Friday 22 September 2017

एक कविता - एक अदद चैनल / विजय शंकर सिंह

एक अदद चैनल और
एक पत्रकार ।
यह भी नहीं झेला जा रहा है न !
लोकतंत्र जब उफनेगा
उसका ज्वार तब कैसे झेलोगे मित्र ?

यह तुम्हारे अंदर का भय है,
जो अक्सर शोर से,
प्रतिध्वनित होता रहता हैं ।

बदलाव तब भी हुये हैं
जब न कलम थी न कागज़,
जब न रेल थी और न थे बुद्धू बक्से,
न नेट था औऱ न यह स्क्रीन
जिस पर आप यह पढ़ रहे हैं ।

था तो अन्याय और अहंकार के विरुद्ध
खड़े होने का हौसला,
हुंकारती हुयी काल बैसाखी
में भी डटे रहने का हुनर,
जब तक परिवर्तन की चाह शेष रहेगी,
लोग उफनते रहेंगे
और बदलाव होते रहेंगे ।

बड़ी से बड़ी खुदगर्ज़ तानाशाहियाँ
बच नहीं पायी हैं
लोग जब उठ खड़े हुये हैं ,
सचेत और एकजुट हो कर !!

© विजय शंकर सिंह

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