Friday, 28 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 43.


        ( दर्रा आदम खेल के बंदूक विक्रेता)

हर दिन पाकिस्तान में सात सौ लोग नशाखोरी जनित बीमारी से मर जाते हैं। हीरोइन नशे के व्यापार का केंद्र पाकिस्तान ही है, जहाँ से पूरी दुनिया में नशा पहुँचता है। पाकिस्तान में यह नशा अफ़ग़ानिस्तान से आता है, जहाँ दुनिया के पचहत्तर प्रतिशत अफ़ीम और हीरोइन का उत्पादन होता है। भारत में भी इसी रूट से अधिकांश नशा आता रहा है, जिसमें कृत्रिम रासायनिक नशा भी शामिल है। 

दर्रा आदम खेल और साखाकोट जैसी जगहों पर दुनिया के सबसे बड़े खुले हथियार बाज़ार हैं, जहाँ सड़क किनारे ए के 47 और कलास्निकोव राइफ़ल से लेकर एंटी-एयरक्राफ़्ट गन तक मिलते हैं। किसी लाइसेंस की ज़रूरत नहीं। बंदूक कंधे पर लीजिए और घर लाइए। पंजाब और सिंध में शादियों में उसी तरह फ़ायरिंग होती है, जैसे भारत के कुछ ख़ानदानी सामंत परिवारों में। खैबर-पख़्तूनवा और बलूच में तो यह संस्कृति का हिस्सा रहा है, और बच्चा-बच्चा बंदूक-गोलियों की समझ रखता है। मेरी मुलाक़ात ऐसे पाकिस्तानी व्यक्ति से हुई, जो नियमित हथियारों पर एक अंग्रेज़ी पत्रिका मंगाते हैं। हालांकि यह प्रवृत्ति स्कैंडिनैविया में भी कई घरों में है, कि हथियारों और शराब पर पत्रिकाएँ मंगायी जाती है।

विभाजन के वक्त ऐसा नहीं था। अफ़गानी इलाकों में हथियारबाजी थी, लेकिन नशाखोरी पाकिस्तान में देर से शुरू हुई। सोवियत के अफ़ग़ानिस्तान में आने के बाद ही यह सब सुलभ हुआ। एक बार जनरल जिया-उल-हक़ ने सोवियत राजदूत को बुला कर तलब भी की और कहा कि यह आपूर्ति बंद करायी जाए। 

उन्होंने टका सा जवाब दिया, “जनरल! आधी दुनिया सोवियत के राइफ़ल चलाती है। हम किसी को मुफ़्त में नहीं भेजते। आपके लोगों ने खरीदी होगी या चुराई होगी।”

अमरीका की मदद से आइएसआइ ने भी मनमर्ज़ी हथियारों का ज़ख़ीरा खड़ा किया। ऊपर से सोवियत के हथियार तो थे ही। लोगों के पास दो वक्त की रोटी हो न हो, लाखों रुपए के हथियार घर में ज़रूर आ गए। वे बिकते भी मामूली दाम पर हैं। एक खिताब गुल नामक बंदूक-निर्माता हैं जो महज सात हज़ार रुपए में MP5 राइफ़ल की नकल बेचते हैं। वही अगर किसी अन्य बाज़ार में खरीदें तो चार-पाँच लाख़ तक आएगी, टैक्स अलग। मोबाइल फ़ोन से सस्ती तो बंदूक हैं, और वह भी टॉप क्लास।

इस कारण हत्यायें और अपराध पाकिस्तान में बढ़ते ही गए। इसका मुक़ाबला करने के लिए पाकिस्तान पुलिस कांस्टेबल के पास होता बस एक डंडा। वह मामूली रिश्वत लेकर अनदेखा करते या मारे जाते। पाकिस्तानी सेना ज़रूर आधुनिक हथियारों से लैस होती, लेकिन अमरीका ने जब से हाथ खींचे, वहाँ भी हालत बुरी हो गयी। अस्सी के दशक से ही पाकिस्तान परमाणु बम की धौंस दे रहा था, मगर वह बम न किसी ने देखा था, न ही उसका परीक्षण हुआ था। फ़ायदा तो कुछ हुआ नहीं, उसके उलट अमरीका ने नकेल कस दी। 

1991 में जब इराक़ द्वारा कुवैत अतिक्रमण पर खाड़ी युद्ध हुआ, तो एक बार फिर से अमरीका ने पाकिस्तान को अपना छोटा बेस बनाया। लेकिन, वहाँ पाकिस्तान का मामूली रोल था। नवाज़ शरीफ़ अमरीका के प्रिय कभी रहे नहीं, और उनकी सरकार भी भ्रष्ट ही थी। दूसरी बात यह भी थी कि नवाज़ शरीफ़ की सहयोगी जमात-ए-इस्लामी सद्दाम हुसैन के साथ थी। 

इसी बीच आइएसआइ के एक निदेशक हुए, जिन्हें आतंकवाद का ‘गॉडफ़ादर’ कहा जाता है। हाफ़िज़ सईद के साथ उग्रवादी संगठन लश्कर-ए-ताएबा बनाने में उन्हीं का दिमाग था। उनका नाम था हामिद गुल, जिन्हें बेनज़ीर ने ही बर्खास्त कर दिया था। वह सेना से निकल कर अब कुछ और खिचड़ी पका रहे थे।

वह कुछ ख़ास लोगों से मिल रहे थे, जैसे एक मिस्र के चिकित्सक थे- अल जवाहिरी। एक अफ़ग़ानिस्तान के नए प्रधानमंत्री थे गुलबुद्दीन हिकमतयार। कराची के एक मस्जिद में हामिद गुल की मुलाक़ात मुल्ला उमर नामक एक मुजाहिद्दीन से हुई। उन्होंने कहा कि सूडान में रह रहे एक अमीर आप से मिलना चाहते हैं, जो अल क़ायदा नामक एक संगठन चलाते हैं।

26 फरवरी 1993 को न्यूयॉर्क के WTC नॉर्थ टावर के नीचे पार्किंग में एक भयानक विस्फोट हुआ। इसे अंजाम देने वाले पाकिस्तानी युवक रमज़ी युसुफ़ की योजना थी कि यह टावर गिर कर साउथ टावर को भी गिरा देगा। लेकिन, उस टावर की नींव मज़बूत थी। दूर बैठे उसके आकाओं को उस वक्त लगा कि ये टावर नीचे से गिराना कठिन है, शायद ऊपर से ही किसी माध्यम से दोनों टावरों को अलग-अलग गिराना होगा। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 42.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/42.html
#vss 

No comments:

Post a Comment