Wednesday, 12 May 2021

सिस्टम तोड़ कर सिस्टम बिगड़ने की बात की जा रही है / विजय शंकर सिंह

जवाहर सरकार प्रसार भारती के सीईओ CEO और संस्कृति मंत्रालय के सचिव रहे हैं. वो एक सीनियर आईएएस IAS हैं और अपने एक हालिया लेख में बहुत महत्वपूर्ण बातें कह रहे हैं. आज भी इस देश की नौकरशाही बहुत उच्च कोटि की है. परन्तु मोदीजी ने दरअसल देश का संघीय और लोकतांत्रिक ढ़ांचा ही तोड़ डाला है. 

जवाहर सरकार कहते हैं कि 
(1) मोदीजी ने ब्रिटिश मॉडल डेमोक्रेसी, जिसमें प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट की मदद से शासन चलाता है, बदल डाला है.
(2) उन्होंने अमेरिकन प्रेसिडेंशियल मॉडल पर सत्ता का केन्द्रीकरण कर डाला है और कैबिनेट एकदम अप्रासंगिक हो चुकी है. 
(3) वो हर काम अपने हाथ में रखते हैं और ज्यादा से ज्यादा गृह मंत्रालय पर यकीन करते हैं. यहाँ तक कि (4) मंत्रालयों के सचिव को भी सीधे PMO को रिपोर्ट करने को कहा जाता है. 

उनका कहना है कि इस वजह से नौकरशाही के अनुभवी लोगों की सलाह का अब कोई महत्त्व नहीं है और प्रधानमंत्री सिर्फ़ यह सुनना चाहते हैं: 
“जी सर! यू आर ग्रेट”. 

कुछ चुनिन्दा चीयरलीडर्स के सहारे सरकार नहीं चलती और मोदीजी की यसमैनशिप की वजह से कोई भी खुलकर अपनी सलाह देने से कतराता है.  सरकार कहते हैं कि बुरी तरह “कण्ट्रोल फ्रीक” या हर चीज पर नियंत्रण की सनकी शैली में काम करने की वजह से कोरोना के आपदा प्रबंधन में बड़े ब्लंडर हुए हैं. 

उनका कहना है कि जब कोरोना शुरू हुआ तो भी शोमैनशिप और इवेंट मैनेजमेंट उनकी पहली प्राथमिकता बने रहे. मास्क और पीपीई PPE किट जैसे मामूली चीजों के वितरण पर भी पीएमओ अपना नियंत्रण चाहता था. नाटकीय ढ़ंग से रात 8 बजे आकर देशव्यापी लॉकडाउन का अतार्किक फैसला भी इसी इवेंट मैनेजमेंट के तहत किया. 

जवाहर सरकार की बात में यह जोड़ा जा सकता है कि घंटा-थाली बजवाना और कोरोना वारियर्स पर हवाई जहाज़ से पुष्पवर्षा भी इसी तरह के इवेंट्स थे. सरकार कहते हैं कि राहत का कार्य हमेशा से भारतीय प्रशासन का अभिन्न हिस्सा रहा है लेकिन जब दोनों नेताओं (प्रधानमंत्री और गृहमंत्री) ने मजदूरों के पलायन पर चुप्पी साध ली तो प्रशासन कैसे आगे बढ़कर मदद कर सकता था? यही हाल ऑक्सीजन और वैक्सीन के निर्यात में रहा जब प्रधानमंत्री इसे अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी का हिस्सा बनाकर भारत को दुनिया का दवाखाना (वर्ल्ड फ़ार्मेसी) बनाने का दावा कर डाला. 

जवाहर सरकार द्वारा कही गयी बातों पर बेहद गंभीरता से सोचने की जरूरत है. मोदीजी ने विशाल भारतीय राष्ट्र के बुनियादी ढ़ांचे पर दो आघात किये हैं: 
(1) उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में कामकाज के बंटवारे की कैबिनेट परंपरा को ध्वस्त कर दिया है. 
(2) दूसरा, उन्होंने भारतीय राष्ट्र को एक सूत्र में गूंथने और उस पर प्रभावी प्रशासन की व्यवस्था को भी पंगु बना डाला है. 
(3) उनके भीतर अमेरिकन प्रेसिडेंट की तरह सत्ता का केंद्र बनकर चमकने की ललक है और साथ ही कल्ट बनाने की स्टॅलिन जैसी सनक भी उनमें साफ़ दिखाई देती है. 

भारत जैसे विशाल और विविध राष्ट्र को चलाने के लिए बेहद परिश्रम और विचार-विमर्श से जिस संरचना का निर्माण किया गया था, मोदीजी ने अपनी आत्ममुग्धता में उसे तार-तार कर दिया है. अगर अब भी कुछ लोग मोदीजी के नुकसान के प्रति सजग नहीं हुए तो वो एक दिन इस समूचे देश को भी शमसान पहुंचाकर पछतायेंगे बशर्ते वो तब तक बच गए तो।

( विजय शंकर सिंह )

1 comment:

  1. Kash hamare mahan andhbhakto ko samjaya ja sake, is aapda ke liye modi ji ke saath saath har wo banda jimmedar hai, jisne unki han me han milayi

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