Friday 29 September 2017

प्रभु चले गये, पीयूष दे गये, पर यम न रुके तो न रुके - एलफिंस्टन रेलवे पुल हादसा - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

मुम्बई के एलफिंस्टन स्टेशन पुल भगदड़ की दुर्घटना में मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि । यह एक दुःखद खबर है ।

इस पुल के लिये दो सांसदों ने एक और समानांतर पुल बनाने के लिये पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु को पत्र लिखा था, पर उन्होंने धनाभाव का रोना रोया था । अब धन का भी जुगाड़ हो जाएगा और पुल भी बन जायेगा । बिना मरे, बिना तड़पे, सरकार सुनती कहाँ है भला । इसी लिये कहता हूं, सरकार को कोंचते रहिये, पूंछ उमेठते रहिये, पैना लहराते रहिये, एड से दबाते रहिये , और कभी कभी थपथपा भी दीजिये । पर सरकार को यह आभास न होने दीजिये कि वह अजेय और विकल्पहीन है और वह हम पर एक ईश्वरीय कृपा है । सरकारें काम करने और जनता के हित के लिये चुनी जाती हैं न कि उनको विरुदावली सुनाने और उन्हें येन केन प्रकारेण न भूतो न भविष्यति साबित करने के लिये ।

अब पुल बनेगा । नया और समानांतर पुल । पुराने से बेहतर, आधुनिक तकनीक से युक्त, और आरामदेह भी होगा । पर जो लोग मर गये हैं, वे तो नहीं लौटेंगे न । उनका तो हिसाब किताब चित्रगुप्त रख रहे होंगे । नए रेल मंत्री जी ने कहा है।   इसकी बड़ी वाली जांच होगी । मुम्बइया हिंदी में कहूँ तो, बोले तो हाई लेवल । मुख्य संरक्षा आयुक्त जांच करेंगे । भगदड़ का कारण अफवाह बतलाया जा रहा है । अफवाह किसी भी भगदड़ का एक कारण होता है । चाहे वह रेलवे स्टेशन पर हो या तीर्थस्थलों पर । 1954 के प्रयाग कुम्भ में मची भगदड़ से हज़ार लोग मारे गए थे । भिड़े नागाओं के हांथी थे पर अफवाहों ने बवंडर फैला दिया । और भी घटनाएं हुई हैं पर यह भद्दड़ के इतिहास की सबसे दुःखद घटना है इसलिये इसका उल्लेख कर रहा हूँ । उसके बाद भी हिमाचल से केरल तक भगदड़ की घटनाएं हो चुकी है ।

रेलों में इधर दुर्घटनाओं की वृद्धि हुयी है । हर दुर्घटनाओं की जांच होती है । पर उन दुर्घटनाओं का दायित्व किस पर आयद होता है यह हम कभी जान भी नहीं पाते हैं और सरकार तो ऐसे मामलों में महठिया भी जाती है । या कहें कोई नयी दुर्घटना आ कर उसे नेपथ्य में डाल जाती है । इस मामले में क्या होता है यह भी देखना है । यह दुर्घटना रेलवे की बदइंतज़ामी से अधिक अफवाहों पर यकीन करने की संस्कृति है । इस घटना पर भी आईपीसी की धारा 304 A के अंतर्गत अभियोग पंजीकृत कर के कार्यवाही की जानी चाहिये ।

© विजय शंकर सिंह

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