Monday 25 September 2017

बीएचयू छात्र आंदोलन और कुल प्रशासन - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

वीसी की प्रशासनिक अक्षमता का खामियाजा भुगता है वहां के एसीएम और सीओ ने । दोनों को हटा दिया गया । अब वीसी कह रहे हैं कि उपद्रवी बाहरी लोग थे । अगर वे बाहरी लोग थे तो 1200 छात्रों के खिलाफ मुकदमा किस बात का कायम हुआ है ?
प्रशासनिक अक्षमता का यह एक क्लासिक मामला है । लड़कियों की मांगों में कुल तीन मांगे थीं ,
1. अश्लील हरकतों को रोकना,
2. सीसीटीवी कैमरा लगाना ,
3. लफंगों के अबाध आवाजाही पर रोक लगाना ।
यह मांगे पहले ही दिन जब यह बात वार्डेन के संज्ञान में आयी तो मानी जा सकती थीं। एक जांच कमेटी बन जाती और और उस लफंगे के खिलाफ कार्यवाही हो जाती । अगर वह सुरक्षा गार्ड था तो उसे हटा दिया जाता, अगर बाहरी था तो उसके खिलाफ लंका थाने में मुकदमा कायम हो जाता । अगर वह छात्र था तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही हो जाती । लड़की झूठ बोल रही है या सच यह भी पता कर लिया जाता । लेकिन इसके लिये जिस प्रशासनिक सूझबूझ की ज़रूरत थी वह वीसी ने नहीं दिखायी । सीसीटीवी कैमरे लगते रहते ।

अमूमन होता यह है कि जब पीएम का दौरा होने वाला होता है तो प्रशासन औऱ पुलिस हर उस संभावित घटना पर विचार विमर्श करते हैं जिससे पीएम के दौरे के दौरान कोई बड़ी शांति व्यवस्था की घटना न हो । आंदोलनकारी भी यही समय तजबीज करते है ताकि प्रशासन उनकी बात मान ले या ठोस आश्वासन दे दे । राजनीति भी जम कर होती है। विरोधी दलों को इस से बेहतर अवसर मिलता भी नहीं है कि वे पीएम के दौरे को विवादित कर दें। यह प्रशासन पर दबाव की नीति होतो है। क्यों कि उन्हें पता रहता है कि पीएम के रहने तक बल प्रयोग नहीं होगा । प्रशासन की उस समय यही प्राथमिकता होती है कि सबसे पहले पीएम की यात्रा सकुशल गुज़र जाय । कुलपति को भी यही बात सोचनी चाहिये थी कि पीएम की यात्रा के दौरान इस प्रकार का आंदोलन उस यात्रा को बाधित कर सकता है और यात्रा बाधित हुयी भी । पीएम को अपना मार्ग बदलना पड़ा । जो लोग पीएम की यात्राओं , नियम कायदों से वाकिफ है वे इस बात की गम्भीरता को समझ सकते हैं कि पीएम के मार्ग बदलने से क्या दिक्कतें होती हैं ।

इस प्रकार एक सही शिकायत कुलपति की नासमझी के कारण कानून व्यवस्था की बड़ी समस्या बन गयी । अब कहा जा रहा है कि यह सारा मामला प्रायोजित था । इसमें समाजवादियों, वामपंथी और कांग्रेस का हाँथ है । जब यह सूचना पहले से ही कुलपति को मिल गयी थी कि विरोधी छात्र संगठन पीएम की यात्रा के समय ऐसी समस्या उतपन्न कर सकते है तो उन्होंने इस सूचना को प्रशासन के साथ साझा कर के क्यों नही एहतियातन कोई इंतज़ाम किया ? कुलपति की सबसे बड़ी गलती यह है कि उन्होंने इस आक्रोश को रोकने का कोई भी उपाय नहीं किया । वे अहंकार में डूब कर राष्ट्र निर्माण करते रहे । लड़कियाँ गेट पर आयीं। भीड़ बढ़ी तो विरोधी छात्र संगठन के लड़के भी आ गए । फिर पीएम को मार्ग बदलना पड़ा । पीएम के जाने के बाद जो हुआ वह सबके सामने है ।

इस घटना की जांच आयुक्त वाराणसी को दी गयी है । जांच के विंदु क्या है मुझे नहीं मालूम । लेकिन जांच पुलिस की ज्यादती पर तो निश्चय ही होगी । क्यों कि अंत मे सब तो बच जाते हैं पुलिस ही फंसती है । लेकिन इस घटना की जांच उच्च न्यायालय के किसी जज से चाहे वह अवकाशप्राप्त ही क्यों न हो करायी जानी चाहिये । जांच का यह विंदु सबसे महत्वपूर्ण है कि कुल - प्रशासन ने छात्राओं की शिकायत पर क्या कार्यवाही की । जिसने कार्यवाही नहीं की उसके खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिये चाहे वह चीफ प्रॉक्टर या कुलपति ही क्यों न हो ।

संक्षेप में इसे इस प्रकार देख सकते हैं ।
बीएचयू में आन्दोलन करने वाले छात्रों के खिलाफ मुक़दमा कायम हो गया ।
BHU 2 अक्टूबर तक के लिये बंद कर दिया गया ।
हॉस्टल खाली करा दिये गये ।
सीओ और एसीएम हटा दिए गए ।
जांच मंडलायुक्त को दे दी गयी।
कुलपति राष्ट्रनिर्माण में लग गए ।
लेकिन,
उस लफंगे का क्या हुआ जिसने अश्लील हरकतें की थी ।
उन सुरक्षा गार्डों का क्या हुआ जिन्होंने इसको अनदेखा किया ।
उस वार्डेन का क्या हुआ जिसने चुप रहने का परम ज्ञान दिया था ।
हो सकता है या तो कार्यवाही हुयी हो या हो रही हो। जो भी हो उसे परम्परागत मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी प्रचारित करना चाहिये जिससे कुलपति की साख पर थोड़ा भरोसा बना रहे ।
और अगर यह लगता है कि ऐसी घटना हुयी ही नहीं तो जिस लड़की ने शिकायत की है उसके खिलाफ कार्यवाही हो।

© विजय शंकर सिंह

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