Sunday 30 April 2017

तेज बहादुर की बर्खास्तगी और उससे उपजे सवाल - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

तेज बहादुर पर तो अनुशासनहीनता का इल्ज़ाम बना होगा कि क्यों उसने एक अनुशासित बल का सदस्य होते हुए अपनी व्यथा सार्वजनिक संचार माध्यम पर कही । उसकी जांच हुयी होगी जिसमे उसका जुर्म साबित हुआ और फिर उसे दंड स्वरूप सेवा से बर्खास्त कर दिया गया । 

यह अनुशासन हीनता थी जैसा कि कानून और सैनिक परम्पराएं कहती हैं । सैनिक अनुशासन के नियम और कायदे किसी भी सिविल सेवा के नियम और कायदे से अलग और सख्त होते हैं । यह एक रेजिमेन्टेशन है । ऐसा भी नहीं कि जवान अपनी व्यथा कह नहीं सकते । वे खूब कहते हैं और उन्हें कहने का अवसर भी मिलता हैं। पर यह सारी व्यथा कथा यूनिट के अंदर ही हर माह होने वाले मासिक सम्मेलन जिसे पहले दरबार कहा जाता था में कह सकते हैं । वहीँ इन समस्याओं का निराकरण भी होता है । ऐसा बिल्कुल नहीं हैं कि अनुशासन का दुरूपयोग नहीं होता । होता है और वह एक अलग पक्ष है । अगर यूनिट प्रमुख योग्य और निष्ठावान अधिकारी है तो शिकायतें कम आएँगी नहीं तो शिकायतें आती रहती हैं । सेना सहित सभी बलों और पुलिस सेवाओं में यूनिट प्रमुख एक जिम्मेदार परिवार के मुखिया की तरह होता है ।

इस प्रकरण में यह हुआ कि सोशल मिडिया पर एक वीडियो अवतरित हुआ और फिर बुखार की तरह फ़ैल गया । वीडियो में हवलदार तेज बहादुर को यह कहतें हुए सुना गया कि उसे खाने में जली हुयी रोटियां और केवल हल्दी मिली दाल मिलती है । यह भोजन व्यथा केवल तेज बहादुर की ही थी या उसके पूरे मेस की यह तो पता नहीं पर इस से यह सन्देश गया कि सीमा पर नियुक्त सुरक्षा बलों के जवानों को खाना अच्छा नहीं मिलता है । फिर जब बात निकली तो उसे दूर तक जाना ही था,और उस पर उंगलियां भी उठनी हीं थीं । सोशल मिडिया पर बुखार चढ़ा तो यूनिट भी हरकत में आयी । खाना सुधरा या नहीं यह तो मुझे नहीं पता पर तेज बहादुर के साथ जो हुआ वह आज सब को पता है । अभी तेज बहादुर अपने मामले में अपील आदि कर सकते हैं और वे क्या करेंगे यह उन्हें ही तय करना है ।

लेकिन उनकी बर्खास्तगी से सीमा पर भोजन की गुणवत्ता सुधर नहीं जायेगी पर यह ज़रूर हो सकता है कि लोग शिकायतें करना ही छोड़ दें । शिकायतों का न मिलना , शिकायतों के बराबर मिलने की तुलना में अच्छी स्थिति नहीं है । दुनिया में आज तक कोई भी ऐसी त्रुटिरहित व्यवस्था नहीं हुयी है जिसमे कि शिकवे शिकायत की गुंजायश न हो । अगर लम्बे समय तक शिकायत नहीं हो रही है तो इसका एक ही कारण है कि लोगों को यह आभास हो चला है कि उन शिकायतों पर कोई सुनवायी ही नहीं हो रही है तो क्या , क्यों और किस से कहा जाय ? यह मनःस्थिति सीधे मनोबल पर असर डालती है और इस से यूनिट के प्रशासकों और जवानों के बीच संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है जो अनुशासन के लिए और भी घातक होती है । यूनिट एक परिवार की तरह होती है । लोग एक साथ रहते हैं , परेड करते हैं, खाते पीते हैं और वक़्त आने पर एक साथ कर्तव्य हेतु मरते जीते भी हैं । यह एकता ही सेना और सुरक्षा बलों की मानसिक ताक़त है जो उन्हें अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी एकजुट बना कर रखते हुए स्वस्थ और प्रसन्न रखे रहती है ।

तेज बहादुर की बर्खास्तगी से सवाल थमेंगे नहीं बल्कि और ज़ोरों से उठेंगे । उसे तो उसके किये की सजा मिल गयी पर उसके आरोपों का क्या हुआ ? 
खराब खाना सम्बंधित आरोप  अगर सत्य है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? 
क्या इस आरोप के खिलाफ क्या कोई जांच हुयी थी ?
जांच से परिणाम क्या निकला ?
जांच का परिणाम और की गयी कार्यवाही का विवरण भी विभाग द्वारा सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिस से सच सामने आ सके । हम एक बेहद पारदर्शी युग में जी रहे हैं । जासूसी के ऐसे ऐसे उपकरण उपलब्ध हो गए हैं कि अब कुछ भी गोपन नहीं रहा । अतः गोपनीयता का आवरण देना अनेक अफवाहों को ही जन्म देगा । हो सकता है उधर कोई गलत बयानी हो और इधर कोई न कोई वीडियो , आडियो, या फ़ोटो सोशल मीडिया पर आ कर के उस गोपनीयता को उघाड़ दे ।

अनुशासन हवा में और इकतरफा नहीं होता है और न ही यह दमन का कोई उपादान है । यह बल को एकजुट , उच्च मनोबल युक्त और हर कठिन से कठिन परिस्थितियों में जूझने के लिए जीवनी शक्ति प्रदान करता है । अनुशासन तभी बरकरार रह सकता है, जब यूनिट प्रमुख और यूनिट प्रशासन जवानों का हित एक परिवार के जिम्मेदार  मुखिया की मानसिकता से देखेंगे । जबरन थोपा गया अनुशासन , आक्रोश उत्पन्न करता है । और यह अधिक घातक है ।

( विजय शंकर सिंह )

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