Monday, 3 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 18.

क्यूबा की मिसाइल क्राइसिस तो सभी जानते हैं। मैंने भी पहले विस्तार से जिक्र किया है (देखें केनेडी: बदलती दुनिया का चश्मदीद)। किंतु एक परमाणु मिसाइल क्राइसिस हमारे अपने अहाते में भी हुई थी। यह कितने लोग जानते हैं कि सोवियत और अमरीका के मिसाइलों के मध्य भारत-पाकिस्तान भी कभी घिरे हुए थे? असला तैयार था। एक ग़लती होती, और सब तबाह हो जाता। खैर, इसकी चर्चा आगे करूँगा।

फ़िलहाल इस इतिहास पर एक ‘बर्ड्स-आइ व्यू’ डाला जाए। भारत, पाकिस्तान, चीन, अमरीका, सोवियत, इंग्लैंड। इन सब पर एक साथ नज़र रख कर युद्ध को देखा जाए। बात धीरे-धीरे बढ़ाने से पहले एक बार तेज़ी से फौरी तौर पर कहता हूँ।

पाकिस्तान और भारत आज़ाद होते हैं। अगले दशक में पाकिस्तान अमरीका खेमा चुन लेता है। भारत सोवियत के करीब होकर भी कोई खेमा नहीं चुनता। 1961 में अचानक गुटनिरपेक्ष होने का कंसेप्ट लाता है, कि एक रास्ता यह भी है। अगले ही वर्ष चीन-भारत युद्ध छिड़ जाता है, और यह गुटनिरपेक्षता धरी की धरी रह जाती है। भारत अमरीका के करीब जाने लगता है, पाकिस्तान चीन-सोवियत की ओर। केनेडी की हत्या हो जाती है, नेहरू की मृत्यु हो जाती है, भारत फिर से ग्राउंड ज़ीरो पर। अब अगला प्रधानमंत्री किस खेमे का हो? 

लाल बहादुर शास्त्री के रूप में नए प्रधानमंत्री किसी खेमे के लिए उपयुक्त नहीं लगते। 1965 में एक और युद्ध होता है। इस बार चहुदिशा से दबाव होता है, जिसमें सोवियत बाज़ी मारता नज़र आता है। ताशकंद में लगभग धमका कर दोनों राष्ट्राध्यक्षों से हस्ताक्षर कराए जाते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री की वहीं प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है! 

अब नयी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सोवियत के लिए अधिक उपयुक्त होती है। मित्रोखिन आर्काइव ने तो खैर उन्हें ‘वानो’ नाम देकर, बैग में धन लेकर काम करने वाली एजेंट ही बना दिया है, किंतु उस फ़ाइल की कोई प्रामाणिकता नहीं।  बहरहाल इंदिरा गांधी भी कोई खेमा लिखित में नहीं चुनती। उन पर कई बूढ़ी खेली-खिलाया गिद्ध-दृष्टियाँ होती हैं। संसद में ‘गूँगी गुड़िया’ वाली छवि बदलने में कुछ समय लगता है। तभी, 1969 में चीन और सोवियत में युद्ध छिड़ जाता है।

अब चीन का दुश्मन सोवियत। सोवियत का दुश्मन अमरीका। तो अमरीका का दोस्त चीन। और यह दोस्ती कराने वाला पाकिस्तान। 

बच गए भारत और सोवियत, जिनके दुश्मन पाकिस्तान और चीन। 

अगले वर्ष पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवाद चरम पर होता है, जिसके पीछे सोवियत-समर्थित कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों का दिमाग कहा जाता है। भारत भी इस योजना में शामिल हो जाता है।

मार्च 1971 से बांग्लादेशी क्रांति तेज होती है, और अगस्त में भारत और सोवियत आखिर एक ऐसा समझौता कर ही लेते हैं, जिसका सोवियत ने दशकों से इंतज़ार किया था। और कोई विकल्प भी नहीं था। अमरीका, चीन और पाकिस्तान के मिलने और बांग्लादेशी संकट के बाद भारत बुरी तरह घिर गया था।

अगस्त 1971 में वह कालजयी समझौता होता है, जब सोवियत भारत को यह लिखित गारंटी देता है कि अगर उस पर हमला हुआ तो वह बचाने ज़रूर आएगा। तीन महीने बाद ही इसके पालन का वक्त आ जाता है, जब एक तरफ़ पाकिस्तान की सेना, दूसरी तरफ़ अमरीका और इंग्लैंड के जहाज आकर भारत को घेरने वाले होते हैं। तभी भारत के विक्रांत के साथ सोवियत अपनी परमाणु मिसाइलों से लदा जहाज़ आकर बीच में लगा देता है। चेक-मेट! 

इस दशकों के वैश्विक देवासुर संग्राम और समुद्र-मंथन से ही जन्मता है एक देश- बांग्लादेश। 

अब आगे कहानी धीरे-धीरे। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
(Praveen Jha)

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 17.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/17.html
#vss

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