अदालती फैसलों के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है । यह निर्णय केरल के डीजीपी टीपी सेनकुमार की नियुक्ति से सम्बंधित है । टीपी सेनकुमार केरल के डीजीपी हैं पर इन्हें केरल की एलडीएफ सरकार ने हटा दिया था । सेनकुमार अपने इस स्थानांतरण के खिलाफ सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल गए और अपने हटाये जाने वाले स्थानांतरण आदेश को चुनौती दी । सेनकुमार ने अपने समर्थन में यह तर्क दिया कि उन्हें राजनीतिक द्वेष के कारण हटाया गया है । सेनकुमार की नियुक्ति यूडीएफ सरकार द्वारा की गयी थी । सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ( CAT ) से सेनकुमार अपना मुक़दमा हार गए । ट्रिब्यूनल ने उनके स्थानान्तरण को औचित्यपूर्ण ठहराया और यह कहा कि डीजीपी की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए राज्य सरकार पूर्णतः अधिकार संपन्न है । सेनकुमार ने अपने पक्ष में , प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया का वह महत्वपूर्ण फैसला भी उद्धृत किया था जिसमे डीजीपी को 2 साल का एक तयशुदा कार्यकाल देने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्य सरकारों को दिया गया है । लेकिन CAT ने सेनकुमार का तर्क स्वीकार नहीं किया और उनकी ओरिजिनल ऍप्लिकेशन खारिज कर दी । CAT के इस फैसले के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की ।
सुप्रीम कोर्ट में टीपी सेनकुमार ने CAT के फैसले के खिलाफ अपील की और यह पक्ष रखा कि उनका स्थानांतरण सरकार ने ज़िद और चिढ तथा राजनीतिक द्वेष वश किया है । सुप्रीम कोर्ट ने सुनवायी के बाद सेनकुमार की अपील स्वीकार कर ली और उन्हें पुनः डीजीपी के पद पर नियुक्त करने का आदेश दिया । यह आदेश केरल की एलडीएफ सरकार के मुख्य मंत्री पिनाराइ विजयन के लिये एक आघात है । सुनवायी के दौरान न्याय मूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता ने यह टिप्पणी की,
" Mr. Senkumar has been "unfairly treated" by the newly formed government. "
" Mr. Senkumar has been "unfairly treated" by the newly formed government. "
वैसे तो यह फैसला केरल सरकार से सम्बंधित है लेकिन इसका बहुत ही दूरगामी प्रभाव भी पड़ेगा । यह उन सभी सरकारों के एक सीख और चुनौती की तरह होगा जहां सरकारें बदलते ही डीजीपी बदलने की एक परम्परा सी पड़ गयी है । उत्तर प्रदेश में तो यह एक परिपाटी ही बन गयी है कि जिस दिन नया मुख्य मंत्री शपथ लेता है उसके तुरन्त बाद डीजीपी बदल दिए जाते हैं । ऐसा ही केरल सरकार ने भी किया था । पर वहाँ इस तबादले को डीजीपी टीपी सेनकुमार ने स्वीकार नहीं किया और इसे चुनौती देते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए और वहाँ वे विजयी हुए । हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह के मामले में डीजीपी के लिए 2 साल का कार्यकाल तय कर दिया है । लेकिन सरकारें मानती कहाँ हैं ।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पढ़ें ,
"On an overall consideration of the facts and circumstances of the case, we are of the opinion that Mr. Senkumar has been unfairly treated. We have no hesitation in setting aside the judgment and directing the reappointment of the petitioner,"
इस फैसले से वहाँ सेनकुमार के स्थान पर नियुक्त डीजीपी लोकनाथ बेहरा को डीजीपी के पद से हटना पड़ा है ।
"On an overall consideration of the facts and circumstances of the case, we are of the opinion that Mr. Senkumar has been unfairly treated. We have no hesitation in setting aside the judgment and directing the reappointment of the petitioner,"
इस फैसले से वहाँ सेनकुमार के स्थान पर नियुक्त डीजीपी लोकनाथ बेहरा को डीजीपी के पद से हटना पड़ा है ।
ऐसा नहीं कि सरकार ने सेनकुमार को हटाने के पीछे तर्क नहीं दिए थे । सरकार ने किसी भी राजनीतिक द्वेष से इस स्थानांतरण को किये जाने से इनकार किया और यह कहा कि, डीजीपी को हटाने का कारण पुटिंगल स्थित पटाखों की फैक्ट्री में लगी आग से हुयी मौतें और पेरिमबवूर स्थित लॉ कॉलेज में एक दलित छात्र की हत्या होना बताया था । CAT ने इन तर्कों के आधार पर उनके स्थानांतरण को उचित ठहराया था । सेनकुमार ने अपने वकीलों दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण के माध्यम से अपना पक्ष रखा । सेनकुमार के वकील दुष्यन्त दवे का तर्क था,
"My performance is 9 put of 10. I was in no way directly responsible for the two cases (Puttingal and Dalit student murder). If that is the case, 96 police officers were transferred by this government. Nine political murders occurred in the State. Will the Chief Minister, who is also the Home Minister, take responsibility? If not, why should the Chief Minister say I should take responsibility?"
"My performance is 9 put of 10. I was in no way directly responsible for the two cases (Puttingal and Dalit student murder). If that is the case, 96 police officers were transferred by this government. Nine political murders occurred in the State. Will the Chief Minister, who is also the Home Minister, take responsibility? If not, why should the Chief Minister say I should take responsibility?"
इसी निर्णय की निम्न पंक्तियाँ भी पठनीय हैं ,
"....If a chief secretary looses the confidence of the chief minister, he or she may be shifted to another post in the larger interest of adminstration, but it cannot be applicable to the head of the police force in the State and the DGP cannot be removed merely on this basis...
"....If a chief secretary looses the confidence of the chief minister, he or she may be shifted to another post in the larger interest of adminstration, but it cannot be applicable to the head of the police force in the State and the DGP cannot be removed merely on this basis...
There is a difference in the role of the chief secretary as the chief executive of the State and the DGP of the State; their roles cannot be equated. While the chief secretary can be removed if he or she does not enjoy the confidence of the chief minister or does not have a complete rapport and understanding with the chief minister, the removal cannot be questioned unless there is a violation of some statutory or constitutional provision. But that is not so with the State police chief.....the posts of chief secretary and DGP were both sensitive but the sensitivity attached to the post of chief secretary has a different dimension from that of the post of the DGP. Unlike the chief secretary of the State, the state police chief as the head of the police force is concerned with the law and order and public order and not general executive administration. Police must be permitted to function without any regard to the status and position of the person while investigating a crime or taking preventive measures.
"In other words, the rule of law should not become a casualty to the whims and fancy of the political executives. In that event, the state police chief might be pressured laterally by the political executive and virtically by the administration. It is to ensure that no such pressure is exerted on the state police chief and if so exerted,then the state police chief does not succumb to such pressures that the judgement in Prakash Singh case provided for the security of tenure and insulating police from the Executive" ....
The extract reading clearly iundicates thgat the two top jobs in the State administration after this ruling, are different anf the DGP's assignment is holier. That whims and fancies of the political executives when allowed free hand on the job can probably invite a contempt of court as well as other provisions of law if existing. I feel, the DGP Conference in future should devote some time for a discussion on the provisions of this ruling and BPRD/IB should provide an item for the same in the agenda when it is prepared.
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय में यह कहा गया है कि यदि मुख्य सचिव अगर सरकार के मर्ज़ी के विपरीत कार्य करता है तो उसे सरकार हटा सकती है । लेकिन केवल मर्ज़ी के ही आधार पर पुलिस प्रमुख को नहीं हटाया जा सकता है । अदालत के अनुसार मुख्य सचिव और डीजीपी , दोनों ही पद महत्वपूर्ण हैं पर दोनों के दायित्व और उनका क्षेत्राधिकार अलग अलग है । मुख्य सचिव जहां सरकार की मर्ज़ी के विपरीत नहीं जा सकता और वह सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में पूरी तरह से सरकार की मर्ज़ी के अधीन है, वही डीजीपी की जिम्मेदारी कानून और व्यवस्था बनाये रखने की है । वह उन कानूनों का कानूनी रूप से पालन कराने के लिए प्रतिबद्ध है । इस लिए डीजीपी की नियुक्ति और स्थानांतरण को केवल सरकार या मुख्य मंत्री की मर्ज़ी या ज़िद पर नहीं छोड़ा जा सकता है ।
( विजय शंकर सिंह )
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