Friday 14 April 2017

बाबर के साहित्यिक पक्ष की एक झलक / विजय शंकर सिंह

बाबर, एक योद्धा और साम्राज्य निर्माता के रूप में जाना जाता है, पर वह एक उच्च कोटि का लेखक भी था। उसकी आत्मकथा, तुजुक ए बाबरी, या बाबरनामा , एक सराही गयी कृति है. एक सामान्य से ज़मीदार के बेटे के रूप में, उसने अपना जीवन शुरू किया, और बेहद संघर्ष पूर्ण जीवन जीने के बाद वह 1530 ईस्वी में मृत्यु को प्राप्त हुआ. उसकी आत्म कथा में कई ऐसे साहित्यिक पड़ाव आये हैं जो इस योद्धा के अदबी स्वरुप का दीदार कराते है. बाबरनामा का हिंदी अनुवाद, साहित्य अकादेमी से प्रकाशित हुआ है. बाबर नामा में बाबर का एक शेर पढ़े,

मस्तम ऐ मुहतसिब, इमरोज़ ज़मान दस्त बदार,
एह'तसाबम बकुल आँ कि याबी हुशियार !!

यह शेर फारसी में है, इसका अनुवाद इस प्रकार है,...

छोड़ दो आज मुझे, मुहतसिबो मस्त हूँ मैं,
होश में देखना, जिस रोज़, फैसला करना !!
( मुहतसिब - सस्कारी कर्मचारी जो हिसाब किताब रखते हैं. यहां इसका अर्थ मयखाने के हिसाब किताब रखने वाले सरकारी कर्मचारी से है. )

बाबर का ही एक और शेर पढ़ें... फारसी में पहले है, फिर उसका हिंदी अनुवाद है,

हज़र कुन ज़दूदे दरूहाय रेश,
कि रेशे दरूं आक़बत सर कुनद !
बहम बर मकुन ता तवाने दिले
कि आहे जहाने बहम बर कुनद !

भीतरी घाव के धुवें से बच्,
आकबत, नज़्र ए आह होती है,
एक भी दिल न तोड़, आह न ले,
एक दुनिया, तबाह होती है !!

बाबरनामा से ली गयी यह पंक्तियाँ पढ़िए.

क़रार ओ अहृद बयारी चूनीं नबूद मरा, गुज़ीद हिज़्र ओ मरा कर्द बेक़राराखिर ,
बइशवहाय ज़माना कि चारासाज़द कस, बजौर क़र्ज़ जुदा यार, राज्रेयाराखिर !!
( बाबरनामा )

हिंदी अनुवाद...
क़रार इस तरह का था न यार से मुझ को,
बिछोह दे के मुझे कर दे , बेक़रार आखिर,
ज़माने के ये चोंचले, कोई करे तो क्या,
बजौर यार ले रहा है यार आखिर !!
( अनुवादक -युगजीत नवल पुरी )

बाजौर एक स्थान है अफगानिस्तान और पेशावर के बीच। वहाँ एक  छोटे से किले पर बाबर हमला करता है. उसे नुकसान तो होता है पर वह जीतता भी है. बाजौर यहां उस स्थान का भी द्योतक है और बरजोर का भी एक पर्याय है. क़रार का अर्थ, वादा, ठहराव, चैन या धैर्य से है.

( विजय शंकर सिंह )

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