Saturday, 22 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 37.

“राजीव जी! आप पाकिस्तान पर हमला करना चाहते हैं? शौक से करिए। लेकिन, याद रखिए कि यह दुनिया चंगेज़ ख़ान और हलाकू ख़ान को भूल जाएगी, मगर राजीव गांधी और जिया-उल-हक़ को नहीं भूलेगी। अब जो लड़ाई होगी, वह तो न्यूक्लियर बम की लड़ाई होगी। पाकिस्तान के सभी मुसलमान अगर एक धमाके में खत्म हुए तो हिंदुस्तान के हिंदू भी खत्म होंगे। मुसलमान दुनिया के दूसरे मुल्कों में फिर भी होंगे, मगर हिंदुओं का मुल्क तो हिंदुस्तान ही है। आप यह ज़ंग न होने दें।”
- जनरल जिया-उल-हक़

1987 की फ़रवरी का महीना था। भारत की सेना ने एक ऑपरेशन ब्रासस्टैक नामक शक्ति-प्रदर्शन किया, जो द्वितीय विश्व-युद्ध से भी बड़ी सैन्य क़िलाबंदी कही गयी। बिना किसी युद्ध घोषणा के लगभग सात लाख सैनिक सीमा पर जमा थे। पाकिस्तान यह गतिविधि देख कर घबरा गया। वहाँ भी क़िलाबंदी शुरू हो गयी। अब्दुल क़ादिर ख़ान ने प्रेस में कह दिया कि अगर हमारे वजूद पर गाज गिरेगी, तो हमें परमाणु बम इस्तेमाल करना ही होगा।

उस समय अचानक राजीव गांधी को खबर मिली कि जनरल जिया-उल-हक़ भारत-पाक क्रिकेट मैच देखने दिल्ली आ गए हैं। वह हड़बड़ा गए कि ऐसे कैसे बिन बुलाए आ गए। उन्होंने पहले मिलने जाने से मना किया, मगर उन्हें समझाया गया कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आए हैं तो स्वागत करना ही होगा।

यह भारत-पाक के मध्य पहली ‘क्रिकेट कूटनीति’ थी, जो बाद में कई बार इस्तेमाल हुई। बहरहाल उस मैच में शास्त्री, अज़हर, रमीज राजा सभी ने शतक बनाए और मैच ड्रॉ रहा। राजीव और जिया-उल-हक़ के मध्य भी मैच ड्रॉ ही रहा। दोनों ही देशों ने अपनी सेना पीछे कर ली, युद्ध नहीं हुआ।

इस घटना के चार वर्ष बाद श्री पेरंबुदूर जाते हुए राजीव गांधी अपनी गाड़ी में साक्षात्कार दे रहे थे। उन्होंने कहा, “जिया-उल-हक़ की मृत्यु कोई संयोग नहीं था। हमने कश्मीर और सियाचीन का मसला सुलझा लिया था। मानचित्र तैयार थे। यह तय हो गया था कि अब अंतरराष्ट्रीय सीमा हमेशा के लिए पक्की कर दी जाएगी। शायद कोई रहा होगा जो ऐसा नहीं चाहता होगा।”

उनसे पूछा गया, “कौन? सीआइए?”

राजीव गांधी ने कोई जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर बाद एक विस्फोट में उनकी मृत्यु हो गयी। राजीव गांधी का वह साक्षात्कार लेनी वाली नीना गोपाल ने अपनी पुस्तक में एक संकेत दिया है कि यह दोनों मृत्यु जैसे जुड़ी हुई थी।

किसी भविष्यवक्ता ने जिया-उल-हक़ को कहा कि उनकी मृत्यु 8-8-88 को होगी। जनरल धार्मिक व्यक्ति थे तो ऐसी भविष्यवाणी मानते थे। मगर जब 8 अगस्त निकल गया, तो उन्हें लगा कि वह बच गए।

17 अगस्त को वह अपनी पूरी इंटेलिजेंस टीम और अमरीकी राजदूत के साथ अपने विमान से एक अमरीकी टैंक का डेमो देखने गए थे। हालाँकि वह टैंक इतना औसत निकला कि सभी निशाने ग़लत लग रहे थे। उस यात्रा का हासिल बस यह रहा कि स्थानीय लोगों ने उन्हें एक टोकरी ताज़ा आम उपहार दिया। उसके बाद उनका विमान उड़ा, और चार हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर जाने के बाद सीधे नीचे की ओर गिरने लगा।

कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि एक विस्फोट हुआ। एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी बनी कि आम के टोकरी में बम था। किसी ने कहा कि ‘नर्व गैस’ था। किसी ने कहा कि पायलट ही फ़िदायीं था, जो किसी धर्मगुरु की हत्या का बदला ले रहा था। किसी ने कहा कि यह मोस्साद और रॉ ने मिल कर किया। यह भी तर्क बने कि मुर्तज़ा भुट्टो ने बदला लिया, या केजीबी की चाल थी। सबसे प्रचलित धारणा यही है कि इसमें कहीं न कहीं सीआइए का हाथ था।

जो भी हो, इस एक विमान पर बैठे वे तीस लोग सीआइए-आइएसआइ संबंध की धुरी थे। जिया उल हक़ के ‘थिंक टैंक’ थे। वे सभी एक साथ खत्म हो गए। जाँच में बस यही कहा जा सका कि विमान में किसी भी तरह का तकनीकी दोष नहीं था, यह किसी बाह्य-कारण से हुआ।

मैं उस 8-8-88 की भविष्यवाणी के विषय में ढूँढ रहा था कि उसका क्या हुआ। जिया-उल-हक़ की मृत्यु तो 17-8-88 को हुई। अंक ज्योतिष शायद यह तर्क दें कि 17 का अर्थ भी 8 ही होता है।

तीस वर्ष बाद अब किसी पाकिस्तानी के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं कि जिया-उल-हक़ की मृत्यु कैसे हुई। प्रगतिशील बुद्धिजीवी यही मानते हैं कि पाकिस्तान को कट्टर इस्लाम की ओर ढकेलने वाले जिया-उल-हक़ ही थे। उनका मरना पाकिस्तान के लिए बेहतर हुआ।

लेकिन, नटवर सिंह लिखते हैं कि जिया-उल-हक़ धर्म को एक राजनैतिक टूल की तरह नहीं, बल्कि एक आदर्श की तरह देखते थे। उसे अपने जीवन में ढालते थे। जबकि भुट्टो इसके विपरीत धर्म की राजनीति तो करते थे, लेकिन अपने जीवन में नहीं ढालते थे।

खैर, जिया-उल-हक़ का मरना भुट्टो परिवार में ख़ुशियाँ लाया। बेनज़ीर भुट्टो ने इसे ‘अल्लाह का इंसाफ़’ कहा। बेनज़ीर जानती थी कि पाकिस्तान में युवा कुंवारी महिला कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकती। इसलिए, चुनाव से पहले उन्होंने आसिफ़ अली ज़रदारी से निकाह कर लिया था। चुनाव में उनकी पार्टी 92 सीट जीती, और पाकिस्तान को पहली महिला प्रधानमंत्री मिली।

वंशवादी राजनीति के दो युवा सितारे राजीव और बेनज़ीर गद्दी पर थे। लेकिन, जल्द ही दोनों भ्रष्टाचार के आरोपों से कुर्सी खो बैठे। विडंबना यह कि अंतत: दोनों एक जैसी ही हत्या के शिकार हुए।
( क्रमशः )

प्रवीण झा
© Praveen Jha

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 36.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/36.html
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