Thursday 20 May 2021

बेदी साहब का उर्दू घर

साउथ दिल्ली के पॉश ग्रेटर कैलाश-पार्ट वन का डब्ल्यू- 57। इसकी पहचान बरसों तक उर्दू के शायरों और अदीबों की बैठकी की जगह के रूप में होती थी। यहां पर फैज अहमद फैज, जोश मलीहाबादी, फिराक गोरखपुरी,अली सरदार जाफरी, कैफा आजमी, कतील शिफाई,गोपीचंद नारंग वगैरह बार-बार आते रहे। ये घर था कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी ‘सेहर’ का।

बेदी की शख्सियत के कई पहलू थे। वे उर्दू के उम्दा शायर थे। उन्हें नामवर शायरों के हजारों कलाम रटे हुए थे। उनकी सरपरस्ती में दिल्ली और देश-विदेश में सैकड़ों मुशायरें आयोजित हुए थे। उन्हें इस बात का भी गर्व था कि वे बाबा नानक की सत्रवी पीढ़ी से संबंध रखते हैं।चूंकि वे पंजाब सिविल सेवा के अफसर थे, इस नाते वे 1944 में ही दिल्ली आ गए थे। उस दौर में पंजाब के आला सरकारी अफसरों को दिल्ली में डेपुटेशन पर भेजा जाता था। 

जब देश का बंटवारा हुआ तो वे दिल्ली में सिटी मजिस्ट्रेट थे। उस दौरान दंगों पर काबू पाने से लेकर वे पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के पुनर्वास में लगातार सक्रिय रहे। देश के आजाद होने के बाद लाल किले पर 1951 में पहली बार आयोजित मुशायरा बेदी साहब की देखरेख में ही हुआ। कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी के आग्रह पर उस मुशायरे में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु भी आए। उन्होंने सभी शायरों को सुना भी। उस मुशायरे को आकाशवाणी प्रसारित भी कर रही थी।

इसी तरह से राजधानी में गणतंत्र दिवस पर कवि सम्मेलन के साथ मुशायरा भी आयोजित होने लगा। पहला कवि सम्मेलन गोपाल प्रसाद व्यास की देखरेख में हुआ था।

बेदी साहब बताते थे कि उस पहले मुशायरे में जोश मलीहाबाद की एक हरकत के कारण उन्हें बहुत तकलीफ पहुंची थी। हुआ यह कि जोश साहब बड़े मूड में नशाबंदी के खिलाफ सख्त-सख्त रुबाइयां पढ़ने लगे। वे नेहरु जी की तरफ मुखातिब होकर अपना कलाम पढ़ रहे थे। उनकी यह हरकत बेदी साहब और बहुत से अन्य लोगों को पसंद नहीं आई थी। 

बेदी साहब ने मुशायरें के खत्म होने के बाद जोश साहब की कायदे से क्लास ली तो वे कहने लगे कि मैं पंडित नेहरु से माफी मांगने के लिए तैयार हूं। पर जाहिर है कि बेदी साहब उन्हें नेहरु जी के पास तीन मूर्ति भवन लेकर नहीं गए। बेदी साहब अपनी 1992 में मृत्यु तक लाल किला मुशायरे के आयोजन से जुड़े रहे। पर एक बार वे इस दुनिया से विदा क्या हुए कि आयोजकों ने उनके घर पर मुशायरे का निमंत्रण पत्र भेजना ही बंद कर दिया। 

बेदी साहब के दोस्त साकी नारंग बता रहे थे कि उनके ( बेदी साहब) के परिवार को यह गिला रहा कि उनके संसार से जाते ही उन्हें भुला दिया गया। बेदी साहब के दिल्ली उर्दू अकादमी के अध्यक्ष होने के दौरान यहां अदबी, सास्कृतिक कार्यक्रमों के साथ राजधानी के अलग-अलग मोहल्लों में शामें गजल, शामे कव्वाली,सेमिनार वगैरह आयोजित होने लगे ।

बेदी साहब के ग्रेटर कैलाश स्थित घर में आने वालों में पंजाबी के महान कवि शिव कुमार बटालवी भी थे। शिव एक जहीन और विद्वान इंसान थे। 
पर बेदी साहब ने अपनी आत्म कथा ‘यादों का जशन’ में लिखा है- ‘शिव मेरे घर आकर व्हस्की की मांग करता था। वह दिन-रात पीने लगा। इतना पीने लगाकि उसने अपने को खत्म ही कर लिया।’ बहरहाल, आपको दीन दयाल उपाध्याय मार्ग में उर्दू घर मिलेगा। इसे आप उर्दू घर पार्ट टू कह सकते हैं। उर्दू घर पार्ट वन तो ग्रेटर कैलाश पार्ट वन में है।

● पहला गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन

गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर होने वाले गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन को दिल्ली 1951 से देख-सुन रही है। देश 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र हुआ तो अगले ही साल यानी 1951 से गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन और मुशायरा शुरू हो गया। कहते हैं, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने वरिष्ठ साहित्कार और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष गोपाल प्रसाद व्यास को संदेश भिजवाया कि राजधानी में गणतंत्र दिवस पर कोई कवि सम्मेलन आयोजित हो तो बेहतर रहेगा। हालांकि सरकार ने साफ कर दिया था कि उसकी तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं दी जा सकेगी। हां, लाल किले कवि सम्मेलन के आयोजन की व्यवस्था अवश्य कर दी जाएगी। इसके अलावा कवि सम्मेलन का आकाशवाणी सीधा प्रसारण भी करेगी। व्यास जी ने नेहरु जी की इच्छा का पालन करते हुए सम्मेलन के लिए  कवियों की व्यवस्था की।

पहले साल रामधारी सिंह दिनकर, सोहनलाल द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानन्दन पन्त वगैरह ने अपनी ओजस्वी रचनाएं पढ़ी। फिर तो इसमें कवि या दर्शक के रूप में शामिल होने का क्रेज बढ़ता ही गया। यकीन मानिए कि साठ के दशक तक इसमें शामिल होने वाले कवियों की रचनाएं सुनने के लिए चांदनी चौक के गौरी शंकर मंदिर तक लाइन लग जाया करती थी।  

● बच्चन,काका,नीरज गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन में

गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन की देखते ही देखते सारे देश में धूम मच गई। ये रात 9 बजे शुरू होता तो फिर रात के ढाई तीन बजे तक चलता। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु खुद इसमें कवियों को सुनने आते। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रफेसर और कवि डा. गोविन्द व्यास ने बताया कि नेहरु जी 1957 में कवि सम्मेलन की समाप्ति तक बैठे रहे थे। इसमें हरिवंश राय बच्चन, गोपालदास नीरज, काका हाथरसी लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहे। इन सबका मंचीय कवियों में एक विशिष्ट स्थान था। इन सबने सैकड़ों कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ किया और अपनी छाप छोड़ी । ये सब भी लाल किले के कवि सम्मेलन में आना पसंद करते थे। 

काका 1957 में लाल क़िला कवि सम्मेलन में पहली बार आए थे।नीरज जी ने 1966 में रिलीज फ़िल्म नई उमर की नई फसल के लिए लिखा गीत  कारवां गुज़र गया... यहां भी कई बार सुनाया। इस सुनते ही दर्शक मंत्र मुग्ध हो जाया करते थे।

● अटल जी गणतंत्र दिवस सम्मेलन कवि में

 पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी वर्षो लाल किला पर गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन में दर्शक दीर्घा में बैठा करते थे। उनके साथ, उनके परिवार के सदस्य और कुछ मित्र भी हुआ करते थे। वे मूंगफली  खाते हुए कविताएं सुनते थे। 
कहने वाले कहते हैं कि गणतंत्र दिवस कवि सम्मेलन का स्वरूप 1975 के बाद बदलने लगा। कवि मुखर होने लगे। वे सरकार और देश के कर्णधारों पर तीखे कटाक्ष करने लगे। इसके चलते सरकार ने आकाशवाणी से कवि सम्मेलन का सीधा प्रसारण बंद करवा दिया। फिर पंजाब में आतंकवाद का असर भी इस महत्वपूर्ण आयोजन पर हुआ। इसे कई बार लाल किले के स्थान पर तालकटोरा स्टेडियम में भी आयोजित किया गया।

विवेक शुक्ल
(Vivek Shukla)
 
नवभारत टाइम्स में 28 जनवरी 2021 और 19 जनवरी को छपे लेखों के संपादित अंश।
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