी प्रकार से मानव हत्या के अपराध को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता है। 

फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून के बाद से एक-एक कर कई हत्याएं की गईं। टीचर की हत्या के बाद फ्रांस के एक चर्च में हमलावर ने एक महिला का गला काट दिया और दो अन्य लोगों की भी चाकू मारकर हत्या कर दी। इसे लेकर फ्रांस और मुस्लिम देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। 

इन हत्याओं को मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने जायज ठहराया है। मुनव्वर राणा का कहना है कि अगर कोई हमारी मां का या हमारे बाप का ऐसा कार्टून बना दे तो हम तो उसे मार देंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे देवी देवताओं मा सीता और राम पर ऐसा कार्टून बनाये तो हम मार देंगे। मुनव्वर राणा इन दिनों अपनी शायरी से ज्यादा अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं।

उनके बयान में भी वही चीज पोशीदा है, यानी, आस्था पर चोट अगर पहुंचायी जाएगी तो उसकी प्रतिक्रिया हिंसक या हत्या में होगी। अगर फ्रांस के उस टीचर की हत्या का समर्थन किया जा रहा है, तो फिर पिछले कुछ सालों से आस्था के आहतवाद के अनुसार, होने वाली मॉब लिंचिंग का विरोध किस आधार पर किया जा सकता है ? फिर यही मान लीजिए कि जिसकी आस्था आहत हो वह फिर, आहत करने वालों की हत्या ही कर दे। फिर एक बर्बर और प्रतिगामी समाज की ओर ही तो लौटना हुआ ? 

आस्था से हुआ आहत भाव कितना भी गंभीर हो, पर उसकी प्रतिक्रिया में की गयी किसी मनुष्य की हत्या एक हिंसक और बर्बर आपराधिक कृत्य है। जो कुछ भी उस किशोर द्वारा अपने अध्यापक के प्रति फ्रांस में किया गया है, वह अक्षम्य है, और उसका बचाव बिल्कुल भी नहीं किया जाना चाहिए। 

एक मित्र ने यह तर्क दिया है कि शार्ली हेब्दो के कार्टून पर क्या प्रतिक्रिया है। इसका उत्तर है कि वह कार्टुन आपत्तिजनक और निंदनीय है। इस कार्टुन के खिलाफ फ्रेंच कानून के अंतर्गत अदालत का रास्ता अपनाया जाना चाहिए था, न कि हत्या कर देना। 

अगर आहत भाव पर ऐसी हत्याओं का बचाव किया जाएगा और उनको औचित्यपूर्ण ठहराया जाएगा तो आहत होने पर हत्या या हिंसा की हर घटना औचित्यपूर्ण ठहराई जाने लगेगी। फिर कानून के शासन का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। 

शार्ली हेब्दो पहले भी पैगम्बर के आपत्तिजनक कार्टून छाप चुका है। उसने न केवल इस्लाम के ही बारे में आपत्तिजनक कार्टून छापे है, बल्कि उस अखबार में, कैथोलिक धर्म और चर्च के खिलाफ भी कार्टून छापे गए हैं। पहले भी 2012 में, पैगम्बर के आपत्तिजनक कार्टून छापने के बाद शार्ली हेब्दो के कार्यालय पर आतंकी हमला हुआ था और उसके 12 कर्मचारी मारे गए थे। 

लेकिन उस जघन्य आतंकी घटना के बाद भी उक्त अखबार की न तो नीयत बदली और न नीति। शार्ली हेब्दो ने अस्थायी कार्यालय से अपना अखबार निकालना जारी रखा और ऐसे ही कटाक्ष भरे, आपत्तिजनक कार्टून फिर छापे गए। पूरे फ्रांस या यूरोप में मैं हूँ शार्ली का एक अभियान चलाया गया। 

किसी की धर्म मे आस्था है तो किसी की संविधान में और किसी की दोनो में। आस्था नितांत निजी भाव है। लेकिन, देश धर्म की आस्था से नहीं चलता है बल्कि संविधान से कायदे कानून से चलता है। फ्रेंच कानूनो के अंतर्गत वहां के आस्थावान लोगों को शार्ली हेब्दो के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए थी, न कि आतंकी हमला और अध्यापक की हत्या। 

धर्म के उन्माद और धर्म के प्रति आस्था के आहत होने की ऐसी सभी हिंसक और बर्बर प्रतिक्रियायें, चाहे वह गला रेत कर की जाने वाली हत्या हो, या मॉब लिंचिंग या भीड़ हिंसा, यह सब आधुनिक और सभ्य समाज पर एक कलंक है। इसमे कोई दो राय नही है कि ऐसा कार्टून बनाना निंदनीय है और ईश्वर धर्म और पैगम्बर से जिनकी भी आस्था जुड़ी हो, उसे, आहत नही किया जाना चाहिए। 

पर इसका यह बिल्कुल भी अर्थ नही है कि, ऐसा कुकृत्य करने वालो की हत्या कर दी जाय और फिर उस हत्या के पक्ष में खड़ा हो जाया जाय। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में यह सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए कि, आप को सड़क पर खड़े होकर छड़ी घुमाने का अधिकार है, पर वहीं तक जब तक कि वह किसी की नाक पर न लग जाय। 

( विजय शंकर सिंह )

No comments:

Post a Comment